US News : मेडिकल साइंस ने बड़ी तरक्की की है. मरीजों की जान बचाने में आसानी हो रही है. ऐसे ही एक रेयर मामले में डॉक्टरों ने एक युवक की जान बचाने के लिए अजीबोगरीब सर्जरी (Bizarre operation) करते हुए उसके ब्रेस्ट इम्पलांट (Breast implants) कर दिया.
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Breast implants for double lung transplant : विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. फिर भी दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जो आज भी मनुष्यों की समझ से परे हैं. आम जनता हो या डॉक्टर वो जरूरत पड़ने पर कुछ ऐसा कर देते हैं, कि उसकी चर्चा पूरी दुनिया में होने लगगती है. ऐसे ही एक रेयर मामले में डॉक्टरों ने एक 34 वर्षीय मरीज जिसके फेफड़ों में भयानक इन्फेक्शन था, उसकी जान बचाने के लिए उसके शरीर में ब्रेस्ट इम्पलांट कर दिया. डॉक्टरों ने क्यों की ऐसी अजीबोगरीब सर्जरी? आइए बताते हैं.
शिकागो का मामला
शिकागो के नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल अस्पताल में ये अजीबोगरीब सर्जरी हुई. मेडिकल एक्सपर्ट्स के पास एक ऐसी मशीन थी जो वेंटिलेटर प्रॉसेस के जरिए शरीर के किसी अंग के खाली स्थान को कुछ दिनों के लिए भर सकती थी. ताकि संक्रमण को दूर किया जा सके. लेकिन ये मामला अलग था. 34 साल के डेविये बाउर नाम के इस मरीज की छाती में सर्जरी के जरिए फेफड़ों को हटाना यानी उसका लंग ट्रांस्पलांट करना असंभव था. ऐसे में उसकी जान बचाने के लिए सर्जरी करने वाले डॉक्टरों ने ऐसा समाधान निकाला जो न कभी सुना गया था और ना देखा गया था.
दरअसल इस सर्जरी के दौरान शरीर के जिस हिस्से में उसके पुराने फेफड़े काम कर रहे थे. वो जगह गंभीर संक्रमण की वजह से खाली नहीं छोड़ी जा सकती थी. इसलिए डॉक्टरों ने उस जगह को भरने के लिए ब्रेस्ट इम्पलांट कर दिया.
'संक्रमण के कारण फेफड़े गलने लगे'
इस रेयर मेडिकल केस में बाउर के मुख्य थोरेसिक सर्जन अंकित भरत ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'कोई व्यक्ति जिसकी हालत देखकर हम जान गए हैं कि वो धीरे-धीरे मर रहा है खासकर जैसी उसकी हालत थी, ऐसे मामलों में ट्रांस्पलांट का कोई विकल्प नहीं होता है, और वे आम तौर पर मर जाते हैं. ऐसे में हमें कुछ ऐसा करने की रणनीति बनानी था जो हमने खुद पहले कभी न किया हो.'
दरअसल बाउर 20 साल की उम्र में चेन स्मोकर हो गए थे. वो इसे छोड़ तो नहीं पाए लेकिन उन्होंने इसका एक विकल्प अपनाने के लिए 2014 में वेपिंग करना शुरू कर दिया. अप्रैल में इन्फ्लूएंजा की चपेट में आने के बाद, डॉक्टरों ने देखा उसके फेफड़े काम करने की हालत में नहीं थे. उसके फेफड़े गलने लगे थे. जब वो सेंट लुइस हॉस्पिटल पहुंचा तो उसकी सांसे फूल रही थीं. मेडिकल भाषा में वो एक सेकेंडरी इन्फेक्शन की चपेट में था. जो किसी भी एंटीबायोटिक से ठीक नहीं हो रहा था.
एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन
ऐसे में डॉक्टरों ने उसकी जान बचाने के लिए ECMO (एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन) प्रणाली पर रखा. इस सिस्टम ने उनके खून के संरचण में आसानी हुई. उसके फेफड़ों को आंशिक राहत मिली. डॉक्टरों ने बताया कि उसके फेफड़े पूरी तरह से मवाद से भरे थे. जब हमें सेंट लुइस में डेवी की मेडिकल टीम से फोन आया, तो हमने सोचा कि हम उसकी मदद कर सकते हैं. लेकिन तब भी हमें पता था कि सीधे ट्रांसप्लांट करने से भी वो बच नहीं पाएगा. इसलिए ट्रांस्पलांट से पहले हमें संक्रमण को दूर करना था. जान बचाने के लिए दोनों फेफड़ों को निकालना था. लेकिन वो जगह खाली नहीं छोड़ी जा सकती थी. ये हमारे लिए एक अज्ञात क्षेत्र था, लेकिन हमारी टीम को पता था अगर हम मरीज की मदद नहीं कर सके, तो कोई और नहीं कर सकता. ऐसे में हमने वहां ब्रेस्ट इम्पलांट कर दिया.
इस अजीबोगरीब सर्जरी के बाद मरीज की हालत कैसी है, फिलहाल इसकी जानकारी अस्पताल प्रशासन की ओर से साझा नहीं की गई है.