महामारी के दौरान कंपनियों ने काम करने के नए तौर-तरीके अपनाए. वे अपने कर्मचारियों को घरों, दफ्तर से दूर किसी छोटी जगह से या फिर ग्राहकों के पास से ही काम करने को कह रही हैं, जो कई कर्मचारियों के लिए आरामदायक है और इससे प्रोडक्टिविटी भी बढ़ती है.
कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में कामकाज के तरीके में बदलाव आया है. वर्क फ्रॉम होम के साथ ही कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को ज्यादा छुट्टी भी दे रही हैं. उधर जापान (Japan) सरकार ने कंपनियों को सुझाव दिया है कि वे कर्मचारियों को 5 के बजाय सिर्फ 4 दिन काम करने का ऑप्शन दें.
कर्मचारियों को यह चुनने का भी अधिकार दिया जाएगा कि वे किन 4 दिनों में काम करना चाहेंगे. दरअसल वहां की सरकार लोगों को इतना समय देना चाहती है कि वे नौकरी के साथ ही परिवार की जिम्मेदारियों के बीच तालमेल बैठा सकें. लेकिन इस नीति को लेकर जापान में बहस छिड़ गई है.
अर्थशास्त्री मार्टिन शुल्त्स कहते हैं कि ‘महामारी के दौरान कंपनियों ने काम करने के नए तौर-तरीके अपनाए. वे अपने कर्मचारियों को घरों, दफ्तर से दूर किसी छोटी जगह से या फिर ग्राहकों के पास से ही काम करने को कह रही हैं, जो कई कर्मचारियों के लिए आरामदायक है और इससे प्रोडक्टिविटी भी बढ़ती है.’ शुल्त्स बताते हैं कि जापान की कुछ कंपनियों ने सरकार की योजना का लाभ भी उठा लिया है और अब वे अपनी जगह को कम कर रही हैं.
कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि इस योजना में खामियां हैं. जापान पहले ही कामगारों की कमी से जूझ रहा है.ऐसे में कर्मचारियों को यह भी फिक्र है कि कम दिन काम करने से उनकी आय कम हो सकती है. पढ़ाई कर रहीं एक छात्रा को कई कंपनियां नौकरी का ऑफर दे चुकी हैं. लेकिन उन्होंने एक छोटी कंपनी को चुना है. वो कहती हैं कि- बड़ी कंपनियों में काम और जिंदगी का संतुलन बिगड़ जाता है.
जापान में कई बार ऐसी खबरें आती हैं कि ज्यादा काम करने से लोग बीमार हो गए या फिर तनाव के कारण कर्मचारियों ने अपनी जान दे दी. इसके लिए जापानी भाषा में एक शब्द है कारोशी. इसका मतलब है- जरूरत से ज्यादा काम से मौत. इसे लेकर शुल्त्स कहते हैं कि पिछले एक साल में लोगों ने दिखा दिया है कि काम करने के लिए 5 पांच दिन और देर रात तक ऑफिस में रहने की जरूरत नहीं है.
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