इस कवि सम्मेलन को सुनने 50 हजार से भी ज्यादा लोग जुटे. रीवा से तिवनी तक गाड़ियों की रेलमपेल. इस कवि सम्मेलन में नीरज जी बहुप्रचारित कवि थे. हफ्तों से लोगों की जुबान पर नीरज के गीत थे, उन्हें सुनने की अतीव उत्कंठा थी.
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नीरज जी दिल में उतर जाने वाले साहित्यिक मनीषी थे. कवि सम्मेलनों के गैंगबाजी वाले दौर में भी, वे वैसे के वैसे ही रहे जैसे दिनकर, बच्चन के जमाने में थे. पारिश्रमिक उनकी वरीयता में कभी नहीं रहा, न ही वे इसके लिए कभी कोई सौदेबाजी की. ऐसा मैं इसलिए कह सकता हूं क्योंकि कई वर्षों तक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के सफल आयोजनों का सूत्रधार रहने का श्रेय मिला.
एक किस्सा और...श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी उन दिनों स्पीकर रहते हुए मध्यप्रदेश की सत्ता में सर्वशक्तिमान थे. वे प्रतिवर्ष अपने गांव तिवनी (रीवा) में कवि सम्मेलन आयोजित करवाते थे. यह संभवत: वर्ष 2002 की बात होगी. इस बार उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि कवि सम्मेलन यादगार होना चाहिए,....कैसे कैसे कवियों को बुलाकर बैठा देते हैं जिन्हें न लिखने का शऊर न पढ़ने का. इस साल ऐसा नहीं होना चाहिए.
इन दिनों तक कवि सम्मेलन गिरोहबंदी के गिरफ्त में आ चुका था. यानी कि एक कवि सभी कवियों का ठेका ले लेता है. और संयोजकों का कहना ही क्या. यह आयोजन मेरे लिए चुनौती भरा था.
कवि आमंत्रण का श्रीगणेश ही नीरज जी से... मैंने पहला फोन उन्हें ही घुमाया. उनका दीवाना तो बचपन से था ही, उनकी कई रचनाएं जो मुझे कंठस्थ हैं की चर्चा करके भूमिका बनाई. फिर मुद्दे की बात की - दद्दा एक कवि सम्मेलन में आना है वह भी गांव में ..उन्होंने विनोदी लहजे में बस इतना ही पूछा- ज्यादा पैदल तो नहीं चलना पड़ेगा और पड़ेगा भी तो आऊंगा... पारिश्रमिक की बात नहीं की.
मुझे तुरुप का इक्का मिल चुका था. इसके बाद जिन कवियों से बात की बस उन्हें नीरज जी की स्वीकृति का हवाला देता गया, उधर से मंजूरी मिलती गई. इस कवि सम्मेलन में बशीर बद्र, माणिक वर्मा, सोम ठाकुर, बेकल उत्साही, बालकवि बैरागी, रामेंद्र मोहन त्रिपाठी के साथ नई पीढ़ी के कवियों में कुमार विश्वास, कमलेश शर्मा, सुनील जोगी आदि थे. यह अद्भूत मंच था. कुमार विश्वास की मौजूदगी में भी मैंने मंच संचालन का दायित्व कैलाश गौतम जी को सौंपा...
एक गांव में अभा कवि सम्मेलन..? जी हां इस कवि सम्मेलन को सुनने 50 हजार से भी ज्यादा लोग जुटे. रीवा से तिवनी तक गाड़ियों की रेलमपेल. वैसे इसके पीछे तिवारी जी का ही आभामंडल था. तिवारी जी अपने आयोजनों के खुद स्टार प्रचारक व ब्रांड एंबेस्डर बन जाया करते थे. इस कवि सम्मेलन में नीरज जी बहुप्रचारित कवि थे. हफ्तों से लोगों की जुबान पर नीरज के गीत थे, उन्हें सुनने की अतीव उत्कंठा थी.
हम साहित्यिक मित्रों ने नीरजजी का रीवा में स्वागत किया. चंकि यहां उन्हें आठ दस घंटे शहर में ही बिताने थे इसलिए शहर के साहित्यकारों को भी बुला लिया. रेडियो व अखबार वालों ने उनके इंटरव्यू लिए. उनका साथ देने के लिए सुप्रसिद्ध साहित्यकार चंद्रिका चंद्रजी से आग्रह किया वे पूरे वक्त साथ रहे. नीरज जी में ऐसा ओज और तेज पहले कभी नहीं देखा जैसा उस दिन.
