Trending News: बैलेंस लाइफ जीने के लिए कितना पैसा पास में होना जरूरी? मिल गया सटीक जवाब
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Trending News: बैलेंस लाइफ जीने के लिए कितना पैसा पास में होना जरूरी? मिल गया सटीक जवाब

Survey: भारत, अर्जेंटीना और रूस में 50 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे $1 मिलियन डॉलर या उससे कम यानी 70 से 80 लाख रुपये के साथ संतुष्ट होंगे.

प्रतीकात्मक इमेज

Latest Trending News: लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं, वह करोड़पति और अरबपति बनना चाहते हैं, लेकिन ये सिक्के का एक पहलू है. सिक्के का दूसरा पहलू भी है, जो हकीकत से अलग है. इसमें आदर्श जीवन के लिए हर आदमी अरबपति ही नहीं बनना चाहता. वह करोड़पति बनकर भी खुश रहना चाहता है. दरअसल, आदर्श जीवन जीने के लिए अरबपति होना जरूरी नहीं है. हर इंसान की अतृप्त इच्छा एक मनोवैज्ञानिक निर्माण के रूप में चाह के साथ अलग-अलग होती है. हाल ही में आई एक स्टडी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. इस स्टडी में लोगों से पूछा गया था कि आप एक आदर्श जीवन जीने के लिए कितना पैसा चाहते हैं जो उनकी सभी जरूरतों को पूरा कर सके.

8 से 39 प्रतिशत लोगों की चाहतें असीमित

रिपोर्ट के मुताबिक, 33 देशों में हुए इस अध्ययन में कई देशों में अधिकांश लोगों ने 10 मिलियन डॉलर यानी करोड़ रुपये या उससे कम के धन से आदर्श जीवन जीने की बात कही. हालांकि पूरे देश में 8 से 39 प्रतिशत लोगों की चाहतें असीमित मिलीं और वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहते थे.

भारत में 50% लोग 1 मिलियन डॉलर से खुश

अध्ययन में अमेरिकियों से पूछा गया कि अगर आपकी लॉटरी लगती है तो आप कितनी राशि चाहते हैं. इस पर 46 प्रतिशत अमेरिकियों ने कहा कि वे 10 मिलियन डॉलर या उससे कम की राशि यानी करोड़ रुपये या उससे कम के साथ खुश हैं. वहीं यूके में 26 प्रतिशत लोगों ने 1 मिलियन डॉलर से संतुष्ट होने की बात कही, इनमें से अधिकांश ने कहा कि 10 मिलियन डॉलर या उससे कम ठीक रहेगा, जबकि 13 प्रतिशत ने कहा कि वे 100 बिलियन डॉलर चाहते हैं. भारत, अर्जेंटीना और रूस में 50 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे $1 मिलियन डॉलर या उससे कम यानी 70 से 80 लाख रुपये के साथ संतुष्ट होंगे.

33 देशों में की गई यह स्टडी

यह शोध 6 महाद्वीपों और 42 समुदायों में फैले 33 देशों के बीच किया गया था. यह स्टडी रिपोर्ट नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित की गई. शोध ने निष्कर्ष निकाला कि "असीमित चाहतों" की धारणा सार्वभौमिक नहीं थी और यह वास्तव में केवल अल्पसंख्यक लोगों पर लागू होती हैं.

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