उच्च न्यायालय खंडपीठ ने 196 सीमा रक्षकों को कैद के फैसले को भी बरकरार रखा है.
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ढाका: बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने 2009 के सैन्य विद्रोह को लेकर दोषी ठहराए गए 139 सैनिकों की मौत की सजा और 146 की उम्र कैद की सजा सोमवार (27 नवंबर) को बरकरार रखी. यह देश का अब तक का सबसे बड़ा आपराधिक मामला है. गौरतलब है कि इस सैन्य विद्रोह में 57 सैन्य अधिकारियों सहित 74 लोगों का नरसंहार किया गया था. अटार्नी जनरल महबूब आलम ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा, ‘139 को फांसी के तख्त पर चढ़ना होगा और 146 को उम्र कैद होगी.’
उन्होंने उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय एक पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा. आलम ने कहा कि विद्रोहियों ने सैन्य विद्रोह किया ताकि कोई सैन्य अधिकारी बीडीआर में ना बच सके. इसलिए उन्होंने थल सेना के अधिकारियों की व्यवस्थित रूप से हत्या की. न्यायमूर्ति नजरुल इस्लाम, न्यायमूर्ति शौकत हुसैन और न्यायमूर्ति मोहम्मद अबु जफर सिद्दीकी की एक खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय खंडपीठ ने 196 सीमा रक्षकों को कैद के फैसले को भी बरकरार रखा है.
हालांकि, बचाव पक्ष के वकील अमीनुल इस्लाम ने फैसले को अप्रत्याशित और न्याय की अवज्ञा बताया. उन्होंने कहा, ‘न्याय पाने के लिए दोषियों को मैं सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय डिवीजन में अपील दायर करने की सलाह दूंगा.’ दरअसल, चार साल पहले ढाका की एक निचली अदालत ने बीडीआर के 152 सैनिकों को मौत की सजा, जबकि 158 सैनिकों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.
पीठ ने कहा है कि यह (सैन्य विद्रोह) एक प्रशिक्षित और दक्ष पेशेवर बल को साजिश के जरिए तहस नहस करने की एक कोशिश थी. बीडीआर के जवानों पर सैन्य विद्रोह की साजिश रचने, अपने अधिकारियों को प्रताड़ित करने एवं उनकी हत्या करने, उनके सामान लूटने या बगावत के दौरान उनके परिवार के सदस्यों को बंधक रखने के आरोप हैं.
25 और 26 फरवरी 2009 को बांग्लादेश सीमा सुरक्षा बल (बीजीबी) के एक समूह द्वारा सैन्य विद्रोह किया गया था. बीजीबी एक अर्धसैनिक बल है जो देश की सीमाओं की रक्षा करता है. घटना में मरने वालों में नागरिकों के अलावा बीजीबी के महानिदेशक और सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे. इस मामले में कुल 850 लोग अभियुक्त थे जिनमें बीजीबी के 823 जवान और 23 नागरिक शामिल हैं. अभियुक्तों में से 813 को गिरफ्तार किया गया था. 13 जमानत पर रिहा हैं और 20 फरार हैं जबकि चार की हिरासत में मौत हो चुकी है.