Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: सियासत की भीड़ में एक अलग चेहरा थे पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेई, ऐसा था राजनीतिक सफर
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Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: सियासत की भीड़ में एक अलग चेहरा थे पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेई, ऐसा था राजनीतिक सफर

Tribute To Atal Bihari Vajpayee: अटलजी की समाधि स्थल पर सबसे पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. इसके बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उन्हें फूल चढ़ाए. इसके बाद बारी-बारी से पीएम मोदी समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं ने पूर्व पीएम वाजपेई को श्रद्धांजलि दी.

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: सियासत की भीड़ में एक अलग चेहरा थे पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेई, ऐसा था राजनीतिक सफर

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: 'टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं... गीत नया गाता हूं.' इस प्रेरणादायक कविता के रचयिता और भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की आज पांचवी पुण्यतिथि है (Atal Bihari Vajpayee 5th Death Anniversary). इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) उनके समाधि स्थल सदैव अटल पहुंचे. जहां पर पीएम मोदी ने बीजेपी की नींव रखने वाले अटलजी को श्रद्धांजलि दी. इस दौरान उनके साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई बीजेपी नेताओं ने पूर्व पीएम को श्रद्धांजलि दी. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि स्थल पर जाकर श्रद्धांजलि देंगे. 2024 का चुनाव करीब है, ऐसे में सियासतदान कोई भी मौका नहीं छोड़ना नहीं चाहते.

'सदैव अटल'

भारतीय राजनीति के दिग्गज और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने करीब 6 दशक तक सियासत में अपनी अमिट छाप छोड़ी. अटल बिहारी वाजपेयी दो बार राज्यसभा और दस बार लोकसभा सदस्य चुने गए. भारत रत्न से सम्मानित अटल जी देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने.
अपनी दूरदर्शिता और शब्दों के साथ भाषा पर बेजोड़ पकड़ की वजह से अटल जी ने सियासत, साहित्य और समाज के हर क्षेत्र में अलग मुकाम हासिल किया. कितनी भी कठिनाइयां सामने रही हों, अटलजी ने अपने मजबूत इरादों के साथ उनका डटकर मुकाबला किया. अटल जी के लिए राष्ट्रहित हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर रहा.

राजनीतिक सफर

25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे अटल जी को छात्र जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में गहरी रुचि रही. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से राजनीति का पाठ पढने वाले अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. पहली बार 1957 में जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर से लोकसभा के लिए चुने गए. अटल जी के लिए सबसे बड़ा मौका तब आया जब इमरजेंसी के बाद 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बनी. मोरारजी जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री बने और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया. विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया और भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया.

बीजेपी की स्थापना

1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी और कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया. वे बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अटल जी 1980 से 1986 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे. इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब 1984 में आम चुनाव हुए तो बीजेपी को महज 2 सीट ही मिली. इसके बाद भी अटलजी पार्टी को मजबूत करने में लगे रहे. यह उनके करिश्माई नेतृत्व का नतीजा ही था कि 1984 में सिर्फ दो सीट पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी ने 1989 के चुनाव में 85 सीट जीतकर भारतीय लोकतंत्र में नया मुकाम हासिल किया. 

पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी सरकार ने पूरा किया कार्यकाल

1996 के लोकसभा चुनाव में 161 सीटें जीतकर बीजेपी पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनी.अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बनें. हालांकि उनकी सरकार महज 13 दिन ही चली. 1998 में देश की जनता ने एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी पर भरोसा जताया और बीजेपी 182 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल जी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने.  उनके नेतृत्व में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन ने केन्द्र में सरकार बनायी. ये सरकार 13 महीने तक चली. 1999 में तेरहवीं लोकसभा के चुनाव में बीजेपी लगातार तीसरी बार सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बनी. इस चुनाव के बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के तौर पर 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका मिला. अटल जी की अगुवाई में केन्द्र में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.

पोखरण में दो परमाणु परीक्षण

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते भारत ने 1998 में पोखरण में दो परमाणु परीक्षण किए. ये एक साहसिक फैसला था. ये विश्व पटल पर एक नए और मजबूत भारत का उदय था और इसके अगुवा थे सबके चहेते अटलजी. पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर दबाव बनाने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इसके बावजूद अटलजी परमाणु शक्ति संपन्न देशों की नाराजगी से तनिक भी विचलित नहीं हुए.

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नही...वो हमेशा भारत के पड़ोसी देशों से अच्छे संबंधों की वकालत करते थे. अटल जी ने पाकिस्तान से साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. उन्होंने दिल्ली और लाहौर के बीच पहली बार सीधी बस सेवा 20 फ़रवरी 1999 को शुरू की और खुद पाक सीमा पर एक बस से अटारी से वाघा तक का सफ़र किया. 

कारगिल में जीत

लेकिन पाकिस्तान को हमेशा की तरह भारत के भाईचारे का ये संदेश रास नहीं आया. इधर अटल जी दोस्ती की इबारत लिख रहे थे तो उधर पाकिस्तान कारगिल जंग की तैयारी पूरी कर चुका था. कारगिल सेक्टर में आतंकवादियों का मुखौटा ओढ़कर पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी. लेकिन भारत ने अपने जाबांज सैनिकों के शौर्य और साहस की बदौलत पाकिस्तान को एक बार फिर मुंहतोड़ जवाब दिया और कारगिल में विजय पताका फहरा दी. 

16 अगस्त 2018 को निधन

कारगिल में विजय के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व का लोहा एक बार फिर पूरी दुनिया ने माना. वाजपेयी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि समाज के सभी तबकों में वे लोकप्रिय रहे. उनकी ओजस्वी कविताएं जोश से भर देती हैं. भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह ने अपने विरोधियों का भी दिल जीता और दुनिया का भी. 16 अगस्त 2018 को अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली के एम्स में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया.

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