इन किरणों की मदद से ब्लड में होगा कोरोना का खात्मा, वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी
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इन किरणों की मदद से ब्लड में होगा कोरोना का खात्मा, वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी

कोरोना वायरस के इलाज से संबंधित एक अच्‍छी खबर आई है.

इन किरणों की मदद से ब्लड में होगा कोरोना का खात्मा, वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी

ह्यूस्टन: कोरोना वायरस के इलाज से संबंधित एक अच्‍छी खबर आई है. अनुसंधानकर्ताओं ने एक स्टडी के जरिए यह दिखाया है कि कोरोना वायरस को विटामिन रिबोफ्लेविन और पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाया जाए तो ये मानव प्लाज्मा और रक्त उत्पादों (इंसान के खून से बनने वाले उपचारात्मक पदार्थ जैसे रेड ब्लड सेल, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा इत्यादि) में वायरस की मात्रा को कम करते है. यह एक ऐसी उपलब्धि है जिससे खून चढ़ाए जाने के दौरान वायरस के प्रसार की आशंका को घटाने में मदद मिलेगी. 

  1. वैज्ञानिकों को प्‍लाज्‍मा और रक्‍त उत्‍पादों से कोरोना वायरस की मात्रा घटाने में मिली सफलता
  2. इससे खून चढ़ाने के दौरान वायरस के प्रसार की आशंका घटी 
  3. हालांकि अभी भी यह नहीं मालूम कि खून चढ़ाए जाने के दौरान फैलता है या नहीं 
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हालांकि, अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (सीएसयू) के वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह अब भी पता नहीं चल सका है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस या सार्स-CoV-2 खून चढ़ाए जाने से फैलता है या नहीं.

स्टडी में वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा के नौ और तीन रक्त उत्पादों के उपचार के लिए मिरासोल पैथोजन रिडक्शन टेक्नोलॉजी सिस्टम नाम का एक  उपकरण विकसित किया है. स्टडी की सह-लेखिका इजाबेला रगान ने कहा, “हमने वायरस की बड़ी मात्रा को घटाया और इलाज के बाद हमें वायरस नहीं मिला.”

सीएसयू से स्टडी के वरिष्ठ लेखक रे गुडरिच द्वारा आविष्कृत यह उपकरण रक्त उत्पाद या प्लाज्मा को पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाकर काम करता है. अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि यह उपकरण 1980 के दशक में उस वक्‍त मददगार बना जब एचआईवी खून और रक्त उत्पादों के जरिए फैल गया था. हालांकि, गुडरिच ने कहा कि फिलहाल मिरासोल का इस्तेमाल केवल अमेरिका से बाहर खासकर यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में स्वीकृत है. यह स्टडी 'पीएलओएस वन' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

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