जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का खामियाजा केवल मौजूदा पीढ़ी ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना होगा. एक स्टडी में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों पर सनसनीखेज खुलासा किया गया है.
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नई दिल्ली: दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का खामियाजा केवल मौजूदा पीढ़ी ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना होगा. एक स्टडी के मुताबिक वर्ष 2021 में नए पैदा हो रहे बच्चे अपने दादा-दादी की तुलना में औसतन दो-तीन गुना ज्यादा सूखे, करीब 3 गुना बाढ़ और फसल खराब होने का सामना करेंगे. वहीं करीब 7 गुना बच्चे ज्यादा गर्मी का अनुभव करेंगे.
इंटर-सेक्टोरल इंपैक्ट मॉडल इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट (ISIMIP) के आंकड़ों के आधार पर, शोधकतार्ओं ने जर्नल 'साइंस' में रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के मुताबिक आज के वयस्कों की तुलना में नए पैदा होने वाले बच्चे खराब जलवायु परिवर्तन की मार से ज्यादा प्रभावित होंगे.
व्रीजे यूनिवर्सिटी ब्रुसेल के लेखक विम थियरी के अनुसार स्टडी की रिपोर्ट से पता चलता है कि आने वाली पीढ़ी के लिए गंभीर खतरे हैं. ऐसे में भावी पीढ़ी की रक्षा के लिए कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी को इसका बड़ा नुकसान भुगतना पड़ेगा.
एक अन्य लेखक काटजा फ्रेलर कहते हैं कि अगर हम जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर देते हैं तो आने वाली पीढ़ियों के लिए भारी राहत हो सकती है.
स्टडी में कहा गया है कि वर्तमान में दुनिया में चल रही हीट वेव 15 प्रतिशत इलाके को प्रभावित कर रही हैं. आने वाले वक्त में यह हीट वेव 46 प्रतिशत इलाके को प्रभावित कर सकती हैं. अगर दुनिया के सभी देश पेरिस जलवायु समझौते पर अमल करते हुए ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक पाने में कामयाब रहते हैं तो हीट वेव से केवल 22 प्रतिशत धरती ही प्रभावित होगी.
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बता दें कि दुनिया में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर चर्चा करने के लिए ब्रिटेन के ग्लासको में विश्व जलवायु शिखर सम्मेलन कोप होने जा रहा है. उसमें कार्बन उत्सर्जन कम करना एक अहम मुद्दा होने जा रहा है. दुनियाभर के नेता वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के उपायों पर चर्चा करेंगे.
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