Amethi Lok Sabha Election: जब अमेठी से हारे संजय गांधी, देश ने माना इस नौजवान नेता के चुनावी मैनेजेमेंट का लोहा!

Amethi Lok Sabha Election: संजय गांधी ने 1977 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन अपने पहले ही चुनाव में वे कांग्रेस का गढ़ रही अमेठी लोकसभा सीट पर चुनाव हार गए.

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : May 2, 2024, 02:30 PM IST
  • 1977 में संजय ने लड़ा पहला चुनाव
  • लेकिन 75 हजार वोटों से हारे संजय
Amethi Lok Sabha Election: जब अमेठी से हारे संजय गांधी, देश ने माना इस नौजवान नेता के चुनावी मैनेजेमेंट का लोहा!

नई दिल्ली: Amethi Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव 2024 में अमेठी सबसे हॉट सीट बनी हुई है. भाजपा ने यहां एक बार फिर स्मृति ईरानी को उतार दिया है. जबकि कांग्रेस कुछ ही देर में यहां पर प्रत्याशी का ऐलान कर देगी. यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है, 2019 में स्मृति ईरानी ने इसमें सेंध लगाई और भाजपा का यहां खाता खुला. हालांकि, इस सीट पर राहुल से पहले गांधी परिवार के एक और सदस्य चुनाव हार चुके हैं.

लोगों में था संजय के प्रति गुस्सा
दरअसल, साल 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी थी. कहा जाता है कि इसके पीछे संजय गांधी का दिमाग था. आपातकाल के दौरान ही संजय गांधी ने 5 सूत्री कार्यक्रम भी लागू किया. इसमें परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत लोगों की जबरन नसबंदी की जा रही थी. तब लोगों में संजय के प्रति काफी गुस्सा भर गया. इसका नतीजा 1977 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला.

महिलाएं बोलीं- हमें विधवा कर दिया
1977 में संजय गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ा. जब वे यहां प्रचार करने गए तो एक जगह कुछ महिलाओं ने उनका विरोध किया. उन्होंने संजय गांधी से कहा कि आपने हमें विधवा बना दिया है. बता दें कि ये वही महिलाएं थीं जिनके पति नसबंदी का शिकार हो गए थे. संजय के सामने भारतीय लोक दल ने रविंद्रप्रताप सिंह को टिकट दिया था.

अरुण जेटली को दी जिम्मेदारी
संजय का पॉलिटिकल डेब्यू फ्लॉप करने की जिम्मेदारी दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष अरुण जेटली को दी थी. तब संगठन के पास कुछ खास पैसे नहीं थे. किसी तरह एक खटारा जीप का इंतजाम किया गया. इसका कवर तक फटा हुआ था. कहा जाता है कि जीप को इसके हॉर्न से नहीं, बल्कि इसकी बजती हुई बॉडी से ही पहचान लिया जाता था. दूसरी ओर, संजय गांधी के साथ गाड़ियों का काफिला रहता था. लेकिन जेटली बोलचाल में तेज थे. सब देखना चाहते थे कि दिल्ली से कौन लड़का आया है, जो इंदिरा गांधी के बेटे के खिलाफ भाषण दे रहा है. 

सुबह से शाम तक करते प्रचार
जेटली सुबह से शाम तक प्रचार करते. शाम को कार्यालय पहुंचते तो सिर से लेकर पांव तक मिट्टी से सने रहते. वे सबसे पहले अपने कपड़े धोते, ताकि अगले दिन फिर से इन्हें पहना जा सके. फिर आगे की रणनीति तैयार करते और अगली सुबह फिर प्रचार करने निकल जाते. जेटली लोगों के मन में यह बात फिट बैठाने में कामयाब रहे कि इमरजेंसी के पीछे संजय और इंदिरा थे. संजय ने ही नसबंदी कार्यक्रम चलाया. 

ये रहे चुनावी नतीजे
ताबूत में आखिरी कील अटल बिहारी वाजपेयी की रैली ने मारी. अटल ने संजय गांधी के खिलाफ एक रैली की, जिसमें बड़ी संख्या में लोग आए. इसी रैली को देखकर अंदाजा लग गया था कि संजय चुनाव हार रहे हैं. इस चुनाव के नतीजों ने पूरे देश को चौंका दिया. भारतीय लोक दल के प्रत्यासही रविंद्रप्रताप सिंह को 1.76 लाख वोट मिले. जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी संजय गांधी को 1 लाख के करीब वोट मिले. संजय 75 हजार वोटों से चुनाव हार गए. यह इंदिरा गांधी के लिए एक बड़ा झटका था. इसके बाद हर किसी ने अरुण जेटली के चुनावी मैनेजमेंट का लोहा माना. 

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