खेल से कहीं ज़्यादा हैं आईपीएल के मायने: सुधांशु गुप्त
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खेल से कहीं ज़्यादा हैं आईपीएल के मायने: सुधांशु गुप्त

खेल से कहीं ज़्यादा हैं आईपीएल के मायने: सुधांशु गुप्त

भारत एक उत्सवधर्मी देश है. यहां हर चीज कों उत्सव का स्वरूप दे देना आम बात है. मजमें, मेले, नुक्कड़, नौटंकी हर तरह के उत्सव को भारतीय जनमानस पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ सेलिब्रेट करता है. आम क्रिकेट सीरीज को भी भारत उत्सव की ही तरह लेता है. जब आईपीएल का आगाज हुआ तो यह कहा गया कि यह क्रिकेट का सबसे बड़ा उत्सव है. उम्मीद की गई कि इस उत्सव को सही अर्थों में उत्सव बनाने में भारतीय मानस पूरी रुचि लेगा और ऐसा ही हुआ भी. 

आईपीएल में आने वाले दर्शकों ने यह साबित कर दिया कि वे इस टूर्नामेंट को एक उत्सव के रूप में स्वीकार करते हैं. लेकिन कुछ दिक्कतें थीं. लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल था कि वे किस टीम का समर्थन करें, किस टीम की जीत पर खुश हों और किस टीम की हार का दुख मनाए. आमतौर पर जब दो टीमों के बीच मैच होता है तो दोनों देशों का राष्ट्रगान बारी-बारी से गाया जाता है. मैदान पर दोनों टीमों के बीच गेंद और बल्ले के अलावा जुबानी जंग भी चलती रहती है. 

दोनों ही टीमें पूरे पेशन और जुनून के साथ मैदान पर परफॉर्म करती हैं. दोनों टीमें जीत हासिल करने के लिए जी जान लगा देती हैं, लेकिन आईपीएल में ना तो राष्ट्रगान के लिए कोई जगह नहीं थी... होती भी कैसे. भारत, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे देशों के क्रिकेट खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में शिरकत कर रहे हैं. 

खेल रही सभी टीमों में कई देश के खिलाड़ी शामिल हैं, इसलिए राष्ट्रगान संभव नहीं था. दूसरी समस्या यह आई कि दर्शक किस टीम का समर्थन करें. हर टीम में उनके पसंदीदा भारतीय खिलाड़ी शामिल हैं. एक टीम में धोनी हैं तों दूसरी टीम में विराट, किसी टीम में शिखर धवन हैं तो किसी में रोहित शर्मा, किसी में केदार जाधव है तो किसी में ऋषभ पंत. यानी किस टीम की जीत पर खुश होना है और किस टीम की हार पर अफसोस, इस दुविधा से भी भारतीय दर्शकों को बाहर आना था. लिहाजा एक ट्रेक पर सोचते हुए यह तय किया गया कि यह टूर्नामेंट हार जीत से ऊपर है. इसमें सिर्फ खेल का आनंद उठाना है और मैदान पर चौक्कों-छक्कों और गिरने वाली विकेट पर नाचती चीयर्स लीडर की तरह मन से नाचना है. 

मैच के लिए आने वाली भीड़ अब तक अपने इसी धर्म को निभाती रही है. अच्छा लगता है यह देखकर जब क्रिस गेल की बड़ी पारी पर विराट कोहली उन्हें शाबाशी देते हैं, जब स्मिथ की शानदार बैटिंग के लिए धोनी उनकी पीठ थपथपाते हैं. जब विलियमसन रन बनाते हैं तो डेविड वॉर्नर तालियां बजाते हैं. देखने से यह सामान्य सी बात लगती है. लेकिन गंभीरता से देखा जाए तो आईपीएल एक ऐसा ग्लोबल फिनोमिना है, जहां राष्ट्रों की सीमाएं खुद ब खुद समाप्त होती दिखाई पड़ती हैं. 

मैदान पर उस तरह का माहौल नहीं दिखाई देता जैसे दो देशों के बीच होने वाले मैचों के दौरान दिखाई देता है. आज के इस दौर में जहां कट्टरता खेल के मैदान पर भी साफतौर पर देखी जा सकती है, जहां हर टीम, हर हाल में जीतना चाहती हैं, वहां आईपीएल में हार जीत से भी ज्यादा आपसी सौहार्द देखने को मिलता है. यदा कदा ही ऐसा होता है कि दो टीमों के खिलाड़ी आपस में भिड़ जाएं. 

भारतीय समाज में सदियों से ''वसुदेव कुटुंबकम'' की अवधारणा रही है. वसुदेव कुटुंबकम यानी पूरी दुनिया एक परिवार है. आईपीएल में यह अवधारणा पूरी तरह लागू होती दिखाई पड़ती है. यहां कोई ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज, भारत या अन्य देश का खिलाड़ी नहीं है. यहां सभी खिलाड़ी एक परिवार के सदस्य हैं जो उसी तरह खेल रहे हैं जिस तरह बचपन में बच्चे टीमें बांट कर खेलते हैं. इनके लिए मुल्क और मज़हब कोई मायने नहीं रखता. 

तापमान कितना भी क्यों न हों ये खिलाड़ी हर मौसम में खेलने के लिए तैयार रहते हैं. हैदराबाद में, आईपीएल के दसवें संस्करण की जब शुरुआत तो तापमान 40 डिग्री सेल्यिस होगा. यानी गर्मी अपनी पीक पर होगी, लेकिन मजाल है किसी भी खिलाड़ी के चेहरे पर कोई शिकन हो. किसी ने कहा था कि युद्ध खेल के मैदान पर लड़े जाने चाहिए, लेकिन आईपीएल इस धारणा को भी गलत साबित करता है. आईपीएल कहता है कि खेल पहले है, हमें एक परिवार की तरह खेलना है, हार-जीत होगी ही, लेकिन वह खेल से बड़ी नहीं है. 

(लेखक सुधांशु गुप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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