SC का फैसला- संसद में कानून के बगैर, LGBT को हक कैसे मिलेगा
Advertisement
trendingNow1443738

SC का फैसला- संसद में कानून के बगैर, LGBT को हक कैसे मिलेगा

धारा 377 रद्द करने के लिए शशि थरूर के प्राईवेट बिल को सिर्फ 14 वोट मिले थे, तो फिर इन अहम् मसलों पर संसद में कानून को कैसे मंजूरी मिलेगी?

SC का फैसला- संसद में कानून के बगैर, LGBT को हक कैसे मिलेगा

गेरूआ और लाल के ध्रुवीकरण के दौर में समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इन्द्रधनुषीय रंग की छटा भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है. जजों ने इतिहास से माफी मांगने की बात कही तो LGBT समुदाय ने इसे दूसरी आजादी करार दिया. फैसले से सिर्फ आईपीसी की धारा 377 ही अमान्य हुई है परन्तु हक के लिए तो संसद से ही कानून बनेगा-

शादी, पारिवारिक विवाद, तलाक और भरण-पोषण की व्यवस्था नहीं
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह माना जा रहा है कि समलैंगिक भी अपने जोड़े बनाकर पारिवारिक व्यवस्था का हिस्सा बन सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा पारित लम्बे निर्णय का निष्कर्ष यह है कि धारा 377 के तहत समलैंगिकता अब अपराध नहीं है. इस फैसले के बाद पुलिस द्वारा उन्हें परेशान नहीं किया जा सकता और सभी लंबित आपराधिक मामले अब निरस्त हो जायेंगे. समलैंगिक जोड़े यदि शादी करना चाहें तो उसके रजिस्ट्रेशन के लिए भारत में फिलहाल कोई कानून नहीं है. समलैंगिक वर्ग को शादी के साथ पारिवारिक विवाद-हिंसा, तलाक और भरण-पोषण सम्बन्धी कानूनों की जरूरत पड़ेगी. इसके लिए स्पेशल मैरिज एक्ट समेत अनेक कानूनों में बदलाव संसद द्वारा ही किया जा सकता है.

बच्चों और उत्तराधिकार का मसला
समलैंगिक वर्ग द्वारा कानूनी प्रक्रिया के तहत बच्चों को गोद लिया जा सकता है. उनमें से कौन माता और पिता की भूमिका निभाएगा और क्या उसमें रिवर्स प्रक्रिया हो सकती है, ऐसे कई सवालों का जवाब संसद के कानून से ही मिलेगा. समलैंगिकों की सम्पत्ति में बच्चों और परिवारजनों के उत्तराधिकार का फैसला हिन्दू या मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं हो सकता, तो इसके लिए भी संसद द्वारा कानून में बदलाव करना पड़ेगा. धारा 377 रद्द करने के लिए शशि थरूर के प्राईवेट बिल को सिर्फ 14 वोट मिले थे, तो फिर इन अहम् मसलों पर संसद में कानून को कैसे मंजूरी मिलेगी?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुर्नविचार याचिका पर क्या होगा
समलैंगिकता पर फैसले से सहमत होने वाले लोग भी इसको कानूनी तौर पर दोषपूर्ण मान रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की पीठ ने केशवानन्द भारती मामले में 1973 में फैसले में कहा था कि संविधान के अनुसार संसद और अदालतों का कार्यक्षेत्र पूरी तरह से निर्धारित है. इसे संविधान का मूल ढांचा भी कहा जाता है जिसका उल्लंघन सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की पीठ ने 2013 के फैसले में धारा 377 को रद्द करने से मना करते हुए यह कहा था कि इस बारे में कानून बनाना संसद का काम है.

पांच जजों की संविधान पीठ का वर्तमान फैसला तेरह जजों की पीठ के फैसले के खिलाफ होने के आधार पर इसके खिलाफ पुर्नविचार याचिका पर सुनवाई हो सकती है. वर्तमान मुख्य न्यायाधीश 2 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो जायेंगे तो पुर्नविचार याचिका की पीठ का गठन नए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा किया जाएगा. नए मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल में समलैंगिकता पर क्या कोई नई कानूनी व्याख्या उभर कर सामने आएगी, इसका निर्णय अगले महीनो में होगा?

(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

Trending news