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सड़कें देश के लिए विकास का प्रतीक होती है। तो दूसरी तरफ हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर एक खराब दशा हमेशा मंडराती है जिसका जुड़ाव हमारे देश की सड़कों से ही है। देश में सड़कों के अभाव और अच्छी सड़कें नहीं होने की वजह से हर साल अरबों रूपए का ईंधन (मसलन पेट्रोल और डीजल) बर्बाद हो जाता है। सड़कों ने विकास को गति प्रदान की है तो हाईवे कल्चर में अब सब-कुछ समाता जा रहा है। खासकर अब देश के नगर और महानगर हाईवे कल्चर में तेजी से ढलते जा रहे है। हाईवे पर तेज आवाज में तेज रफ्तार से दौड़ती गाड़ियां अब आधुनिक जीवन का हिस्सा बन गई है।
एक तरफ हाईवे पर सबसे बड़ी सहूलियत तो यह है कि इंसान कम वक्त में अपनी मंजिल तय कर लेता है तो दूसरी तरफ ईंधन के बचत की भी है। लेकिन किसी भी हाईवे पर आप चलती हुई गाड़ियों को देखिए। रात में गाड़ियों की गूंजती आवाज को सुनिए तो डर लगता है। 90, 100 120, 140 किलोमीटर प्रति घंट की रफ्तार से यहां गाड़ियां चलती है। एक तरफ गाड़ियां तो दूसरी तरफ लॉरी और बड़े-बड़े ट्रक भी चलते है जिन्हें इन सड़कों या हाईवे पर चलने की इजाजत रात को ही मिलती है। दिन में इनके चलने पर पाबंदी होती है। लिहाजा रात में ये मतवाले और मनमाने चाल से चलते है।
रफ्तार का नशा ,रफ्तार की आंधी इन हाईवे की सड़कों पर देखने में आती है। जब कई ड्राइवर सड़कों पर ऐसे चल रहे होते है जैसे सिवाय उनके सड़क पर कोई गाड़ी ही ना हो। यहीं रफ्तार ना जाने हर साल कितने लोगों की जान लील जाता है। ना जाने कितने लोग काल के गाल में समा जाते है। रफ्तार का यही कहर इन सड़कों, हाईवे पर मौत का कहर बनकर टूटता है। रफ्तार का यही रौद्र रूप कल हाईवे पर दौसा के नजदीक देखने को मिला जब अदाकारा हेमा मालिनी की मर्सिडीज एक अल्टो से जा टकराई। दो गाड़ियों में आपसी टक्कर की वजह कई हो सकती है लेकिन ज्यादातर ऐसे हादसे जरूरत से ज्यादा रफ्तार और गाड़ी पर नियंत्रण खो देने की वजह से होते है।
देश में सड़कों और हाईवे की संख्या तेजी से बढ़ती चली जा रही है। इन सड़कों और हाईवे पर भागती दौड़ती अंधाधुंध गाड़ियां इसी रफ्तार से हादसों को भी न्यौता भी दे रही हैं और यह हम सबके लिए चिंता का विषय है । सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियों की रफ्तार इंसानी जिंदगी पर भारी पड़ रही हैं। यूएन और डब्ल्यूएचओ समेत एनसीआरबी भी भारत को ऐसे देशों में शुमार करता है जहां पिछले कुछ सालों में सड़क दुर्घटनायें साल दर साल तेजी से बढ़ी हैं। भारत में तेजी से बढ़ रहे सड़क हादसों का आंकड़ा गंभीर चिंता का सबब बनता जा रहा है। एक सर्वे के मुताबिक चीन के बाद भारत में सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोगों का आंकड़ा सबसे ज्यादा है। देश में सड़क हादसों में रोजाना लगभग 170 लोगों की मौत हो जाती है। सड़क हादसों से देश को सालाना 550 अरब रुपये का नुकसान होता है।
हर साल सड़क हादसे और इस दौरान होनेवाली मौतों के आंकड़े भयावह होते जा रहे है। पूरी दुनिया में सड़क हादसों में (135,000 व्यक्ति प्रतिवर्ष) लोगों की जान चली जाती है। राजधानी दिल्ली में हर चार मिनट में एक व्यक्ति की सड़क हादसे में मौत हो जाती है। दुनिया भर में 13 लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों के दौरान काल के गाल में समा जाते है।
दिल्ली पुलिस ने हाल में जो आंकड़े जारी किए थे वह यह बताते है कि इस मसले पर गंभीरता से चिंतन करने और उसपर ठोस पहल जल्द से जल्द किए जाने की है। दिल्ली में इस साल अबतक हुए सड़क हादसों में रोजाना दिन औसतन चार लोगों की जान गई है और 21 लोग घायल हुए हैं। इन आकंड़ों के मुताबिक, एक जनवरी से लेकर 15 मई तक की अवधि के दौरान 2,973 सड़क हादसे हुए हैं जिनमें 579 लोगों की मौत हो चुकी है।
पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में यातायात नियमों के उल्लंघन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। शहर के विभिन्न इलाकों में सिग्लन तोड़ने, शराब पीकर वाहन चलाने और तय सीमा से अधिक रफ्तार में वाहन चलाने के हजारों मामले दर्ज किए जा रहे हैं और यही वह कारण हैं, जिनके कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं और लोगों की जान जा रही है। कुल मिलाकर आप देखें तो सड़क पर रफ्तार और गाड़ी पर असंतुलन खोने की वजह से इन हादसों में बेतहाशा वृद्धि होती चली जा रही है।
आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में कुल 8,623 सड़क हादसे हुए थे, जबकि 2013 में सड़क हादसों की संख्या 7,566 थी। वहीं 2012 में 6,973 और 2011 में 7,280 सड़क हादसे प्रकाश में आए थे। सड़क हादसों के कारण 2014 में 1,629 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2013, 2012 और 2011 में हुए सड़क हादसों में क्रमश: 1778, 1822 और 2047 लोगों की जान गई।
चीन में हर साल जहां 1 लाख से ज्यादा मौतें सड़क हादसों में होती हैं। दूसरी तरफ भारत में भी यह आंकड़ा इससे थोड़ा ही कम है। अमेरिका 41,292 और रूस 37,349 मौतों के साथ भारत से कहीं पीछे है, जबकि इन देशों में भारत से कहीं ज्यादा संख्या में कारें हैं। एनसीआरबी के मुताबिक देश में 2003-2012 के दौरान जनसंख्या वृद्धि दर 13.6 फीसदी रही, जबकि इसी दौरान सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 34.2 फीसदी बढ़ी। 2012 में दुर्घटनाओं में होने वाली कुल मृत्यु का 35.2 फीसदी सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं का नतीजा है।
एक सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी से ज्यादा सड़क हादसों में ड्राइवर की गलती होती है। ज्यादातर हादसे ओवर स्पीड, लालबत्ती की अनदेखी, गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात करना और नशे में गाड़ी चलाने के कारण होते हैं। परिवहन व राजमार्ग मंत्रायल के आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी से अधिक हादसे चालक की गलती से होते हैं। क्योंकि इनके लिये सख्त नियम नहीं है। विदेशों में नियम सख्त है और सबसे बड़ी बात है कि वहां ट्रैफिक की छोटी गलतियों पर भी जुर्माने की राशि बड़ी होती है। इसलिए यहां ट्रैफिक वॉयलेशन की घटनाएं कम होती है। शराब पीकर वाहन चलाना, हेलमेट नहीं पहनना और सीट बेल्ट नहीं बांधना ही पूरी दुनिया में साल दर साल बढ़ते सड़क हादसों की तीन प्रमुख वजहें हैं। ऐसे हादसे ज्यादातर नेशनल और स्टेट हाइवे पर होते हैं।
सड़क हादसों के आंकड़ों की तस्वीर हमारे जेहन में खौफ पैदा करती है। सालाना सड़क हादसे में मरने वालों की संख्या 13 लाख है। इन अलग-अलग हादसों में मरने वालों में 5 से 29 साल के लोगों की संख्या ज्यादा होती है। जबकि 05 करोड़ से ज्यादा की तादाद में लोग घायल होते हैं। 15 फीसदी पैदल यात्री, 27 फीसदी दुपहिया वाहन चालक शिकार होते हैं। 28 देशों में ट्रैफिक के नियमों का सख्ती से पालन होता है लिहाजा इन देशों में ऐसे हादसे बेहद कम होते है। संयुक्त राष्ट्र को उम्मीद है कि वर्ष 2020 तक हादसों में 50 फीसदी तक की कमी आएगी।
अब ऐसे हादसों के मद्देनजर यह जरूरी है कि ट्रैफिक नियमों में सख्ती लाई जाए। देश ने शानदार हाईवे जरूर बनाए है लेकिन हाईवे पर गाड़ियों की आवाजाही का शानदार कल्चर और नियम-कानून डेवलप होना अभी बाकी है। हालांकि हाईवे कल्चर में गाड़ियों की आवाजाही को लेकर बहुत रूल नहीं बनाए जा सकते है। लेकिन एक ड्राइवर को अपने विवेक और संतुलन से गाड़ी चलाने की प्रवृति सीखनी होगी। खासकर उन ड्राइवरों को शराब पीकर गाड़ी चलाते है और ट्रैफिक रूल को तोड़ने में कतई कोताही नहीं बरतते। हमें इसे लेकर उन देशों से सीख लेनी होगी जहां ट्रैफिक रूल को तोड़ने के लिए लिया जानेवाला जुर्माने की रकम रुलादेने वाला होता है। सख्त बरतनी समय रहते जरूरी है अन्यथा रफ्तार का कहर हमेशा हजारों निर्दोष लोगों को हर साल लीलता रहेगा।