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Wolverine वाली खासियत पाएंगे अमेरिकी सैनिक, 5 गुना ज्यादा तेजी से भरेंगे घाव

अमेरिकी एयरफोर्स की वेबसाइट पर पब्लिश रिपोर्ट में इस प्रोजेक्ट पर गहराई से प्रकाश डाला गया है, जिसमें बताया गया है कि अमेरिकी सेना अब सेल री-प्रोडक्शन के प्रोसेस को डी-कोड कर रही है. ताकि जिस भी हिस्से में चोट लगे, वहां तुरंत नई स्किन डेवलप की जा सके.

अमेरिकी सैनिकों में वुल्वरीन की खूबियां!

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अमेरिकी सैनिकों में वुल्वरीन की खूबियां!

वॉशिंगटन: आपने हॉलीवुड की मशहूर एक्स मैन सीरीज देखी होगी. जिसमें Wolverine सीरीज बेहद खास है. लेकिन वुल्वरीन या एक्समैन सिर्फ एक कैरेक्टर नहीं रह गए हैं, बल्कि अमेरिकी सेना गंभीरता से इस तरफ बढ़ रही है कि वो अपने सैनिकों में एक्समैन वाली खूबियां डाल सकें. हालांकि ये खूबियां ह्यूज जैकमैन जैसी खूंखार नहीं होंगी, बल्कि उसके तेजी से भरते घावों की तरफ अमेरिकी सेना का रूख है. अमेरिकी एयरफोर्स की तरफ से जारी किए गए एक रिसर्च पेपर में इस बात की जानकारी दी गई है कि अमेरिकी वैज्ञानिक एक ऐसा सेल डेवलप कर रहे हैं, जो अमेरिकी सैनिकों में वुल्वरीन की खूबियां भरेगा. जिससे उनके घाव तेजी से भरेंगे.

 

सेल री-प्रोग्रामिंग में लगी अमेरिकी सेना

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सेल री-प्रोग्रामिंग में लगी अमेरिकी सेना

अमेरिकी सेना की कोशिश है कि वो ऐसा सेल डेवलप करे और अमेरिकी सैनिकों में उन्हें डाले, जिससे किसी भी जंग या परिस्थिति के दौरान अगर वो घायल हो भी जाते हैं, तो उनके घाव तेजी से भरें. यानि एक मामूली खरोंच या घाव उन्हें रोक नहीं सकेगी और वो कुछ ही समय बाद पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे. ऐसा करने के पीछ मकसद है कि तबाही के मैदान में कम से कम सैनिकों की मौत हो और अगर वो घायल हो जाते हैं तो जल्द से जल्द ठीक होकर वो मैदान में दोबारा मोर्चा संभाल सकें.

1945 के बाद बदली अमेरिकी सेना

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1945 के बाद बदली अमेरिकी सेना

एक अमेरिकी लेखक ने दावा किया था कि अमेरिकी सेना द्वितीय विश्वयुद्ध के समय खूंखार नहीं थी. क्योंकि उनकी ट्रेनिंग में मानवीय पक्ष ज्यादा थे. ऐसे में 100 में से महज 15 फीसदी सैनिक ही आक्रामक तेवरों वाले होते थे. जिसकी वजह से अमेरिकी सेना को युद्ध जीतने में लंबा समय लग गया. वहीं जर्मनी का हर सैनिक न सिर्फ खूंखार होता था, बल्कि किसी भी दुश्मन को देखते ही मरने और मारने के लिए तैयार रहता था. इस रिपोर्ट के बाद अमेरिकी सेना की ट्रेनिंग में बदलाव किया गया और आज अमेरिकी सील कमांडो दुनिया के सबसे घातक कमांडो माने जाते हैं. यही नहीं, अमेरिकी सेना में शामिल ग्रीन बैरेट्स के बारे में दुनिया को कम ही पता होता है, लेकिन ग्रीन बैरेट्स का कोई एक सिपाही भी अपने आप में एक यूनिट आम सैनिकों के बराबर होता है. ऐसे में अब अमेरिका ने उन्हें और भी खूंखार और सुरक्षित बनाने के लिए कमर कस ली है, जिसमें उनका साथ दे रही है मिशीगन यूनिवर्सिटी. 

अमेरिकी एयरफोर्स का ड्रीम प्रोजेक्ट

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अमेरिकी एयरफोर्स का ड्रीम प्रोजेक्ट

ये प्रोजेक्ट अमेरिकी एयरफोर्स ने शुरू किया है, जिसमें मिशीगन यूनिवर्सिटी की टीम भी शामिल है. ये सिर्फ आईडिया की बात होती तो ज्यादा गंभीर बात नहीं होती. लेकिन इस पर कई कदम आगे भी बढ़ा जा चुका है. अमेरिकी एयरफोर्स की वेबसाइट पर पब्लिश रिपोर्ट में इस प्रोजेक्ट पर गहराई से प्रकाश डाला गया है, जिसमें बताया गया है कि अमेरिकी सेना (US ARMY) अब सेल री-प्रोडक्शन के प्रोसेस को डी-कोड कर रही है. ताकि जिस भी हिस्से में चोट लगे, वहां तुरंत नई स्किन डेवलप की जा सके. मौजूदा समय में प्राकृतिक तौर पर ये संभव नहीं है. दरअसल, मांस के सेल अलग होते हैं और स्किन के सेल्स अलग. लेकिन ये प्रोजेक्ट सफल रहा तो अगर स्किन किसी हादसे में हट जाए, जल जाए या नष्ट हो जाए तो तुरंत मांस का हिस्सा खुद को स्किन में बदल सके. 

सेल्स पर नजर

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सेल्स पर नजर

मिशीगन यूनिवर्सिटी के कंप्यूटेशनल मेडिसिन, बॉयोइंफॉर्मेटिक्स और मैथमेटिक्स डिपार्टमेंट की असोसिएट प्रोफेसर डॉ इंडिका राजपक्षे ने कहा कि सेल्स की इमेजिंग के लिए माइक्रोस्कोपी की जा रही है. उन्होंने कहा कि इस काम के पूरे हो जाने के बाद हम घावों को भरने की पूरी प्रक्रिया को समझ सकेंगे. उन्होंने कहा कि ये एक तरह की क्रांति होगी. डॉ इंडिका ने कहा कि अमेरिका के पास संसाधन है और अमेरिका को इसका पूरा फायदा उठाना भी चाहिए. उन्होंने कहा कि सेल्स के मोडिफिकेशन से अलग टाइप के सेल्स के सीक्वेंस तैयार किए जा सकेंगे. ऐसे में किसी हादसे की स्थिति में उन सेल्स को घाव पर स्रे करने के बाद घाव पांच गुना तेजी से भरने लगेंगे. हालांकि इसमें अभी कुछ साल तक का समय लग सकता है.

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