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बुडापेस्ट: कोरोना (Coronavirus) महामारी को लेकर घिरे चीन (China) के खिलाफ अब छोटे देश भी खुलकर सामने आने लगे हैं. इसका सबसे ताजा उदाहरण है लिथुआनिया (Lithuania). यूरोप के सबसे छोटे देशों में शुमार लिथुआनिया चीन के नेतृत्व वाले ‘17+1 ग्रुप’ को छोड़ने के अपने फैसले पर कायम है. इतना ही नहीं उसने अन्य देशों से भी चीन से किनारा करने की अपील की है. इस ग्रुप को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के महत्वकांक्षी मिशन के तौर पर देखा जाता है. यानी लिथुआनिया ने सीधे तौर पर जिनपिंग को आंख दिखाई है. वहीं, हंगरी (Hungary) में भी चीन के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन हो रहा है.
CNN की रिपोर्ट के अनुसार, हंगरी (Hungary) में चीनी यूनिवर्सिटी कैंपस (Chinese University Campus) के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए हैं. राजधानी बुडापेस्ट में बनने वाली इस यूनिवर्सिटी का पूरा देश विरोध कर रहा है. हाल ही में हजारों की संख्या में लोगों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए संसद का घेराव भी किया था. लोगों का कहना है कि चीन अपनी यूनिवर्सिटी के जरिए उनके देश में कम्युनिस्ट विचारधारा को फैलाने काम करेगा.
गौर करने वाली बात यह है कि हंगरी की सरकार और चीन के बीच काफी मजबूत संबंध है. इसके बावजूद यहां लोग चीनी यूनिवर्सिटी के विरोध में उतर आए हैं. इस वजह से यूनिवर्सिटी के निर्माण का काम प्रभावित हुआ है. इस यूनिवर्सिटी के कैंपस को करीब 1.8 अरब डॉलर की लागत से बनाया जा रहा है. हालांकि, लोगों के बढ़ते विरोध को देखते हुए संभव है सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़ें. विरोधियों का कहना है कि चीनी यूनिवर्सिटी के बनने से हंगरी की उच्च शिक्षा के स्तर में कमी आएगी.
वहीं, लिथुआनिया का एकदम से विरोध में उतर आना चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. महज 28 लाख की आबादी वाले इस देश ने खुद को चीन के नेतृत्व वाले सीईईसी फोरम से अलग कर लिया है. इस फोरम को 2012 में चीन ने शुरू किया था. इसमें यूरोप के 17 देश और चीन शामिल है. लिथुआनिया के विदेश मंत्री गेब्रिलियस लैंड्सबर्गिस का कहना है कि चीन का सीईईसी फोरम विभाजनकारी है. उन्होंने यह भी कहा कि यूरोप के बाकी देशों को भी चीन के इस फोरम को छोड़ देना चाहिए.