टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली आज 48 साल के हो गए हैं. उनका करियर बहुत सारे रोचक किस्सों से भरा रहा, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी बायोग्राफी 'ए सेंचुरी इज नॉट एनफ' में किया है.
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नई दिल्ली: साल 2000 में नई सदी ही शुरू नहीं हुई बल्कि भारतीय क्रिकेट टीम का किस्मत भी बदल गई. कभी 'टेलेंटड' लेकिन 'बदकिस्मत' का तमगा साथ लेकर चलने वाली टीम इंडिया ने अचानक विपक्षी टीमों के जबड़े से जीत छीननी चालू कर दी. टीम इंडिया में इस बदलाव के जिम्मेदार थे सौरव गांगुली (Sourav Ganguly), जिन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के सफर को हार के 'दलदली रास्ते' से निकालकर जीत के उस 'हाइवे' पर ला दिया.
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इसी राह पर चलकर पहले महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) ने नई ऊंचाइयां छुई और अब विराट कोहली (Virat Kohli) नित नई सफलताएं हासिल कर रहे हैं. टीम इंडिया को ऐसा मजबूत बनाने वाले 'दादा' गांगुली आज अपना 48वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं. इस मौके पर हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं, उनके क्रिकेट जीवन के कुछ कहे-अनकहे किस्से.
हरभजन को टीम में शामिल कराने के लिए दिया था धरना
सौरव गांगुली अपनी पसंद की टीम के लिए किस हद तक जा सकते थे, इसका नजारा साल 2001 की भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज से पहले देखने को मिला. दादा को ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों की ऑफ स्पिन के खिलाफ कमजोरी का पता था. इसी कारण उन्होंने सलेक्टरों के साथ मीटिंग में हरभजन सिंह (Harbhajan Singh) को टीम में शामिल करने पर जोर दिया. सलेक्टरों ने गांगुली की बात ठुकरा दी. हरभजन सिंह उस समय तक टीम इंडिया के लिए पर्याप्त मौके हासिल कर चुके थे और बहुत सफल नहीं हुए थे.
इसकी वजह से सलेक्टर भज्जी पर पर दांव लगाने को तैयार नहीं थे. लेकिन 'दादा' को मना करना इतना आसान नहीं था. उन्होंने मीटिंग हॉल में ही धरना चालू कर दिया. यह धरना तभी खत्म हुआ, जब हरभजन का नाम टीम में आ गया. इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास तो सभी को पता है. कोलकाता टेस्ट में हरभजन ने पहली पारी में हैट्रिक लगाते हुए 7 विकेट लिए और दूसरी पारी में 6 विकेट चटकाए. साथ में वीवीएस लक्ष्मण (VVS Laxman) और राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) की जबरदस्त ऐतिहासिक साझेदारी रही. नतीजा ये रहा कि टीम इंडिया इस मुकाबले को जीत गई और यहीं से उसकी कामयाबी का नया दौर शुरू हो गया.
सीनियर का किट बैग नहीं उठाने पर 4 साल रहे टीम से बाहर
टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम के अंदर भी जमकर राजनीति होती है. इसका खुलासा कोई न कोई क्रिकेटर करता ही रहता है. इस राजनीति का खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, चाहे आप कितने ही पॉवरफुल ग्रुप से संबंध क्यों न रखते हों. यह अनुभव सौरव गांगुली को भी अपने करियर के पहले ही दौरे पर हो गया था. बताया जाता है कि 1992 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर अपना डेब्यू करने के लिए गए सौरव को एक सीनियर क्रिकेटर ने मैदान से अपना किट बैग उठाकर टीम बस तक ले जाने के लिए कहा.
सौरव ने इससे इनकार कर दिया तो वह सीनियर क्रिकेटर भड़क गए. उस क्रिकेटर ही गिनती तत्कालीन कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन (Mohammad Azharuddin) के करीबियों में से होती थी. उस क्रिकेटर ने मीडिया में सौरव के अहंकारी होने, खुद को महाराज (जबकि सौरव का निकनेम महाराज है) सरीखा मानने जैसी गलत बातें उड़ा दीं.
रही-सही कसर इस दौरे पर वेस्टइंडीज के खिलाफ मिले बेंसन एंड हेजेज सीरीज के इकलौते वनडे मैच में सौरव के खराब प्रदर्शन ने पूरी कर दी. सौरव को पूरे दौरे पर केवल नेट प्रैक्टिस में गेंद फेंकने तक ही सीमित कर दिया गया. एक सीनियर क्रिकेटर ने तो उन्हें अपने ड्रेसिंग रूम में बुलाकर बिना बात फटकार भी लगा दी. नतीजतन दौरे के खत्म होने से पहले ही सौरव के लिए भारत वापसी का टिकट कट चुका था. इसके बाद सौरव को अपना पहला टेस्ट मैच खेलने के लिए टीम में वापसी करने में पूरे 4 साल लगे.