रीवा शहर से तिवारी जी का गांव 35 किमी से ज्यादा ही है. उन दिनों सड़कों की हालत यह थी कि रास्ते में गड्ढा देखें कि गड्ढे में रास्ता...बस कैसे भी तिवनी पहुंचे. श्रोताओं का कोई पारावार नहीं.. दूर खेतों तक छिटके हुए, मेड़ों में जमें बैठे थे. रास्ते की थकान के बाद भी नीरज जी की प्रफुल्लता देखते बनती थी.. सीधे मंच पर पहुंचे तब तक अन्य दिग्गज कवि विरजमान हो चुके थे.
सामने श्रोताओं की पंक्ति में सबसे आगे मसनद पर टिके तिवारी जी बगल में जगदीश जोशी, विवि के कुलपति पीछे की लाइन में कमिश्नर, आईजी,कलेक्टर सभी प्रशासनिक अमला. लेकिन श्रोताओं की भीड़ में ज्यादातर वे लोग थे सपरिवार घरों की टटिया और किवाड़ देकर यहां आ जमे थे.
श्री निवास तिवारी साहित्य के इतने प्रेमी थे कि उन्हें कभी भी किसी साहित्यिक आयोजन के बीच से उठकर जाते नहीं देखा भले ही वह रातभर चले. पर किसी की गलती पर बैठे-बैठे ही फटकार देते थे. जोशी जी तो खुद भी उद्भट साहित्यकार थे. कुलमिलाकर फरवरी की वासंती निशा में बस नीरज जी की ही खुमारी छायी हुई थी.
मैंने मंच संचालक कैलाश गौतमजी से आग्रह किया कि कवि सम्मेलन नीरज जी से ही शुरू करें. वे चौंक उठे क्योंकि मंच की मर्यादा के हिसाब से वरिष्ठता के क्रम से काव्यपाठ होता है. मैंने उनसे कहा कि श्रोता बेताब हैं किसी दूसरे को नहीं सुनेंगे हूट कर देंगे.
मेरी कोट की जेब नीरज जी के लिए की गई फरमाइशों से ओवरफ्लो हो रही थी. इसी वजह से मैंने यह आग्रह किया. कैलाश जी ने कहा नीरज जी से पहले पूछ लीजिए. इधर नीरज जी काव्यपाठ के अंदाज में ही दो मसनदों के ऊपर अपना आसन जमा चुके थे... मैंने श्रोताओं की बेसब्री बताई तो उन्होंने कहा-नेकी और पूछ-पूछ...हां पहले सोम ठाकुरजी से भाषा की आराधना वाला वो गीत पढ़वा दीजिए... वे मूड में थे..सरस्वती की जगह भाषा वंदना के साथ कवि सम्मेलन शुरू हुआ.
फिर नीरज जी शुरू हुए...कविता-गीत से पहले मंच से ही तिवारी जी की क्लास ली. सब सन्न... बोले- तिवारी जी हड्डी का पोर-पोर तक चटख गया आपकी सड़कों में... फिर उन्हें साहित्यानुरागी होने का सम्मान देते हुए यह भी बताया कि तिवारी जी उमर में मैं आपसे बड़ा हूं.. इसलिए मशविरा देने का अधिकार रखता हूँ... चारों तरफ सन्नाटा... नीरज जी तिवारी जी के बारे में अपडेट थे.
सुनिए तिवारी जी.. यही कहते हुए उन्होंने काव्यपाठ शुरू किया..
जितना कम समान रहेगा,
उतना सफर आसान रहेगा.
जितनी भारी गठरी होगी,
उतना तू हैरान रहेगा.
हाथ मिले पर दिल न मिले
मुश्किल में इंसान रहेगा.
सुनिए तिवारी जी.. के तकिया कलाम के साथ गजल पूरी की. तब तक उनसे की गई फरमाइशों का पुलिंदा उनके हवाले कर चुका था जिसे उन्होंने अपने सामने बिखरा लिया. पहले फरमाइश की पुर्चियां बांचकर सुनाते और बाद में उसके अनुसार अपने गीत... उस ऐतिहासिक कवि सम्मेलन के श्रोताओं को आज भी याद होगा कि ..कारवां गुजर गया.. से जो शुरुआत की उसका समापन..ऐसी क्या बात हुई चलता हूं. अभी चलता हूं, एक गीत जरा झूम के गा लूं तो चलूं...तब तक साढ़े तीन घंटे बीत चुके थे..नीरज जी उस दिन गांव के निशा निमंत्रण पर थे. बांकी के दिग्गज कवि उस कवि सम्मेलन में मंच की "श्री शोभा" ही बनकर उस गीतवर्षा में भींजते रहे.
महाकवि नीरज की स्मृतियों को नमन..
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)