Save Climate: पर्यावरण बचाने के लिए सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश ने जो किया, दुनियाभर में हो रही चर्चा
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Save Climate: पर्यावरण बचाने के लिए सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश ने जो किया, दुनियाभर में हो रही चर्चा

Climate change and Global warming: दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया की एक मुहिम को बीते कुछ समय से दुनियाभर की तारीफ मिल रही है. क्या है ये मुहिम आइए बताते हैं.

 

Save Climate: पर्यावरण बचाने के लिए सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश ने जो किया, दुनियाभर में हो रही चर्चा

Climate change and Indonesia: पर्यावरण बचाने में भारत का योगदान अतुलनीय है. भारत में सालों और सदियों से नहीं बल्कि युगों-युगों से पेड़ पौधों और नदियों की पूजा हो रही है. पेड़-पौधों में जान होती है. कहा जाता है कि 'पीपल में देवता का वास होता है'. 'वट सावित्री' पूजा के व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा होती है. 'लक्ष्मी माता को कमल का फूल पसंद है'. 'हमें वृक्षारोपण करना चाहिए, उन्हें नहीं काटना चाहिए'. 'नदियों को साफ रखना चाहिए'. जैसी बातों के धार्मिक मान्यताओं से जुड़े होने के सराहनीय परिणाम दुनिया ने देखे हैं. अब भारत से करीब 8890 किलोमीटर दूर दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में आस्था और विश्वास के नाम पर धरती को बचाने की एक शानदार मुहिम चलाई जा रही है. जिसकी दुनियाभर में चर्चा हो रही है.

ग्लोबल वार्मिंग को रोकना और क्लाइमेट चेंज के खतरे को कम करना मकसद

इंडोनेशिया में जलवायु परिवर्तन रोकने और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम करने की कोशिशें रंग ला रही हैं. स्थानीय मीडिया के मुताबिक मस्जिदों के इमाम, मौलाना और मुस्लिम स्कॉलर कुदरत को बचाने का संदेश दे रहे हैं. इमाम नसरुद्दीन उमर इस मुहिम को बड़े पैमाने पर चला रहे हैं. उनका कहना है कि 'हम प्रकृति के प्रति जितने लालची होंगे, प्रलय का दिन उतनी ही जल्दी आएगा'.

इस तरह दी जा रही दुनिया बचाने की सीख

इस्लाम में तौहीद या शहादा, नमाज़, रोज़ा, ज़कात (दान) और हज का बड़ा महत्व है. हर मुसलमान को इन्हें अपनी जिंदगी का आधार मानकर चलना होता है. इन्हीं शिक्षाओं के जरिए कुदरत बचाने का संदेश दिया जा रहा है. इमाम उमर की बात करें तो उनका कहना है कि वो हफ्ते में एक दिन सभी को पर्यावरण बचाने की मुहिम में जागरूक करते हैं. लोग जो अमल लाते हैं उसका रिव्यू करते हैं. इस तरह वो दुनिया बचाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

इमाम नसरुद्दीन उमर का कहना है कि जैसे रमज़ान के दौरान उपवास करना, यह हर मुसलमान का कर्तव्य है. ज़कात (दान देना) जरूरी है. वैसे ही पृथ्वी का संरक्षक बनने के लिए भी काम करना चाहिए. जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी आर्थिक मदद करना नेक काम है.  रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) जैसी मुहिम को बढ़ावा देने के साथ हमें अपनी दैनिक प्रार्थनाओं की तरह, पेड़ लगाने की अच्छी आदत होनी चाहिए.

कुदरत बचाने के लिए फतवा जारी

जकार्ता की इस्तिकलाल मस्जिद के इमाम के उपदेशों में प्रकृति यानी कुदरत को बचाने की चर्चा पर फोकस रहता है. जिस नदी के किनारे ये मस्जिद है, उसमें कूड़ा-कचरा जमा हुआ तो उन्होंने लोगों को उसकी सफाई करने का आदेश दिया. बिजली के बढ़े बिलों पर काबू पाने के लिए उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद में सोलर पैनल लगावाए हैं. उन्होंने पूरे परिसर में धीमी गति से प्रवाह वाले नल लगवाए हैं. पानी को रिसाइकिल करने के लिए लिए भी काम किया गया है. धरती बचाने की उनकी मुहिम के चलते इस मस्जिद की चर्चा वर्ल्ड बैंक तक हो चुकी है.

भ्रांति दूर करने की जरूरत

इस्लामिक देश इंडोनेशिया में इस्लाम के जरिए पर्यावरण की अलख जगाने की कोशिश में इमाम साहब अकेले नहीं हैं. कई मौलानाओं ने जलवायु परिवर्तन रोकने के तरीकों का पालन करवाने के लिए फतवे जारी किए हैं. इमाम नसरुद्दीन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा, 'दुनिया में सबसे अधिक मुस्लिमों वाले देश के रूप में, हमें एक अच्छा उदाहरण स्थापित करना होगा. कुछ लोग पर्यावरणवाद को मजहब से संबंधित मानते हैं. हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कुछ सर्वेक्षणों से पता चला है कि इंडोनेशियाई लोगों के बीच ये धारणा है कि 'जलवायु परिवर्तन' नाम की कोई चीज नहीं है. लेकिन ग्रीन इस्लाम आंदोलन के समर्थकों का कहना है कि 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमानों को शिक्षित करने से बदलाव लाया जा सकता है.'

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