Sri Lanka Presidential Elections: श्रीलंका के आम चुनावों में वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने बड़े सियासी उलटफेर के बीच धमाकेदार जीत दर्ज की है. वह श्रीलंका के अगले राष्ट्रपति होंगे. वहीं, निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को वरीयता क्रम में तीसरे नंबर पर खिसक गए.
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Who Is Anura Kumara Dissanayake: पड़ोसी देश श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव में बड़े उलटफेर के साथ मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने अपना परचम फहराया. राष्ट्रपति चुनाव में उनकी पार्टी ने लगभग लगभग 53 फीसदी वोटों के साथ प्रभावशाली जीत हासिल की. विपक्षी नेता सजीथ प्रेमदासा को 22 प्रतिशत वोट मिले और निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे तीसरे स्थान पर लुढ़क गए.
विक्रमसिंघे के साथियों ने कबूली हार, दिसानायके को बधाई
श्रीलंका के आम चुनावों के नतीजे के बाद रानिल विक्रमसिंघे सरकार के विदेश मंत्री अली साबरी ने हार स्वीकारते हुए दिसानायके और उनकी टीम को बधाई भी दे दी. पिछले चुनाव में महज 3 फीसदी वोट पाने वाली पार्टी के नेता दिसानायके इस बार श्रीलंका के नए राष्ट्रपति बनेंगे. आइए, जानते हैं कि अनुरा कुमारा दिसानायके कौन हैं? साथ ही उन्होंने आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक आपदा के बीच श्रीलंका में कैसे अपने लिए करिश्माई जीत का अवसर बना लिया.
अनुरा कुमारा दिसानायके कौन हैं? किन वादों ने बदली तस्वीर
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो जिले के सांसद और वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) और जनता विमुक्ति पेरमुना (जेवीपी) पार्टी के गठबंधन का नेतृत्व करते हैं. उन्होंने इस बार राष्ट्रपति चुनाव में महत्वपूर्ण सुधारों का वादा किया था. दिसानायके ने कहा था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को तलाशने और उस पर अमल करने के साथ ही गरीबों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करेगी.
ज्यादातर नेताओं की तरह छात्र राजनीति से की शुरुआत
राजधानी कोलंबो से लगभग 100 किलोमीटर दूर थम्बुटेगामा में एक मजदूर वर्ग के परिवार में जन्मे दिसानायके अपने गांव से विश्वविद्यालय जाने वाले पहले छात्र थे. डेली मिरर, श्रीलंका की रिपोर्ट के मुताबिक, जेवीपी नेता दिसानायके ने कहा कि उन्होंने शुरू में पेराडेनिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था, लेकिन अपनी राजनीतिक विचारधाराओं के कारण उन्हें मिली धमकियों के कारण केलानिया यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर हो गए. उन्होंने 1995 में विज्ञान स्नातक की डिग्री हासिल की. साथ ही छात्र राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हो गए. इसके बाद 1987 में मार्क्सवादी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) में शामिल हो गए.
2000 में कोलंबो से सांसद चुने जाने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री
दिसानायके ने कहा, "पीछे मुड़कर देखें तो मुझे कभी नौकरी करने और घर बसाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. राजनीति मेरा जुनून था. ईमानदारी से कहूं तो मैं हमेशा से अपने समाज को बदलना और सुधारना चाहता था." उनका राजनीतिक उत्थान तब शुरू हुआ जब वे 2000 में कोलंबो से सांसद चुने गए. इसके पहले 1998 तक वे जेवीपी के निर्णय लेने वाली टीम पोलित ब्यूरो में शामिल हो गए थे.
सोमवंशा अमरसिंघे के बाद 2014 में बने जेवीपी के नेता, बनाई नई इमेज
जेवीपी ने जब 2004 के संसदीय चुनावों के लिए श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के साथ गठबंधन किया, तो उन्होंने कृषि, पशुधन, भूमि और सिंचाई मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, गठबंधन के भीतर मतभेदों के बाद, दिसानायके ने 2005 में अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 2014 में सोमवंशा अमरसिंघे के बाद वे जेवीपी के नेता बने. दिसानायके ने पार्टी की इमेज को नया आकार देने की कोशिश की और 1971 और 1987 में दो असफल जेवीपी विद्रोहों से जुड़े अपने हिंसक अतीत से इसे दूर रखा.
चुनावी घोषणा पत्र में करों में कटौती और जल्दी विकास का वादा
अपने प्रभावशाली भाषणों के लिए मशहूर अनुरा कुमारा दिसानायके ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में करों में कटौती का वादा किया था. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने नया जनादेश हासिल करने के लिए 45 दिनों के भीतर संसद को भंग करने का भी वादा किया था. दिसानायके की नीतियों ने आम चुनाव में श्रीलंका की राजनीति में समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा और विकास के प्रति प्रतिबद्ध प्रमुख नेता के रूप में उन्हें स्थापित कर दिया.
चीन के प्रति झुकाव, लेकिन भारत से भी संबंध मजबूत करने की बात
56 वर्षीय अनुरा कुमारा दिसानायके के मार्क्सवादी बैकग्राउंड और चीन के प्रति उनके झुकाव भारत के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें भारत भी शामिल है. लेकिन श्रीलंका में आर्थिक संकट और राजनीतिक तख्तापलट की तरह ही दिसानायके की करिश्माई जीत में भी चीन की छिपी मदद को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है.
पिछली बार मिले थे 3 फीसदी वोट, अब कैसे बनाया आपदा में अवसर?
दिसानायके ने पहली बार 2019 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें महज 3 प्रतिशत वोट मिले थे. हालांकि, इस बार श्रीलंका का आर्थिक संकट उनके लिए 'आपदा में अवसर' साबित हुआ. क्योंकि 2022 में श्रीलंका के आर्थिक पतन के बाद, जेवीपी ने अपने अभियान को मतदाताओं के असंतोष के इर्द-गिर्द केंद्रित किया. दिसानायके ने देश की भ्रष्ट राजनीतिक संस्कृति को बदलने के वादे के साथ चुनाव लड़ा और नतीजे ने साबित किया कि जनता ने उनके वादों पर यकीन किया है.
श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव में क्या है वोटिंग की वरीयता क्रम व्यवस्था?
श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली में मतदाता तीन उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में रखकर एक विजेता का चुनाव करते हैं. अगर इनमें से किसी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त होता है, तो उसे विजेता घोषित किया जाता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो दूसरी और तीसरी पसंद के वोटों को ध्यान में रखते हुए दूसरे राउंड की गिनती शुरू होती है. रानिल विक्रमसिंघे इसी क्रम में दिसानायके से काफी पिछड़ गए.
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श्रीलंका में 10वें राष्ट्रपति चुनाव में 75 फीसदी मतदान
श्रीलंका में देश के 10वें राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए शनिवार (21 सितंबर) को मतदान हुआ था. कुल 1 करोड़ 70 लाख मतदाताओं में से करीब 75 फीसदी ने राष्ट्रपति चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. शाम 5 बजे वोटिंग खत्म होने के बाद मतगणना शुरू हुई और रविवार (22 सितंबर) को नतीजा सामने आया. पिछली बार नवंबर 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में हुए 83 प्रतिशत यानी रिकॉर्ड मतदान किया गया था.
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