MP Elections 2023: लंदन की थेम्स जैसे थे वादे लेकिन बन गई नाला; ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी का ऐसा हो गया हाल
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MP Elections 2023: लंदन की थेम्स जैसे थे वादे लेकिन बन गई नाला; ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी का ऐसा हो गया हाल

Subarnarekha River Photos: सौंदर्यीकरण के नाम पर नदी के साथ ही रहे खिलावाड़ और करप्शन को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है. याचिका दायर करने वाले एडवोकेट विश्वजीत कहते हैं कि ग्वालियर इस दुनिया का शायद एकलौता शहर है जहां शहर में बहने वाली नदी को बर्बाद करके शहर का विकास किया जा रहा है. 

MP Elections 2023: लंदन की थेम्स जैसे थे वादे लेकिन बन गई नाला; ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी का ऐसा हो गया हाल

MP Election 2023: सरकार और प्रशासन की लापरवाही कैसे एक नदी को नाले में तब्दील कर देती है, इसकी जीती जागती तस्वीर है ग्वालियर शहर के बीच बहती स्वर्ण रेखा नदी. रानी लक्ष्मीबाई की वीरगति की साक्षी रही इस नदी की हालत देख आपको यकीन नहीं होगा कि कभी यह नदी इस शहर की शान हुआ करती थी. लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर स्वर्णरेखा का कायाकल्प करने के नाम पर करोड़ों रुपये बहा दिए गए लेकिन नदी की हालत बद से बदतर हो गई.पढ़ें 'स्वर्णरेखा' के नदी से नाला बनने की कहानी ZEE NEWS की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में.

स्वर्ण रेखा नदी भारत के गौरवशाली इतिहास की गवाह रही है. अंग्रेजों से लोहा लेते समय वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई इसी नदी के किनारे वीरगति को प्राप्त हुई थीं. कहते हैं कि उनका घोड़ा नदी को पार नहीं कर पाया था. नदी के पास में ही लक्ष्मीबाई की समाधि भी बनाई गई है. लेकिन सौंदर्यीकरण के नाम पर करीब 200 करोड़ से ज्यादा के खर्च के बावजूद इस ऐतिहासिक धरोहर को संजो पाने में प्रशासन नाकामयाब रहा है. अब हाल ही में इस नदी के ऊपर करीब 850 करोड़ की लागत का एलिवेटेड रोड बनाने का प्रोजेक्ट भी सरकार ने लॉन्च कर दिया है, जिसे लेकर नदी में पिलर खड़े करने का काम भी शुरू कर दिया गया है.

कुछ दिन चली थी बोट लेकिन...

योजना थी कि स्वर्ण रेखा नदी में हनुमान बांध से लेकर 13 किलोमीटर के इलाके में साफ पानी बहाने और नाव चलाने के सपने दिखाए गए थे. कुछ दिन बोट चली भी लेकिन इसमें साफ पानी नहीं बह सका. जिस जगह बोट चलाई गई उस जगह का जायजा Zee news की टीम ने लिया

सिंधिया रियासत के दौरान इस नदी को बनाने का मुख्य कारण यही था कि लोगों को साफ पानी मिल सके ताकि उनकी प्यास बुझाई जा सके. इसी के चलते नदी को बीचो-बीच से गुजार कर शहर के बाहर आसपास के बांधों से जोड़ा गया. लेकिन सरकारी परियोजना के चलते नदी को कंक्रीट का बना दिया गया. नदी के आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों का कहना है कि नाले को पक्का करने से इलाके में वॉटर रिचार्जिंग की समस्या है. कच्चा रहने से वॉटर टेबल रिचार्ज होती रहती थी. ये लोग नदी के पुराने स्वरुप को भी याद करते हैं जब इसमें साफ पानी हुआ करता था.

सौंदर्यीकरण के नाम पर नदी के साथ ही रहे खिलावाड़ और करप्शन को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है. याचिका दायर करने वाले एडवोकेट विश्वजीत कहते हैं कि ग्वालियर इस दुनिया का शायद एकलौता शहर है जहां शहर में बहने वाली नदी को बर्बाद करके शहर का विकास किया जा रहा है. हमने कोर्ट से मांग की कि इस नदी के डेवलपमेंट के नाम पर 1982 से लेकर आज तक जो खर्चा हुआ उसकी जांच होनी चाहिए. साथ ही नदी का मूलस्वरुप उसे वापस मिलना चाहिए. लेकिन कोर्ट के बार-बार स्टेटस रिपोर्ट मांगने के बावजूद कोई रिपोर्ट आज तक नहीं पेश की गई.

200 करोड़ से ज्यादा हुए खर्च मगर...

उनका कहना है कि 200 करोड़ से ज्यादा इसे डेवलप करने पर खर्च हुआ. नगर निगम को जब नदी सौंपी गई तो 22 करोड़ रुपये सीवर लाइन को बाहर डालने के लिए दिया गया. एक उम्मीद जागी थी कि ग्वालियर लंदन की तरह विकसित होगा लेकिन क्या हाल बना दिया. इस नदी को लाभ का जरिया बना रखा है. अब कोर्ट से उम्मीद है कि ग्वालियर के लोगों को न्याय मिलेगा.

कांग्रेस का कहना है कि स्वर्णरेखा नदी योजना बीजेपी के लिए स्वर्ण मुद्राएं देने वाली योजना बन चुकी है. पहले नदी को कंक्रीट का बनवाया. उसमें कई घोटाले हुए. फिर सीवेज सिस्टम के लिए इसे दोबारा से खोदा गया. आज हाईकोर्ट का आदेश है कि इसे पुनर्स्थापित किया जाए और यथास्थिति में वापस लाया जाए. टेलीविज़न की सरकार ने वेनिस की कल्पना की थी कि इसमें नाव चलाएंगे और अब आनन-फानन में इस पर एलिवेटेड रोड बना रहे हैं. ये कोर्ट की अवमानना है. ये विकास नहीं है विनाश है. ये नदी अब अपनी पुरानी अवस्था में कभी नहीं आ पाएगी.

बीजेपी सांसद ने माना-प्रोजेक्ट में हुई देरी 

ग्वालियर से बीजेपी के सांसद विवेक नारायण शेजवलकर इस बात को मानते हैं कि प्रोजेक्ट पूरा करने में देरी हुई है. उनका कहना है कि स्वर्णरेखा नदी को लेकर कोई एक प्लान नहीं बन सका. अलग अलग विभागों के स्तर पर काम हुआ. पहले जितनी गंदगी रहती थी अब उसकी 30% भी नहीं बची है. एलिवेटेड रोड का काम शुरू हुआ है और आसपास जितने भी सीवेज हैं उनका पानी नदी में ना जाए, इस पर भी काम हुआ है. ये बात सही है कि इसमें थोड़ी देर जरूर हुई है लेकिन वो हमारे एजेंडा में है और हम निश्चित रूप से इसको पूरा करेंगे. एलिवेटेड रोड के प्रोजेक्ट का लेआउट मैंने देखा है, मुझे नहीं लगता कि इससे नदी के प्रोजेक्ट पर असर पड़ेगा.

राजशाही के जमाने में स्वर्णरेखा अपने नाम को चरितार्थ करती थी लेकिन नदी के नाम पर कई परियोजनाएं चलाकर इतने प्रयोग कर लिए उसके बावजूद ये महज एक नाला ही बनकर रह गई.

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