ये बड़ा विरोधाभास है कि दुनिया में इस्लाम के जो मुख्य केंद्र हैं, वहां पर मस्जिदें खाली हैं, धार्मिक आयोजन बंद हैं. लेकिन भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में बड़ी आसानी से इस्लामिक आयोजन हो रहे हैं. ऐसा इसलिए कि इन देशों में इस्लाम सिर्फ धर्म नहीं राजनीति का हिस्सा बनाया जा चुका है. इसके नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं और इसे वोटबैंक की तरह देखा जाता है.
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पूरे देश में नवरात्रि मनाई जा रही है फिर भी देश के लगभग सारे मंदिर बंद हैं, गुरुद्वारे और चर्च भी लॉकडाउन में है, ज्यादातर मस्जिदों में भी इसका पालन हो रहा है लेकिन निजामुद्दीन जैसी घटना बताती है कि सब इसका पालन नहीं कर रहे. इस संदर्भ में आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने क्या कहा आप पहले वो सुन लीजिए फिर हम अपनी बात आगे बढ़ाएंगे .
जाहिर है कि कुछ लोग देश के संविधान, कानून और पुलिस के आदेशों के मुताबिक नहीं चलना चाहते. कुछ दिनों पहले तक शाहीन बाग में भी ऐसा ही हो रहा था. वहां भी विरोध प्रदर्शन कर रहे लोग कानून, पुलिस और संविधान की सुनने को तैयार नहीं थे. यानी हर बार कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए सारे नियमों और अपीलों को ताक पर रख देते हैं और देश इनकी गलतियों का नतीजा भुगतता है, ऐसे लोगों के लॉकडाउन को लेकर अपने नियम होते हैं और अपने वैचारिक ताले होते हैं . इसलिए ऐसे लोगों की पहचान करना भी बहुत ज़रूरी है.
भारत में धार्मिक प्रचार के लिए आने के लिए मिशनरी वीज़ा लेना होता है जिसमें कम से कम तीन महीने का वक्त लगता है. इस वीज़ा को पाने के लिए कड़े नियम हैं. इसलिए तबलीगी जमात जैसे कार्यक्रमों में आने वाले लोग गलत जानकारी देकर टूरिस्ट वीज़ा पर भारत आते हैं. और फिर धार्मिक प्रचार प्रसार में जुट जाते हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि तबलीगी जमात में शामिल कई विदेशियों ने वीज़ा नियमों का उल्लंघन किया है और इनको विदेशियों को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है. यानी इनके भारत आने पर अब प्रतिबंध लग जाएगा. हम आपको ये बताते हैं कि निजामुद्दीन मरकज में दुनिया में कहां-कहां से लोग आए थे.
इनमें सबसे ज़्यादा इंडोनेशिया से 72 लोग, थाईलैंड से 71, श्रीलंका से 34 लोग, म्यांमार से 33 लोग, किर्गिस्तान से 28 लोग, मलेशिया से 20 लोग, बांग्लादेश और नेपाल से 19-19 लोग, फिजी से 4 लोग, इंग्लैंड से 3 लोग, कुवैत से 2 लोग, फ्रांस, अल्जीरिया, जिबूती और अफगानिस्तान से एक-एक लोग शामिल हैं.
ये बड़ा विरोधाभास है कि दुनिया में इस्लाम के जो मुख्य केंद्र हैं, वहां पर मस्जिदें खाली हैं, धार्मिक आयोजन बंद हैं. लेकिन भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में बड़ी आसानी से इस्लामिक आयोजन हो रहे हैं. ऐसा इसलिए कि इन देशों में इस्लाम सिर्फ धर्म नहीं राजनीति का हिस्सा बनाया जा चुका है. इसके नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं और इसे वोटबैंक की तरह देखा जाता है. हम आपको इस्लाम के सबसे बड़े केंद्र सऊदी अरब की तस्वीरें दिखाते हैं.
