UK General Election 2024: दांव पर ऋषि सुनक का राजनीतिक भविष्य, ये 4 मुद्दे बने कंजर्वेटिव पार्टी के लिए चुनौती
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UK General Election 2024: दांव पर ऋषि सुनक का राजनीतिक भविष्य, ये 4 मुद्दे बने कंजर्वेटिव पार्टी के लिए चुनौती

Rishi Sunak: पीएम ऋषि सुनक ने बुधवार को लोगों से उनके पक्ष में मतदान करने की अपील की. उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा, 'यही बात हमें एकजुट करती है. हमें लेबर पार्टी की बहुमत वाली सरकार को रोकना होगा जो आप पर टैक्स बढ़ाएगी.

UK General Election 2024:  दांव पर ऋषि सुनक का राजनीतिक भविष्य, ये 4 मुद्दे बने कंजर्वेटिव पार्टी के लिए चुनौती

UK Election 2024:   ब्रिटेन में आज (4 जुलाई) आम चुनाव हो रहे हैं जिसमें प्रधानमंत्री एवं कंजर्वेटिव पार्टी के नेता ऋषि सुनक के राजनीतिक भविष्य का फैसला होगा. एक के बाद एक ओपनियन पोल कंजर्वेटिव पार्टी को बड़ी हार और लेबर पार्टी की जीत की घोषणा कर रहे हैं.

पीएम ऋषि सुनक ने बुधवार को लोगों से उनके पक्ष में मतदान करने की अपील की. उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा, 'यही बात हमें एकजुट करती है. हमें लेबर पार्टी की बहुमत वाली सरकार को रोकना होगा जो आप पर टैक्स बढ़ाएगी. ऐसा करने का एकमात्र तरीका है, कल कंजर्वेटिव पार्टी को वोट देना.'

हालांकि जनता सुनक की अपील पर कितना विचार करेगी इसका शुक्रवार को नतीजे के दिन ही पता चलेगा. लेकिन यह जानने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्या हुआ जो सुनक, उनकी पार्टी को बेहद कमजोर आंका जा रहा है.

कंजर्वेटिव दबाव में क्यों हैं?
2010 में सत्ता संभालने के बाद से कंजर्वेटिव को एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. सबसे पहले ग्लोबल वित्तीय संकट का नतीजा सामने आया, जिसने ब्रिटेन के कर्ज को बढ़ा दिया और बजट को संतुलित करने के लिए टोरीज को कई सालों तक खर्जों पर लगाम लगानी पड़ी. इसके बाद उन्होंने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर कर दिया, ब्रिटन पश्चिमी यूरोप में सबसे घातक COVID-19 प्रकोपों ​​में से एक से जूझा. परेशानियां यही नहीं खत्म हुए रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया तो देश ने मुद्रास्फीति में उछाल देखा.

इसके अलावा, पार्टी भ्रष्टाचार के मोर्च में पर जूझती नजर आई. इसमें सरकारी कार्यालयों में लॉकडाउन तोड़ने वाली पार्टियां भी शामिल हैं. घोटालों के कारण पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पद से हटना पड़ा और अंततः संसद से भी बाहर होना पड़ा, क्योंकि उन पर सांसदों से झूठ बोलने का आरोप लगा था.  उनकी उत्तराधिकारी लिज ट्रस सिर्फ 45 दिन ही सत्ता में रहीं, जबकि उनकी आर्थिक नीतियों ने अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था.

इन चार बड़े मुद्दे पर कंजर्वेटिव के लिए जवाब देना हो रहा मुश्किल

कमोजर अर्थव्यवस्था
ब्रिटेन उच्च मुद्रास्फीति और धीमी आर्थिक वृद्धि से जूझ रहा है, जिसके कारण अधिकांश लोग आर्थिक परेशानियां महसूस कर रहे हैं. कंजर्वेटिव मुद्रास्फीति को कंट्रोल करने में सफल रहे, जो अक्टूबर 2022 में 11.1% के शिखर पर पहुंचने के बाद मई तक 2% तक धीमी हो गई, लेकिन विकास की रफ्तार सुस्त बना रही. इससे सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं.

इमिग्रेशन को कंट्रोल करने में नाकामी
हाल के वर्षों में हजारों शरणार्थी और आर्थिक प्रवासियों ने कमजोर हवा वाली नावों में सवार होकर इंग्लिश चैनल पार किया है. इसकी वजह से सरकार को आलोचना झेलनी पड़ रही है कि उसने ब्रिटेन की सीमाओं पर नियंत्रण खो दिया है. इमिग्रेशन को रोकने के लिए कंज़र्वेटिवों की प्रमुख नीति इनमें से कुछ प्रवासियों को रवांडा निर्वासित करने की योजना है. आलोचकों का कहना है कि यह योजना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करती है, अमानवीय है और यह युद्ध, अशांति और अकाल से भाग रहे लोगों को रोकने के लिए कुछ नहीं करेगी.

स्वास्थ्य सेवा की खस्ता हालत
ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, जो सभी को निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती है, दंत चिकित्सा से लेकर कैंसर उपचार तक हर चीज़ के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट से जूझ रही है. समाचार-पत्र गंभीर रूप से बीमार रोगियों के बारे में समाचारों से भरे पड़े हैं, जिन्हें एम्बुलेंस के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता है, फिर अस्पताल के बिस्तर के लिए और भी लंबा इंतज़ार करना पड़ता है.

पर्यावरण का मुद्दा
सुनक ने पर्यावरण से जुड़ी कई प्रतिबद्धताओं से पीछे हटते हुए गैसोलीन और डीजल से चलने वाले यात्री वाहनों की बिक्री बंद करने और उत्तरी सागर में नए तेल खनन को अधिकृत करने की समयसीमा को आगे बढ़ा दिया. आलोचकों का कहना है कि ये ऐसे समय में गलत नीतियां हैं जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से निपटने की कोशिश कर रही है.

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