West Bengal Election 2021: जिसका नंदीग्राम, उसका बंगाल?

नंदीग्राम पश्चिम बंगाल की वो सीट है, जिसपर अब पूरे देश की नजर है. ये सीट 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में सबसे दिलचस्प सीट बन चुकी है, आपको इस सीट की अहमियत समझनी चाहिए.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Mar 7, 2021, 07:20 AM IST
  • पश्चिम बंगाल की 'सियासी युद्धभूमि'- नंदीग्राम
  • सीएम ममता बनर्जी Vs बीजेपी के शुवेंदु अधिकारी
West Bengal Election 2021: जिसका नंदीग्राम, उसका बंगाल?

कोलकाता: 5 राज्यों के चुनाव में नंदीग्राम विधानसभा सीट पर पूरा देश टकटकी लगाए देख रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को यहां से 2021 का विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है और ममता के ऐलान के ठीक एक दिन बाद शनिवार को बीजेपी ने यहां से ममता के खिलाफ शुवेंदु अधिकारी को अपना उम्मीदवार बना दिया.

नंदीग्राम में महासंग्राम

बीजेपी ने बंगाल के 57 उममीदवारों के नामों की घोषणा की, इसमें शुवेंदु अधिकारी भी शामिल हैं. नंदीग्राम सीट से बीजेपी के टिकट पर शुवेंदु अधिकारी चुनाव लड़ेंगे. वो शुवेंदु अधिकारी, जो कभी टीएमसी में बड़ा चेहरा थे और ममता बनर्जी के सबसे करीबी नेता माने जाते थे.

सीट का समीकरण समझिए

नंदीग्राम का समीकरण समझाने के लिए आपको इस सीट पर हुई पिछले तीन चुनावी जंग के बारे में समझाते हैं. 2007 से पहले तृणमूल का वर्चस्व बंगाल में उतना दमदार नहीं था, जितना नंदीग्राम आंदोलन के बाद हुआ. 2006 के चुनाव की बार करें तो इस सीट से एसके. इलियास मोहम्मद (Illias Mahammad Sk.) ने ममता की पार्टी TMC के एसके सुपियां (Sk. Supian) को साढ़े 5 हजार से अधिक वोटों से हराया था.

हालांकि 2011 के चुनाव में ममता की पार्टी ने नंदीग्राम से जीत हासिल तो दीदी को पहली बार सीएम की कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. इस बार TMC की फिरोजा बीबी ने CPI के परमानंद भारती को 40 हजार से अधिक वोटों से मात दी.

इसके अलगे चुनाव यानी 2016 के विधानसभा इलेक्शन में नंदीग्राम से TMC के बैनर तले शुवेंदु अधिकारी मैदान में उतरे और उन्होंने CPI के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से हराया.

दीदी के लिए खतरे की घंटी?

ममता बनर्जी को कहीं अपने इस फैसले पर अफसोस न हो जाए, क्योंकि 2016 विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने भवानीपुर सीट से 25 हजार वोटों से जीत हासिल की थी, जबकि शुवेंदु अधिकारी ने 81 हजार वोटों से अपने प्रतिद्वंदी को मात दी थी.

ऐसे में इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि अपने क्षेत्र में शुवेंदु अधिकारी सीएम ममता से ज्यादा ताकतवर रहे हैं, लेकिन इस बात को 5 साल बीत गए हैं और अब तो शुवेंदु अधिकारी ने पार्टी भी बदल ली है, ऐसे में इस मसले पर कुछ भी कहा जाना काफी मुश्किल है.

नंदीग्राम से लड़ेंगी दीदी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐलान करते हुए कहा था कि था कि 'मैं नंदीग्राम से ही चुनाव लड़ूंगी, मैं अगर कुछ कहती हूं तो उसे पूरा भी करती हूं. भवानीपुर मेरी मुट्ठी में ही रहता है. वहां कोई भी आयोजन हो मैं ही देखती हूं.'

नंदीग्राम से ममता के चुनाव लड़ने के ऐलान पर बीजेपी पहले ही दीदी को 50 हजार वोटों से चुनाव हराने का दंभ भर चुकी है.

बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा था कि नंदीग्राम में 50 हजार से हराएंगे, शुवेंदु लड़े या कोई और भवानीपुर से नहीं लड़ी, क्योंकि उनको पता लग गया कि वहा से नहीं जीतेगी.

ममता ने क्यों चुना नंदीग्राम?

2011 और 2016 में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल (West Bengal) की भवानीपुर सीट से विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं. लेकिन इस बार उन्होंने नंदीग्राम के लिए भवानीपुर की सुरक्षित सीट छोड़ दी. टीएमसी और बीजेपी के लिए नंदीग्राम की सीट आखिर नाक की लड़ाई क्यों बन चुकी है? 

2021 में बंगाल, 2024 में 'दिल्ली कूच!

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की मानें तो वो 2024 में दिल्ली कूच भी कर सकती हैं. लेकिन ममता बनर्जी में इतना आत्मविश्वास आया कहां से? क्या इसके पीछे की वजह नंदीग्राम की सीट है?  इसे समझने के लिए आपको पिछले वर्ष की पश्चिम बंगाल की एक तस्वीर देखनी चाहिए.

19 दिसंबर 2020 को देश के गृहमंत्री और बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने मिदिनापुर में बड़ी रैली की थी. इसी रैली में अमित शाह के साथ मंच पर टीएमसी का एक बड़ा चेहरा भी मौजूद था. शुवेंदु अधिकारी, जिन्हें खुद अमित शाह ने बीजेपी में शामिल कराया और बाकायदा शुवेंदु अधिकारी का नाम लेकर ममता बनर्जी को ललकारा.

गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि भाई शुवेंदु अन्याय के खिलाफ, बंगाल की जनता के शोषण के खिलाफ, आपका साथ छोड़ कर मोदी जी के साथ आ रहे हैं. आपको दलबदल लग रहा है दीदी.. मगर दीदी यह तो शुरुआत है चुनाव आते आते आप अकेली रह जाएंगी.

राजनीति के जानकार मानते हैं कि ममता बनर्जी को अमित शाह की ये ललकार उसी समय चुभ गई थी, क्योंकि शुवेंदु अधिकारी ना सिर्फ ममता सरकार में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर थे बल्कि टीएमसी में दूसरे नंबर के नेता माने जाते थे. 2016 के विधानसभा चुनाव में शुवेंदु अधिकारी पूर्वी मेदिनीपुर जिले की इसी नंदीग्राम सीट से टीएमसी के टिकट पर चुनाव में उतरे थे. शुवेंदु ने सीपीआई के अब्दुल कबी को करारी शिकस्त दी थी. ममता ने उन्हें इनाम के तौर पर कैबिनेट मंत्री का पद दिया था.

लेकिन इसके बाद टीएमसी में ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का कद बढ़ता गया. टीएमसी में परिवारवाद का बोलबाला हो गया और पार्टी में शुवेंदु अधिकारी जैसे जमीनी नेता हाशिये पर चले गए.

शुवेंदु अधिकारी, जिनके बारे में कहा जाता है कि राज्य की 50 सीटों पर उनके परिवार की मजबूत पकड़ है, उन्होंने टीएमसी में दरकिनार किये जाने के बाद बीजेपी को ज्वाइन किया और बीजेपी में शुवेंदु का जाना ममता के लिए बड़ी चोट की तरह था.

नंदीग्राम का चुनावी संग्राम!

ममता बनर्जी ने इसके बाद 18 जनवरी 2021 को शुवेंदु के गढ़ नंदीग्राम जाकर बड़ी रैली की और पहली बार नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान किया.

उस दिन ममता बनर्जी ने कहा कि 'ये मेरी इच्छा है कि भवानीपुर को मैं छोड़ नहीं सकती क्योंकि वहां से मुझे बहुत प्यार है लेकिन इनसे बोलूंगी कि मुझे नंदीग्राम से भी चुनाव लड़ना है.'

दीदी को खुली चुनौती!

18 जनवरी 2021 को ही बीजेपी नेता शुवेंदु अधिकारी ने ममता दीदी को ओपन चैलेंज दिया था और उन्होंने कहा था कि आधे लाख वोटों से हराने में असफल रहा, तो राजनीति छोड़ दूंगा.

नंदीग्राम की सीट को ममता बनर्जी के लिए पुनर्जन्म क्यों कहा जा रहा है? सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा क्यों है कि नंदीग्राम से ममता बनर्जी एक बार फिर बंगाल विजय का सपना देख रही है? ये अहम सवाल है, लेकिन उससे भी ज्यादा बड़ा चैलेंज शुवेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को अपना नाम फाइनल होने के बाद दिया है.

शुवेंदु ने कहा कि 'हम मिदनापुर के पुत्र को चाहते हैं, ना कि बाहरी को. हम आपको (ममता बनर्जी) चुनावी मैदान में देखेंगे. 2 मई को ममता चुनाव हारेंगी और जाएंगी.'

नंदीग्राम क्यों हैं खास?

वर्ष 2006 के दिसंबर माह में नंदीग्राम के लोगों को हल्दिया विकास प्राधिकरण (HDA) की तरफ से नोटिस थमा दिया गया था कि नंदीग्राम का बड़ा हिस्सा जब्त किया जाएगा. इसके तहत 70 हजार लोगों को उनके घर से निकालने का प्लान था. उस वक्त भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत हुई और TMC ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

14 मार्च 2007 को 14 ग्रामीणों पर गोलियां बरसा दी गईं और कई सारे लोग गायब हो गए. तृणमूल कांग्रेस इस आंदोलन में डटी रही. दीदी को राजनीतिक तौर पर इस आंदोलन का सबसे बड़ा फायदा मिला.

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2009 के लोकसभा चुनाव में ममता की पार्टी ने 19 सीटों पर विजय बिगुल बजाया. इसके बाद 2010 में हुए कोलकाता नगरपालिका चुनाव में भी ममता बनर्जी का जलवा दिखाई दिया. TMC ने 141 सीटों में से 97 सीटों पर कब्जा जमा लिया.

लड़ाई हुई दिलचस्प

नंदीग्राम में दूसरे चरण में चुनाव होगा. 1 अप्रैल को नंदीग्राम में वोट डाले जाएंगे और जिस तरह से ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से ताल ठोका है, बीजेपी को खुला चैलेंज दिया है उसके बाद नंदीग्राम की ये सियासी लड़ाई और भी दिलचस्प हो गई है.

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नंदीग्राम वो सीट, जहां से 2011 में ममता की सत्ता का द्वार खुला था. वो सीट, जहां पर 2007 में ममता बनर्जी ने किसान आंदोलन की अगुआई की थी. तब शुवेंदु अधिकारी ने इस आंदोलन को मज़बूत बनाया था और टीएमसी की सरकार बनने का रास्ता साफ हुआ था. लेकिन आज इसी नंदीग्राम में दोनों नेता एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

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