ये मुसलमानों का सबसे बड़े धार्मिक स्थल मक्का के काबा की तस्वीर है. फरवरी में ही काबा को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था. तीर्थयात्रियों के लिए मक्का और मदीना की धार्मिक यात्रा को रोक दिया गया था. मक्का, मदीना, रियाद सहित सऊदी अरब में हर बड़े और छोटे शहर में लॉकडाउन है. सड़कों पूरी तरह से खाली हैं. कोई इस्लामिक आयोजन करने की बात तो दूर, लोग बाहर नहीं निकल सकते. यूएई में भी मस्जिदों में नमाज पर रोक है. लोग नमाज के लिए इकट्ठा नहीं हो सकते. ना कोई धार्मिक आयोजन कर सकते हैं. यूएई में सभी लोगों से कहा गया कि वो अपने घरों में ही रहें और वहीं इबादत करें.
यूएई हो, सऊदी अरब हो, टर्की हो, ईरान हो, इन सभी देशों में मस्जिदों में सामूहिक नमाज बंद कर दी है. धार्मिक आयोजनों पर रोक लगा दी गई. ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि इन देशों की राजनीति मुस्लिम वोटों पर आश्रित नहीं है. लेकिन जहां इस्लाम की सियासत होती है, उन देशों को कोई फर्क नहीं पड़ता. पाकिस्तान में भी तबलीगी जमात के धार्मिक आयोजन हुए. लाखों की भीड़ इकट्ठा हुई और किसी ने इनको रोकने की हिम्मत नहीं दिखाई.
इसी महीने पाकिस्तान के लाहौर, इस्लामाबाद और हैदराबाद जैसे शहरों में तबलीगी जमात के कार्यक्रमों में लाखों लोग आए. तबलीगी जमात के विदेशी प्रचारकों की जब जांच हुई तो इनमें करीब 27 लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए. इनमें से कई लोग जब अपने देश लौटे तो वहां पर संक्रमण फैलाया.
लेकिन ऐसे आयोजनों के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. क्योंकि पाकिस्तान जैसे देशों में नेताओं को अपनी कुर्सी जाने का भी खतरा दिखने लगता है. इसलिए इन्हें पूरी छूट दी जाती है. पाकिस्तान में तो सरकार की हिम्मत नहीं हो रही थी कि मस्जिदों को बंद किया जाए और सामूहिक नमाज पर रोक लगा दी जाए, क्योंकि उलेमा ऐसा करने को तैयार नहीं थे. पाकिस्तान पिछले शुक्रवार को फैसला ले पाया कि नमाज के लिए 5 से ज़्यादा लोग इकट्ठा नहीं होंगे. तबलीगी जमात के आयोजन से खतरे के बारे में पाकिस्तान पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खकान अब्बासी ने क्या कहा था वो आपको दिखा देते हैं.
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पाकिस्तान में तो ऐसे आयोजन रोकना मुमकिन नहीं है क्योंकि पाकिस्तान इस्लामिक देश है और वहां कट्टरपंथियों के आगे सरकारों के हाथ कांपते हैं. लेकिन भारत जैसे देश में भी इसे रोकना मुमकिन नहीं है. क्योंकि हमारे यहां वर्षों से वोटबैंक की राजनीति होती रही है. हमारे यहां वर्षों से कहा जाता है कि हर शहर में एक ऐसा इलाका होता है जहां पुलिस भी जाने से हिचकती है. निजामुद्दीन ऐसा ही एक इलाका है. इसीलिए पुलिस यहां कार्रवाई करने से बचती रही.
यहां सवाल सोच का है. क्योंकि इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई पढ़ा लिखा है या फिर अनपढ़ है. अमीर है या गरीब है. अभी कुछ दिन पहले IT कंपनी इंफोसिस के एक इंजीनियर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था, जिसमें ये कहा था कि आइए हम सब साथ आएं, लोगों के बीच जाकर छींकें और वायरस को फैलाएं. मुजीब मोहम्मद नाम के इस इंजीनियर की ऐसी सोच पर लोगों ने शिकायत की तो कंपनी ने जांच के बाद इस इंजीनियर पर कार्रवाई की और उसे नौकरी से निकाल दिया.