पटनाः बिहार चुनाव की सरगर्मी जारी है. इसी बीच सूबे में राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी बिसात बिछाने में पुरी तरह जुटी हुई हैं. हर सही और वाजिब जगह मोहरे फिट किए जा रहे हैं. ऐसे में बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावना तब बनने लगी जब असदुद्दीन ओवैसी और देवेंद्र यादव एक साथ हाथ थामे बिहार की धरती पर कदमताल करते दिखे.
अब इस तीसरे मोर्चे के बाद तय किए गए चुनावी समीकरण के बिखरने-बिगड़ने का आसार हैं.
UDSA से तीसरे मोर्चे की संभावना को हवा
अब चुनावी पंडित इस पूरे मसले को जिस तरीके से देख रहे हैं, तो उनकी निगाहें इस बात पर भी टिकी हैं कि ओवैसी औक देवेंद्र यादव के मिल जाने से कौन कितने नफे और कितने नुकसान में रहेगा.
जानकारी के मुताबिक, सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी अल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) के मिलकर संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (UDSA) बना लिया है. इसी UDSA ने बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावनाओं को हवा दी है.
कई दलों को गठबंधन में आने का न्योता दिया
हालांकि यह सामने नहीं आया है कि दो लोगों के इस मेल में कोई तीसरा-चौथा या पांचवा भी है कि नहीं. हालांकि ओवैसी ने उन अन्य दलों को खुला निमंत्रण दिया है, जिनकी विचार धारा और रीति-नीति UDSA या दोनों ही नेताओं की निजी पार्टियों से मेल खाती हो.
ओवैसी ने तभी तो कहा कि बिहार में विपक्ष अपना किरदार ठीक से निभा नहीं रहा है, ऐसे में समान विचारधाराओं वाली पार्टी को साथ आने का न्योता दिया है जो कि स्पष्ट संकेत है कि दोनों ही तीसरे मोर्चे की ओर आंख लगाए हैं.
अब नफा-नुकसान पर डालते हैं नजर
ओवैसी के लिए बिहार चुनाव (Bihat Election) पनघट की कठिन डगर की तरह है, लिहाजा वे इसमें फूंक-फूंक कर ही कदम रखेंगे. इसकी वजह पिछले चुनाव में मिल जाएगी जब ओवैसी ने अपनी पार्टी से छह प्रत्याशी उतारे थे और सभी को करारी हार मिली थी.
इतनी करारी कि पांच प्रत्याशी अपनी जमानत भी न बचा पाए थे. तो अब ओवैसी मौजूदा राजनीतिक स्थिति को बेहतरीन मौका बना सकते हैं.
ओवैसी के पास है सुनहरा मौका
स्थिति उनके पक्ष में ऐसे है कि बिहार में विपक्ष दलों के महागठबंधन में जो छोटे-छोटे दल हैं वह सीट बंटवारे की स्थिति स्पष्ट न होने से नाराज चल रहे हैं.
ओवैसी के पास मौका है कि वह इन दलों को साथ ले आएं और देवेंद्र यादव के साथ वाले अपने जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (UDSA) को मजबूत करें.
महागठबंधन को भी नुकसान
यह सभी गल्प, अगर सत्य सिद्ध होते हैं तो राजद को बड़ा नुकसान होगा. RJD का एक नुकसान UDSA के बनने से तो होना ही है क्योंकि ओवैसी और योगेंद्र यादव का साथ आना मुस्लिम और यादव वोटों का बिखराव है. इससे RJD घाटे में जाएगी. UDSA जिन मतदाताओं को टार्गेट करेगी और वह सभी महागठबंधन के वोट हैं और UDSA को मिलने वाले वोट, यानी महागठबंधन का नुकसान.
सीमांचल में RJD के लिए खतरा हैं UDSA
अब तक के राजनीतिक परिदृष्य को देखें तो ओवैसी की पार्टी बीते कुछ सालों से बिहार के सीमांचल क्षेत्र में काफी सक्रिय है. कटिहार और किशनगंज क्षेत्र में ओवैसी राजद (RJD) के लिए हानिकारक हो सकते हैं. यह RJD के मुस्लिम और यादव वोट में सेंधमारी करने का मामला है.
परंपरागत वोटर को तोड़ने ओवैसी खुद मैदान में हैं तो उनके कंधे के बराबर ही यादव चेहरा भी है. दूसरा यह कि संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (UDSA) ने अब तक सीटों की संख्या तय नहीं की है, लेकिन माना जा रहा है कि कोसी और पूर्णिया क्षेत्रों में यह गठबंधन अपने प्रत्याशी उतारेगी.
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