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नई दिल्ली: देव भूमि उत्तराखंड (Dev Bhoomi Uttarakhand) अपने सुंदर पहाड़ों के लिए काफी मशहूर है. यहां चार धाम तो हैं ही साथ ही ऐसे तमाम मंदिर हैं जो विज्ञान के लिए भी अजूबा हैं. लोग यहां ट्रेकिंग करने भी जाते हैं और आनंद करने भी. कुछ-कुछ मंदिर तो ऐसे हैं जिनके नियम काफी अलग हैं. ऐसा ही एक मंदिर चमोली (Chamoli) जिले में स्थित है. जो बंशी नारायण मंदिर (Banshi Narayan Mandir) के नाम से लोकप्रिय है.
इस मंदिर की खास बात ये है कि यह मंदिर पूरे साल बंद रहता है, यानी साल के 365 दिनों में से यह मंदिर पूरे 364 दिन तक बंद रहता है. मंदिर को सिर्फ एक दिन रक्षाबंधन के दिन पूजा-अर्चना के लिए खोला जाता है. जिसका इंतजार श्रद्धालु भी करते हैं. रक्षाबंधन के दिन दूरदराज के प्रदेशों से भी यहां भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंचती है.
रक्षाबंधन वाले दिन इस मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ दिन के समय ही खोले जाते हैं. मतलब जब तक सूर्य की रोशनी है, तब तक ही मंदिर के कपाट खुले रहते हैं, उसके बाद जैसे ही सूर्यास्त होने लगता है, तब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. चमोली स्थित बंशी नारायण मंदिर साल में एक दिन खुलता है, लेकिन उस दिन भी मंदिर को खोलने का समय निर्धारित होता है. ऐसे में रक्षाबंधन के दिन दूरदराज से आए श्रद्धालु मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए सुबह से पहुंचने लगते हैं.
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कहा जाता है कि विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्ति के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुए थे. इसके बाद से देव ऋषि नारद भगवान नारायण की यहां पर पूजा करते हैं. इसी वजह से यहां पर भूलोक के मनुष्यों को सिर्फ एक दिन के लिए पूजा का अधिकार मिला है. वहीं एक अन्य कथा के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने. भगवान ने इस आग्रह को स्वीकार किया. इसके बाद राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए. कई दिनों तक जब भगवान विष्णु के दर्शन लक्ष्मी जी को नहीं हुए तो उन्होंने नारद मुनि ढूंढने को कहा, फिर उन्होंने बताया कि वह पाताल लोक में हैं और राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं.
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इसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को विष्णु भगवान की मुक्ति के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षासूत्र बांधने का उपाय सुझाया. कहा जाता है कि नारद मुनि के सुझाव पर माता लक्ष्मी ने अमल किया और उन्होंने राजा बलि को रक्षासूत्र बांध कर भगवान विष्णु को मुक्त कराया. जिसके बाद वह इसी स्थान पर एकत्रित हुए. वहीं वर्गाकार गर्भगृह वाले बंशीनारायण मंदिर के विषय में एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहां वर्ष में 364 दिन नारद मुनि भगवान नारायण की पूजा करते हैं. श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ नारद मुनि भी पातल लोक गए थे, इस वजह से केवल उस दिन वह मंदिर में नारायण की पूजा न कर सके. जिसके बाद आम लोगों को उस दिन पूजा करने का अधिकार मिला.
प्रत्येक वर्ष स्थानीय महिलाएं वंशीनारायण मंदिर आती हैं और भगवान को राखी बांधती हैं. यह माना जाता है कि वंशीनारायण मंदिर पांडवों के काल में निर्मित हुआ था. वहीं यहां की फुलवारी की दुर्लभ प्रजाति के फूलों से उनकी पूजा होती है. गांव के लोग रक्षा सूत्र भगवान की कलाई पर बाधते हैं. वहीं बंशी नारायण मंदिर के पुजारी राजपूत जाति के होते हैं.
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