भारत का मानना है कि चीन (China) और पाकिस्तान (Pakistan) जैसे पड़ोसियों की दोहरी चुनौती के बीच भारत को S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की जरूरत है. भारत साफ कर चुका है कि वो अपनी रक्षा जरूरतें पूरी करने के लिए किसी दबाव में फैसला नहीं लेगा.
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नई दिल्ली: आजादी के बाद से ही भारत (India) की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस (Russia) ने अहम भूमिका निभाई है. भारत के सदाबहार और वफादार मित्र रूस के पास दुनिया का सबसे बेहतरीन मिसाइल डिफेंस सिस्टम S-400 है. भारत ने रूस के साथ S-400 की डील करके अपने इरादे जता दिए है. अमेरिका (USA), रूस और भारत (India-Russia) की डील रोकने की कोशिश में जुटा है. वाशिंगटन की ओर से लगातार ये बात दोहराई जा रही है कि डिफेंस डील के लिए भारत को कोई छूट नहीं मिलेगी.
डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस (Russia) के साथ इस 5.5 अरब डॉलर की डील पर अमेरिका जल्द ही भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है. गौरतलब है कि S-400 की ऐसी ही डील के लिए ट्रंप प्रशासन तुर्की पर प्रतिबंध लगा चुका है. यह सिस्टम एक साथ 36 मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है.
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अमेरिका लगातार कहता आया है कि अगर भारत को अमेरिका के साथ कूटनीतिक टकराव रोकना है तो उसे ये डील को रद्द करना चाहिए. पेंटागन के अधिकारी भी इस डील पर नाराजगी जता चुके हैं. सभी का ये मानना है कि 2017 में बने सख्त अमेरिकी कानून काट्सा के तहत (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) के तहत भारत को कोई छूट नहीं दी जाएगी. आने वाली 20 जनवरी को भले ही अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) के नेतृत्व में नई शुरूआत होने जा रही है. लेकिन नए निजाम की ताजपोशी के बाद भी अमेरिका की इस नीति में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा.
अमेरिका दुनिया के प्रमुख हथियार निर्यातक देशों में एक है. अमेरिकी रक्षा व्यावसाई दुनिया भर में पेंटागन के जरिए अपने हथियारों की आपूर्ति करते हैं. चूंकि खुद अमेरिका के पास S-400 की काट नहीं है इसलिए वो नहीं चाहता है कि दुनिया के बाकी देश रूस का रुख करें. अमेरिका चाहता है कि दुनिया के देश रूस की बजाए अमेरिका का बना मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदें लेकिन बेहतर क्वालिटी की वजह से कोई भी देश S-400 का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं.
भारत का मानना है कि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की दोहरी चुनौती के बीच भारत को इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम की जरूरत है. भारत दो टूक कह चुका है कि वो अपनी रक्षा जरूरतें पूरी करने के लिए रक्षा उत्पाद किस देश से खरीदेगा ये तय करने का अधिकार नई दिल्ली को है.
MEA के मुताबिक भारत और अमेरिका के बीच विस्तृत रणनीतिक साझेदारी है. वहीं भारत की रूस के साथ विशेष और खास रणनीतिक साझेदारी चल रही है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ये भी कहा, 'भारत ने हमेशा से स्वतंत्र विदेश नीति का पालन किया है. ये हमारे रक्षा सौदों और आपूर्ति पर भी लागू होता है जो कि हमारे राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं.'
जैसे जैसे डील पूरी होने यानी S-400 की डिलीवरी का समय नजदीक आ रहा है. इस सौदे से जुड़े सभी पक्षों पर दुनिया की निगाहें बनी हुई हैं.
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