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2020 से भी बुरा था ये साल, पूरी दुनिया में मच गई थी तबाही

कुदरत के कहर से डरे लोगों ने उस साल युद्ध से दूरी बनाए रखी. कोई युद्ध नहीं लड़ा गया. जिसकी वजह से युद्ध के मैदान में तो कोई मौत नहीं हुई, लेकिन...

सबसे बुरा साल

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सबसे बुरा साल

नई दिल्ली: साल 2020 अब विदा ले चुका है, लेकिन हममें से अधिकांश लोगों के मन में 2020 को लेकर बुरे अनुभव ही जुड़े हैं. ऐसे में लोग कह रहे हैं कि उन्होंने साल 2020 जितना बुरा साल कभी नहीं देखा. हालांकि ये पूरा सच नहीं है. 

सबसे बुरा साल नहीं था 2020

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सबसे बुरा साल नहीं था 2020

साल 2020 में दुनिया ने कोरोना का कहर देखा. आतंकवाद का दंश झेला. युद्ध की तबाही देखी. लाखों लोगों को जान गंवाते देखा. भुखमरी को बढ़ते देखा. बेरोजगारी से लोगों को सुबकते देखा. दुनिया को लगा कि ये तो अब तक का सबसे बुरा साल था, जो बहुत मुश्किल से बीता है. लेकिन शोधकर्ताओं ने बताया है कि साल 2020 सबसे बुरा साल नहीं था, बल्कि एक साल ऐसा भी था, जब पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था. 

ये था सबसे बुरा साल

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ये था सबसे बुरा साल

इतिहासकारों और शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि अबतक का सबसे बुरा साल 536 ईस्वी था. 1484 साल पहले सन 536 में पूरी दुनिया अंधकार में डूबी थी. उस साल पूरे 18 महीने तक धरती अंधकार में डूबी हुई थी. एक अजीब सी धुंध ने पूरे यूरोप, मिडिल ईस्ट एशिया और एशिया के अन्य हिस्सों में छाई हुई थी. दिन होता तो था, लेकिन सूरज के दर्शन नहीं होते थे.

बेहद भयावह था दौर

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बेहद भयावह था दौर

536 ईस्वी का दौर इतना भयावह था कि दिन में भी लोग अपनी परछाई तक नहीं देख पा रहे थे. तापमान बेहद गिर गया था. सबकुछ जम रहा था. फसलें बढ़ नहीं थी और लोग भूखे मर रहे थे. इन 18 महीनों को डार्क ऐज यानि अंधकार युग कहा जाता था. इतनी बड़ी तबाही के पीछे कुछ बेहद खास वजह थी.

 

एक ज्वालामुखी

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एक ज्वालामुखी

शोधकर्ताओं ने हाल ही में इस बात का पता लगाने में सफलता पाई है कि उस अंधकार युग की मुख्य वजह क्या थी. दरअसल, आईसलैंड में उस साल एक ज्वालामुखी फटा था. हिस्ट्री डॉट कॉम की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ज्वालामुखी के लावे कुछ इस से फैले कि मकर रेखा के उत्तर का अधिकांश इलाका धुएं से भर गया और करीब इन 18 महीनों में लाखों लोग काल के मुंह में समा गए. 

उस साल नहीं हुआ था युद्ध, लेकिन फैला था डर

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उस साल नहीं हुआ था युद्ध, लेकिन फैला था डर

इत्तेफाक है कि कुदरत के कहर से डरे लोगों ने उस साल युद्ध से दूरी बनाए रखी. कोई युद्ध नहीं लड़ा गया. जिसकी वजह से युद्ध के मैदान में तो कोई मौत नहीं हुई, लेकिन इस 18 महीने के अंधकार ने मानवता की कमर तोड़ दी थी.

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