Happy Birthday, The Prince of Kolkata, @SGanguly99, one of India's Greatest Captain.#HappyBirthdayDada
Ganguly & Lord's - Made For Each Other
Pic 1: 1996 - Ganguly's Debut Test at Lord's
Pic 2: 2002 - Ganguly waving T-shirt after winning the NatWest Tri-Series Final at Lord's pic.twitter.com/0OK71TGAoV— Cricketopia (@CricketopiaCom) July 7, 2020
चैपल प्रकरण में कप्तानी और टीम में स्थान खोने पर लेने वाले थे संन्यास
सौरव गांगुली को अपने करियर में सबसे ज्यादा दुख ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान ग्रेग चैपल को कोच बनाकर लाने के बाद उन्हीं के कारण अपनी कप्तानी और टीम में स्थान खोने का रहा. उन्होंने इसे चैपल का विश्वासघात माना. गांगुली ने अपनी बायोग्राफी 'ए सेंचुरी इज नॉट एनफ' में इस घटना के बारे में बताते हुए लिखा था कि वे इतना टूट गए थे कि संन्यास की घोषणा करने वाले थे, लेकिन उनके पिता चंडीदास गांगुली ने रोक लिया. गांगुली ने खुद बताया है कि दिलीप वेंगसरकर की अध्यक्षता वाली चयनसमिति ने उन्हें निकालने के लिए कप्तान अनिल कुंबले से भी नहीं पूछा था. मैं गुस्से में संन्यास की सोच रहा था, लेकिन पापा ने संघर्ष के लिए कहा.
गांगुली ने इसके बाद घरेलू क्रिकेट में जबरदस्त प्रदर्शन किया. टीम में वापसी से पहले बोर्ड प्रेसिडेंट एकादश के लिए खेलकर इम्तहान देने को कहा गया. एक क्रिकेटर जिसने अपने करियर में 100 टेस्ट और 250 से ज्यादा वनडे खेलकर 15 हजार से ज्यादा इंटरनेशनल रन बनाए हों, उसके लिए ये बेइज्जती जैसा था. गांगुली का कहना है कि मैंने एक बार इनकार कर दिया था, लेकिन कुंबले ने मुझे मनाया. इसके बाद टीम में वापसी हुई और मैंने मोहाली में शतक जमाया और नागपुर में करीबी अंतर से चूक गया था. इसके बाद मैंने गर्व के साथ सलेक्टरों को नीचा दिखाते हुए संन्यास की घोषणा की.
शाहरुख खान को देखना पड़ा था सौरव का क्या है जलवा
आईपीएल (IPL) की शुरुआत होने पर बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान ने अपनी टीम कोलकाता नाइट राइडर्स (Kolkata Knight Riders) की कमान सौरव गांगुली को दी थी. इसका नतीजा ये रहा था कि उनकी टीम को पहले ही दिन से कोलकाता में जबरदस्त ब्रांड इमेज मिल गई थी.
3 सीजन बाद सौरव से नाखुश होकर जब शाहरुख ने आईपीएल 2011 से ठीक पहले उन्हें कप्तानी और टीम से हटाया तो यही ब्रांडिंग अचानक धड़ाम हो गई थी. सौरव का कोलकाता में जलवा क्या है, इसका नजारा शाहरुख ने तब देखा था, जब सौरव पुणे वारियर्स की तरफ से केकेआर के खिलाफ आईपीएल मैच खेलने कोलकाता आए. केकेआर की जर्सी से भरे रहने वाले इडेन गार्डन स्टेडियम में आधे से ज्यादा खेल प्रेमी पुणे वारियर्स की जर्सी पहनकर उसका समर्थन करने पहुंचे थे.
युवराज को डेब्यू मैच में ही बना दिया था अप्रैल फूल
सौरव गांगुली किस कदर मजाकिया भी थे, इसका एक उदाहरण युवराज सिंह (Yuvraj Singh) ने एक बार सुनाया था. युवराज ने बताया कि वे कीनिया के खिलाफ अपना डेब्यू मैच खेलने वाले थे. नैरोबी में होने वाले इस मैच से पहले दिन शाम को सौरव ने उन्हें कहा कि कल तुम्हे ओपनिंग करनी है. युवराज ने बताया कि ये सुनकर मैं नर्वस हो गया और पूरी रात जागता रहा. दूसरे दिन पहले कीनिया ने बल्लेबाजी की. उसके बाद टीम इंडिया की बैटिंग आई तो मैं पैड पहनकर बैठ गया. मैं बैठा रहा और ओपनिंग तो छोड़ो मेरी बल्लेबाजी ही नहीं आई. बाद में पता चला कि इस तरीके से सौरव ने मेरी रैगिंग की थी. बहुत दिन तक टीम के साथी इस किस्से की चर्चा कर हंसते रहे.
हालांकि युवराज भी इसका बदला सौरव से ले चुके हैं. उन्होंने भी टीम के अन्य साथियों के साथ मिलकर सौरव का 1 अप्रैल वाले दिन अप्रैल फूल बनाया था. सभी ने मिलकर सौरव के ड्रेसिंग रूम में आते ही उन्हें घेरकर तानाशाह और कई अन्य बातें कहनी चालू कर दीं. सौरव सफाई देने लगे, लेकिन कोई भी खिलाड़ी सुनने को तैयार नहीं था. इस पर सौरव ने कप्तानी छोड़ने की घोषणा कर दी. इसके बाद राहुल द्रविड़ ने उन्हें बताया कि सीरियस होने की जरूरत नहीं है, लड़कों ने तुम्हारा अप्रैल फूल बना दिया है.