Colour Revolution: रंग क्रांति का मकसद पश्चिमी देशों की तर्ज पर अपने मुल्कों में उदार लोकतंत्र की स्थापना है. राजनीतिक विज्ञानी वैलेरी जेन बूंस और सेवा गुनिस्की इसको 'लोकतंत्र की लहर' नाम देते हैं.
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China and Colour Revolution: हाल के वर्षों में विभिन्न देशों में सत्ता या सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए जो अलग-अलग क्रांतियां हुईं उनको खास प्रकृति के कारण रंग क्रांति (Colour Revolution) कहा गया. जॉर्जिया में रोज रिवोल्यूशन (2003), यूक्रेन में ओरेंज रिवोल्यूशन (2004), किर्गिस्तान में ट्यूलिप रिवोल्यूशन (2005) और आर्मेनिया में वेलवेट रिवोल्यूशन (2018) देखने को मिला. इन रंग क्रांतियों का मकसद पश्चिमी देशों की तर्ज पर अपने मुल्कों में उदार लोकतंत्र की स्थापना है. राजनीतिक विज्ञानी वैलेरी जेन बूंस और सेवा गुनिस्की इसको 'लोकतंत्र की लहर' नाम देते हैं.
इन रंग क्रांतियों की शुरुआत सोवियत संघ के पतन के बाद उत्पन्न हुए राष्ट्रों में सबसे पहले देखने को मिली. ये अहिंसक आंदोलन थे जो सत्ता/समाज में परिवर्तन चाहते थे. ये अधिकांश आंदोलन उस वक्त पनपे जब लोगों को लगा कि चुनावी नतीजों में पक्षपात/धांधली हुई और जनता की आवाज को दबाया जा रहा है. इन आंदोलनों की अगुआई छात्रों ने की. ये आंदोलन यूनिवर्सिटीज में सबसे पहले शुरू हुए और बाद में बाकी हिस्सों में फैले. रंग क्रांतियों की सबसे खास बात ये थी कि इसमें आंदोलन के प्रचार-प्रसार में इंटरनेट का मुख्य रूप से इस्तेमाल किया गया.
कलर क्रांति की अगली सीरीज 2010-12 के जैस्मिन क्रांति (ट्यूनिशिया) से शुरू हुए अरब क्रांति के रूप में देखने को मिलती है. रूस और चीन इन क्रांतियों के पीछे पश्चिमी देशों की भूमिका मानते हैं. इनका मानना है कि ये अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए इन रंग क्रांतियों को समर्थन देते हैं, प्रेरित करते हैं. यूं कहें कि इन रंग क्रांतियों के प्रेरणास्रोत ये पश्चिमी मुल्क ही हैं.
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चीन की चिंता
इस बात को ही भांपते हुए अब चीन में एक नई पाठ्यपुस्तक में चेतावनी दी गई है कि ‘रॉक एन रोल’ एवं पॉप संगीत और इंटरनेट आदि का इस्तेमाल चीनी युवाओं को "रंग क्रांति" के लिए भड़काने की खातिर किया जा सकता है. पश्चिमी शक्तियों द्वारा उकसाए गए कथित तोड़फोड़ के साथ ही समाज के विभिन्न क्षेत्रों में घुसपैठ करने के प्रयास और सरकारों को उखाड़ फेंकने के लिए अशांति को बढ़ावा देने को चीन ने "रंग क्रांति" का कूट नाम दिया है.
हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट समाचार पत्र में बुधवार को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि पाठ्यपुस्तक के अनुसार विश्वविद्यालय के छात्रों को पश्चिमी लोकप्रिय संस्कृति के प्रति सतर्क रहना चाहिए और इंटरनेट का उपयोग करते समय "रंग क्रांति" के जाल से सावधान रहना चाहिए. पाठ्यपुस्तक में चेतावनी दी गई है, ‘‘इंटरनेट संचार का एक प्रमुख माध्यम है; पॉप और रॉक संगीत जैसी लोकप्रिय संस्कृति का अक्सर ‘रंग क्रांति’ के लिए कवर के रूप में उपयोग किया जाता है." इसमें ट्यूनीशिया, अरब देश आदि में हुए विभिन्न आंदोलनों का जिक्र किया गया है और तर्क दिया गया है कि उन आंदोलनों से देशों में उथल-पुथल की स्थिति बनी.
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राष्ट्रीय सुरक्षा पर नई पाठ्यपुस्तक पिछले सप्ताह आधिकारिक तौर पर जारी की गई जिसे वैचारिक नियंत्रण को मजबूत करने और युवा चीनी लोगों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए चीन के नवीनतम कदम के तौर पर देखा जा रहा है. चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के मुखपत्र पीपुल्स डेली के अनुसार कॉलेज के छात्रों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी नई पुस्तक का उपयोग विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा पर आधारभूत पाठ्यक्रम में किया जाएगा. राज्य प्रसारक सीसीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूलों के लिए भी नयी पाठ्यपुस्तकें जारी की गई हैं जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा और पारंपरिक संस्कृति पर जोर है.
नई पाठ्यपुस्तक 71 वर्षीय राष्ट्रपति शी चिनफिंग द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा पर दिए गए विभिन्न भाषणों पर आधारित है.