Hijab Row in Iran: इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सेक्युलर भारत में इस्लामिक कट्टरपंथ की जड़ें मजबूत हो रही हैं और वहीं ईरान जैसे देश में महिलाओं ने गुरुवार को हिजाब-बुर्के उतारकर इसका विरोध जताया.
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DNA on Hijab Row in Iran: एक तरफ भारत में इस्लामिक कट्टरपंथ की जड़ें मजबूत हो रही है तो दूसरी तरफ़ इस्लामिक देशों में इसका विरोध हो रहा है. ईरान (Iran) में महिलाएं हिजाब (Hijab) के खिलाफ मुहिम चला रही हैं. वे बिना हिजाब के सड़कों पर निकल रही हैं और हिजाब से आजादी की मांग कर रही हैं. ईरान की गिनती उन देशों में होती है, जहां हिजाब पहनना महिलाओं के लिए अनिवार्य है. हालांकि ईरान की महिलाओं ने 12 जुलाई को देशभर में इसके ख़िलाफ़ एक अभियान चलाया और बिना हिजाब के वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करके इसका विरोध किया.
ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाएं सड़कों पर
इसके अलावा ईरान (Iran) में पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर हैशटैग No To Hijab भी ट्रेंड कर रहा है. महत्वपूर्ण बात ये है कि इन महिलाओं ने हिजाब (Hijab) का विरोध करने के लिए 12 जुलाई का दिन चुना. जिस दिन ईरान 'हिजाब और शुद्धता के राष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाता है. इस दौरान सरकारी संस्थानों और एजेंसियों को पूरे हफ्ते के लिए हिजाब को बढ़ावा देने का निर्देश दिया जाता है. इसी दौरान ईरान की महिलाओं ने तय किया है कि वो इस कट्टरता के सामने झुकेंगी नहीं.
#DNA : ईरान में हिजाब का विरोध, भारत में हिजाब की ज़िद@irohitr
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— Zee News (@ZeeNews) July 14, 2022
आज भले ही ईरान (Iran) में महिलाओं के लिए हिजाब (Hijab) पहनना अनिवार्य है. लेकिन वहां हमेशा से ऐसा नहीं था. वर्ष 1936 में ईरान के किंग रजा शाह पहलवी ने बुर्के और हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि इससे पहले ही ईरान के कॉलेज और स्कूलों में हिजाब पहनने पर रोक लग चुकी थी. साल 1979 से पहले ईरान में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाएं पश्चिमी पेशाकों में नज़र आती थीं. तब वे Jeans, Skirt और T-Shirts पहनती थीं. और उन्हें इसकी पूरी आजादी थी.
1979 में छिन गई थी महिलाओं की आजादी
हालांकि इस दौरान इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हमेशा इसका विरोध किया. उन्होंने इस बात को कभी स्वीकार ही नहीं किया कि महिलाओं को अपना पहनावा चुनने की आजादी होनी चाहिए. दिलचस्प बात ये है कि साल 1979 के Islamic Revolution से पहले ईरान की कुछ महिलाएं उस समय के किंग का विरोध करने के लिए हिजाब पहनती थीं. यानी ये हिजाब वहां किंग के विरोध का प्रतीक बन गया था. इस दौरान इन महिलाओं ने भी कभी ये कल्पना नहीं की थी कि Islamic Revolution के बाद वही हिजाब (Hijab) उन पर थोप दिया जाएगा और इसे लेकर कड़े नियम बना दिए जाएंगे.
1983 में ईरान (Iran) में नया कानून लाया गया, जिसके तहत हिजाब (Hijab) को अनिवार्य कर दिया गया. आज अगर कोई महिला इस कानून का उल्लंघन करती है तो उसे कोड़े मारने की सजा दी सकती है, उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है और उसे जेल भी हो सकती है. इस सबके बावजूद ईरान की महिलाएं आज बेखौफ होकर हिजाब पहनने का विरोध कर रही हैं. ऐसे में आपको अब भारत की स्थिति भी समझनी चाहिए. एक तरफ़ भारत है, जहां कर्नाटक राज्य में बहुत सारी मुस्लिम छात्राएं स्कूलों में हिजाब पहनने की जिद पर अड़ी हुई हैं और ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में भी लम्बित हैं.
भारत में हिजाब पहनने की जिद कर रही मुस्लिम छात्राएं
इन मुस्लिम छात्राओं का कहना है कि हिजाब (Hijab) पहनना उनका संवैधानिक अधिकार है. वो पहले हिजाब और फिर किताब के सिद्धांत को मानती हैं. लेकिन दूसरी तरफ़ ईरान है, जो एक इस्लामिक देश हैं. वहां हिजाब पहनना अनिवार्य है, लेकिन वहां की महिलाएं निडर होकर इसका विरोध कर रही हैं. इससे आप समझ सकते हैं कि हमारा देश कैसे पीछे जा रहा है. एक धर्मनिरपेक्ष देश में इस्लामिक कट्टरपंथ बढ़ रहा है जबकि एक इस्लामिक देश में इसका विरोध हो रहा है. अब आपको हिजाब से जुड़ा सही इतिहास भी जान लेना चाहिए.
ऐसा कहा जाता है कि इस्लाम के पवित्र धार्मिक ग्रंथ, कुरान में हिजाब (Hijab) और बुर्के जैसे शब्दों का सीधे तौर पर कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया है. इनकी जगह खिमर और जिबाब जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिनका अर्थ महिलाओं द्वारा अपना सिर और चेहरा ढंकने से है. हालांकि कुछ लोग इस बात को गलत भी मानते हैं. ये भी कहा जाता है कि कुरान में हिजाब का कुछ जगह उल्लेख है.
कुरान में कहीं नहीं हिजाब का जिक्र
इसके अलावा कुरान में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब की पत्नी खिमर और जिबाब धारण करती थीं. लेकिन कुरान में कहीं ये स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है कि इस्लाम धर्म को मानने वाली महिलाओं के लिए हिजाब (Hijab) और बुर्का पहनना अनिवार्य है. दूसरी बात, कुरान में कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि अगर महिलाएं हिजाब और बुर्का ना पहनें तो ये इस्लाम धर्म का अपमान होगा. यानी जो ये बात कही जाती है कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म के पालन की सच्ची भावना है, ऐसा सैद्धांतिक रूप से पूरी तरह सही नहीं है.
सऊदी अरब ने अपनी वेशभूषा को दिया इस्लाम का नाम
एक और बात, इस्लाम धर्म की उत्पत्ति से पहले अरब और मध्य पूर्व के देशों में हिजाब (Hijab) और बुर्के के पहनावे का चलन काफी लोकप्रिय था. यानी ये पहनावा, इस्लाम धर्म ने दुनिया को नहीं दिया बल्कि ये पहनावा, इस्लाम धर्म को अरब और मध्य पूर्व के देशों की सांस्कृतिक पहचान से मिला. लेकिन एक खास विचारधारा के लोगों ने इस बात का खूब प्रचार प्रसार किया कि अगर मुस्लिम महिलाएं हिजाब और बुर्का पहनेंगी, तभी उन्हें सच्ची मुस्लमान के तौर पर माना जाएगा. आज आपको इसी बात को समझना होगा.
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