पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के 'जय जवान, जय किसान' के नारे के बाद से खेती और किसान शब्द का इस्तेमाल बढ़ा.
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नई दिल्लीः वर्ष 1947 में देश आजाद होने के बाद से अब तक के बजट भाषण में कई तरह की रोचक बातें दोहरायी जाती रही हैं. वित्त मंत्री बजट पेश होने के वक्त के गंभीर माहौल को हल्का करने के लिए शेरो-शायरी की भी मदद लेते रहे हैं. लेकिन इस सबके बीच अब तक के सभी बजट में अगर कोई शब्द सबसे ज्यादा बार इस्तेमाल हुआ है तो वो है 'किसान', 'किसानों', 'खेती' और 'कृषि'. अगर आप आजाद भारत के सभी बजट भाषणों पर गौर करें तो छठे दशक के मध्य तक के भाषणों में कृषि की कभी-कभार चर्चा होती थी. इसके बाद देश में अनाज संकट पैदा होने के 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया. तब से बजट का एजेंडा बदल गया. उसके बाद से 2000 तक के बजट में कृषि और खेती की खूब चर्चा होती रही. उसके बाद 2002-2003 के बजट में कृषि की चर्चा में थोड़ी कमी.
मोरारजी देसाई और प्रणब मुखर्जी ने तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के साथ पेश किया बजट
पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी देश के ऐसे वित्त मंत्री रहे हैं जिन्होंने तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के साथ बजट पेश किया. मोरारजी पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और तीसरे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री रहे. सबसे अधिक 10 बार बजट पेश करने का रिकार्ड भी उनके नाम ही है. इसके बाद प्रणब मुखर्जी की नाम आता है. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह की सरकार में बजट पेश किया.
पीएम रहते हुए नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी ने भी पेश किया है बजट
पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने पीएम रहते हुए अल्प काल के लिए वित्त मंत्रालय का भी अतिरिक्त कार्यभार संभाला था. इस दौरान इन तीनों ने बजट भी पेश किया था. 1987 में वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभालने वाले पीएम राजीव गांधी ने बजट पेश किया था और उन्होंने चर्चित कॉरपोरेट टैक्स की शुरुआत की थी.