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जकार्ता : भारत ने आज एशिया एवं अफ्रीका के राष्ट्रों के साथ आतंकवाद के सभी स्वरूपों की एक स्वर में कड़ी आलोचना की तथा आतंकवादियों द्वारा इंटरनेट के जरिये इसके प्रसार को रोकने के लिए ठोस सहयोग करने के मकसद से हाथ मिलाया।
यहां एशिया-अफ्रीका सम्मेलन के दौरान मंत्रियों और राजनयिकों के बीच विचार विमर्श के बाद देशों के बीच दो प्रस्तावों पर सहमति बनी जिसमें आतंकवाद का जिक्र किया गया है और इसकी आलोचना की गयी है। ये दो प्रस्ताव हैं बांडुंग संदेश 2015 और नयी एशिया-अफ्रीका रणनीतिक भागीदारी (एनएएएसपी)। इसमें भाग लेने वाले देशों के राष्ट्र प्रमुख कल इन प्रस्तावों को मंजूर करेंगे। तीसरा प्रस्ताव ‘आजाद’ फलस्तीन के समर्थन के बारे में हैं जिसे संभवत: 24 अप्रैल को अंगीकार किया जा सकता है।
सम्मेलन में देशों ने आतंकवाद से मुकाबला, हिंसक उग्रवाद, फिरौती सहित आतंकवाद को वित्तपोषण, आतंकवाद के मकसद से इंटरनेट के इस्तेमाल से निबटने तथा आतंकवाद से मुकाबला करते समय मानवाधिकार की रक्षा और उसका संवर्धन करने के लिए सहयोग के ठोस स्वरूप विकसित करने की प्रतिबद्धता दिखायी।
अएनएएएसपी पर मसौदा प्रस्ताव में कहा गया, हम समग्र और एकीकृत तरीके से आतंकवाद से मुकाबले के लिए अंतर क्षेत्रीय सहयोग और समन्वय को बढ़ाने के लिए समग्र एवं प्रभावी रणनीतियां विकसित करने की जरूरत को दोहराते हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह की अगुवाई में भारत ऐतिहासिक 1955 एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन की 60 वीं बैठक में हिस्सा ले रहा है। इस सम्मेलन के बाद ही शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी।
दोनों महाद्वीपों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए तीसरी दुनिया के 50 से ज्यादा देश और 23 राष्ट्रप्रमुख आए हैं। इन दोनों महाद्वीपों में दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी है और समूचे वैश्विक जीडीपी में इनका 30 प्रतिशत योगदान है। मसौदे में देशों ने संगठित आतंकवाद और आतंकवाद साथ ही इससे विकास, राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों पर पड़ता प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। देशों ने सभी तरह के आतंकवाद की कड़ी निंदा की।