नेपाल में सोशल मीडिया पर क्यों ट्रेंड कर रहा है #StopDemocidePMOli?
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नेपाल में सोशल मीडिया पर क्यों ट्रेंड कर रहा है #StopDemocidePMOli?

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (Nepal Prime Minister KP Sharma Oli) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में भले ही कमी आई है, लेकिन जनता में उनके प्रति नाराजगी अभी भी कायम है.

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली

काठमांडू: नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (Nepal Prime Minister KP Sharma Oli) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में भले ही कमी आई है, लेकिन जनता में उनके प्रति नाराजगी अभी भी कायम है. कोरोना वायरस (CoronaVirus) को लेकर पीएम ओली को एक बार फिर से निशाना बनाया जा रहा है. 

  1. नेपाल के प्रधानमंत्री के खिलाफ लोगों का फूटा गुस्सा 
  2. सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं केपी शर्मा ओली
  3. कोरोना से निपटने के सरकारी प्रयासों से खफा हैं लोग

नेपाल में सोशल मीडिया पर #StopDemocidePMOli ट्रेंड कर रहा है. नेपाली यूजर्स अमेरिकी प्रोफेसर आरजे रुमेल (RJ Rummel) द्वारा गढ़े गए शब्द ‘डेमोसाइड’ (Democide) इस्तेमाल करके सरकार के प्रति अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं. यह शब्द लोकतंत्र और नरसंहार यानी जेनसाइड से मिलकर बना है. 

बिना रणनीति मैदान में सरकार 
नेपाल के लोगों का कहना है कि ‘डेमोसाइड’ देश की मौजूदा स्थिति को बयां करता है. दुनिया के कई नेताओं की तरह ओली भी कोरोना के खतरे को कमतर आंकते आये हैं. उन्होंने इससे बचाव को लेकर कुछ अजीबोगरीब बयान भी दिए थे, जिससे लोग भड़के हुए हैं. लोगों का कहना है कि ओली सरकार महामारी की रोकथाम के बजाये बेवजह की बयानबाजी में लगी है, जिससे पता चलता है कि उसके पास कोई कारगर रणनीति नहीं है. 

चाय-नाश्ते पर 170 मिलियन डॉलर खर्च
नेपाली देश की अर्थव्यवस्था पर भी सवाल उठा रहे हैं. लॉकडाउन के चलते हजारों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है. ऐसे वक्त में जब देश आर्थिक तंगी से गुजर रहा है, ओली सरकार की फिजूलखर्ची भी लोगों के गुस्से को भड़का रही है. विपक्षी दलों का आरोप है कि पिछले तीन वर्षों में ओली सरकार ने सिर्फ चाय-नाश्ते पर 170 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं. यह राशि इस तरह के कार्यों के लिए आवंटित बजट से 800 प्रतिशत ज्यादा है. 

अपनी धुन में मस्त ओली
हालांकि, प्रधानमंत्री ओली को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपनी धुन में मस्त हैं और नेपाल के इशारे पर काम करने में लगे हैं. वह चाहते हैं कि किसी तरह गोरखाओं को भारतीय सेना में शामिल होने से रोका जाए. भारतीय सेना के गोरखा सैनिकों के पराक्रम से चीन वाकिफ है, इसलिए वह नेपाल पर दबाव डाल रहा है कि वह 200 साल पुरानी परंपरा को खत्म करके भारतीय सेना और गोरखाओं के बीच एक चौड़ी खाई खींच दे.

चीन की गंदी चाल
सियाचिन ग्लेशियर की खतरनाक चोटियों पर गोरखा सैनिक अपनी बहादुरी का कई बार परिचय दे चुके हैं और यही बात चीन को खटक रही है. इस बीच, यह खबर भी सामने आई है कि चीनी दूतावास ने काठमांडू के एक गैर सरकारी संगठन (NGO) को खास काम के लिए नियुक्त किया है. NGO से यह पता लगाने को कहा गया है कि आखिर गोरखा समुदाय के लोग भारतीय सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं. इरादा साफ है - गोरखा समुदाय का ब्रेनवॉश करके उसे भारतीय सेना का हिस्सा बनने से रोकना.

कई बार बयानबाजी
नेपाल सरकार खुद भी इस विषय पर कई बार बयानबाजी कर चुकी है. कुछ वक्त पहले नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने कहा था कि 1947 में हुए समझौते के कई प्रावधान संदिग्ध हैं, इसलिए अब भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती की समीक्षा होगी. प्रधानमंत्री ओली भी इस कोशिश में लगे हैं, हालांकि ये बात अलग है कि चीन और नेपाली सरकार की इस कोशिश का गोरखा समुदाय पर कोई असर नहीं हुआ है.

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