नई दिल्लीः देश में आगामी लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल करने की योजना बना रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों - बसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार को उम्मीदवार बना सकती है. बोम्मई और शेट्टार दोनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं. ऐसा माना जाता है कि लिंगायत समुदाय के लोग बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में मतदान करते हैं.
शाह और नड्डा से हुई चर्चा
भाजपा के नेता बी एस येदियुरप्पा ने कहा कि राज्य की सभी 28 लोकसभा सीट के लिए बोम्मई और शेट्टार सहित अन्य उम्मीदवारों के नामों के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के साथ चर्चा हुई है, लेकिन इस संबंध में अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है.
जेडीएस को मिल सकती है इतनी सीटें
भाजपा के संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य येदियुरप्पा ने यह भी संकेत दिया कि भाजपा कर्नाटक में अपने गठबंधन सहयोगी जनता दल (सेक्युलर) को दो-तीन सीट आवंटित कर सकती है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व अंतिम निर्णय लेगा. पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से पहले विभिन्न राज्यों के भाजपा नेता शाह और नड्डा से मुलाकात कर रहे हैं. इस सप्ताह भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की दूसरी बैठक होनी है, जिसमें लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा.
195 सीटों का हुआ ऐलान
भाजपा अब तक लोकसभा की कुल 543 में से 195 सीट के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है. येदियुरप्पा ने राष्ट्रीय राजधानी में संवाददाताओं से कहा, ‘‘कल अमित शाह जी, नड्डा जी और हम सभी ने मिलकर राज्य की सभी 28 लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा की. टिकट किसे दिया जाए यह अभी तय नहीं हुआ है. इन सभी पर प्रधानमंत्री के साथ चर्चा की जाएगी और हमें दो-तीन दिनों में इसे लेकर स्पष्टता मिल सकती है.
उन्होंने कहा, ‘‘ सभी बातों पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन किसे कहां से टिकट दिया जाएगा, यह अभी तय नहीं हुआ है. बोम्मई और जगदीश शेट्टार को लेकर चर्चा हुई है.’’ शेट्टार, जो पिछले साल राज्य विधानसभा चुनाव से पहले टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जनवरी में अपनी भाजपा में फिर से लौट आए हैं.
बोम्मई और शेट्टार दोनों ही नेता लिंगायत समुदाय से हैं, जिसे कर्नाटक में भाजपा के मजबूत वोट-आधार के रूप में देखा जाता है. पार्टी सूत्रों के अनुसार पिछले साल विधानसभा चुनावों में समुदाय का भाजपा से 'थोड़ा दूर जाना' उसकी हार के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है. येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.
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