एक किताब पर प्रतिबंध को उचित क्यों नहीं ठहराया जा सकता?
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एक किताब पर प्रतिबंध को उचित क्यों नहीं ठहराया जा सकता?

‘हेट स्पीच’ यानी नफरत फैलाने वाले वक्तव्य और ‘फ्री स्पीच’ यानी अभिव्‍यक्ति की आजादी में अंतर कैसे किया जाए. एक किताब 'Delhi Riots 2020: The Untold Story' को लेकर लगने वाले प्रतिबंध के चलते ये बहस और तेज हो चली है.

एक किताब पर प्रतिबंध को उचित क्यों नहीं ठहराया जा सकता?

भारतीय संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार तो देता है लेकिन वो दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की अनुमति नहीं देता. भारत में चर्चा हो रही है कि ‘हेट स्पीच’ यानी नफरत फैलाने वाले वक्तव्य और ‘फ्री स्पीच’ यानी अभिव्‍यक्ति की आजादी में अंतर कैसे किया जाए. एक किताब 'Delhi Riots 2020: The Untold Story' को लेकर लगने वाले प्रतिबंध के चलते ये बहस और तेज हो चली है. दिल्ली में इस साल जनवरी में हुए दंगों को लेकर एक किताब सितंबर में छपकर आना तय हुई थी, लेकिन 22 अगस्त को प्रकाशक ने ऐलान किया कि वो इस किताब को नहीं छापेंगे.

एक ट्विटर पोस्ट जिसमें दावा किया गया था कि प्रकाशक ब्लूम्सबरी ने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा को बतौर ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ आमंत्रित किया, वो वायरल हो गई. ब्लूम्सबरी ही वो प्रकाशक है, जो इस किताब को छापने वाला था. कपिल मिश्रा वही नेता हैं, जिन्होंने दिल्ली दंगों से एक दिन पहले दी गई तथाकथित ‘हेट स्पीच’ दी थी और इस आमंत्रण के चलते सोशल मीडिया पर लोग गुस्सा होने लगे और तेजी से एक हैशटैग ‘Boycott Bloomsblury’ ट्रेंड करने लगा. बाद में ब्लूम्सबरी ने किताब छापने पर रोक लगा दी.

करीब 50 किताबें भारत में प्रतिबंधित
सवाल ये है कि क्या ये या और कोई किताब प्रतिबंधित होनी चाहिए? इसका जवाब है- नहीं. करीब 50 किताबें भारत में प्रतिबंधित की गई हैं, जिनमें सलमान रुश्‍दी की ‘द सेटेनिक वर्सेज’ भी शामिल है, जिसे राजीव गांधी सरकार ने 1988 में नफरत फैलाने वाली बताकर प्रतिबंधित कर दिया था. 2003 में पश्चिम बंगाल सरकार ने तस्लीमा नसरीन की किताब ‘लज्जा’ पर प्रतिबंध लगा दिया था.

भारत में लिबरल्स (उदारवादी), जो लगातार सरकार पर बढ़ती तथाकथित असहिष्णुता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के लगातार आरोप लगाते रहते हैं, ब्लूम्सबरी पर दबाव डालकर 'Delhi Riots 2020' किताब को प्रतिबंधित करके अपने ऊपर ही एक गोल कर चुके हैं.

जो 'Delhi Riots 2020' किताब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उनको पता होना चाहिए कि कोई भी किताब जिस पर प्रतिबंध लगाया जाता है, वो किसी और प्लेटफॉर्म पर या किसी और प्रकाशक के यहां छपने का रास्ता ढूंढ ही लेती है. हाल ही में पेरुमल मुरुगन की एक किताब ‘माधोरुभगन’ जिसे 2016 में बैन किया गया था, कोर्ट ने उस पर लगा बैन गैरकानूनी करार दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, ‘’पाठक के पास हमेशा पढ़ने में चुनने का अधिकार होता है, अगर आपको किताब पसंद नहीं है तो इसे फेंक दीजिए, किसी किताब को पढ़ना जरूरी नहीं है’’.

इस फैसले में आगे कहा गया है ,  ''साहित्यिक पसंद में विविधता हो सकती है, जो किसी एक को ठीक लगे या स्वीकार्य हो, जरूरी नहीं है कि वो दूसरों को भी हो. अभी तक लिखने के अधिकार पर कोई रोक नहीं है’’. क्योंकि किसी किताब में हेट स्पीच या नफरत फैलाने की बातें हैं, इस पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. हिटलर की ‘मीन कैम्फ’ को ही लीजिए? ये किताब ना केवल नफरत से भरी हुई है, बल्कि साहित्य की एक खराब, अतार्किक और दोहराव वाली कृति है. फिर भी ‘मीन कैम्फ’ हमेशा दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक रही है.

अमेजन ने इसके कई एडीशंस बंद कर दिए हैं लेकिन इसकी बिक्री लगातार बढ़ती जा रही है. ईमानदारी से कहा जाए तो किसी भी किताब को उसके पाठकों से दूर करने के लिए प्रतिबंधित करना बेहतरीन तरीका नहीं है क्योंकि एक किताब को प्रतिबंधित करने से ज्यादा लोगों में उसके प्रति दिलचस्पी जगाने का और कोई तरीका नहीं है.

आप हेट स्पीच की आलोचना कर सकते हैं लेकिन किसी पर प्रतिबंध आरोपित करना बिलकुल अलग-अलग मुद्दे हैं. किसी भी वजह से किसी भी सरकार के द्वारा और किसी भी परिस्थिति में किसी भी किताब पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए.

 

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