पटना: पहले चुनावी तारीख की घोषणा होते ही हर गली मोहल्ले में नारे तैरने लगते थे। ये नारे पार्टी के मुद्दों को कम शब्दों में समेटे उसकी सोच और उसके विचार को रिप्रेजेंट करते थे, हालाकि सिर्फ बिहार ही नहीं, नारों का दम और नारों का असर हमने पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में भी खूब देखा...कुछ चर्चित नारों की बात करें तो "मैं भी चौकीदार" (लोकसभा चुनाव 2019) और "अबकी बार मोदी सरकार" (लोकसभा चुनाव 2014) जैसे नारों की गूंज अब भी आपके जेहन में जिंदा होगी.
इसी तरह कुछ नारे पहले भी काफी मशहूर हुए और लोगों की जुबान पर चढ़े रहे....1971 में इंदिरा गांधी का दिया नारा "गरीबी हटाओ" हो या 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण का दिया गया नारा "इंदिरा हटाओ, देश बचाओ"....इन नारों ने भारतीय जनमानस में खूब जगह बनाई...वहीं 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग को टार्गेट करते हुए नारा बुलंद किया था "पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा"...जिसमें पार्टी को काफी सफलता भी मिली...
इसी तरह इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौर के कुछ नारे आज भी उस दौर के लोग चर्चाओं में याद करते हैं... "जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मर्द गया नसबंदी में"....."जगजीवन राम की आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी!"...इसके ढाई साल बाद चुनाव हिए जिसमें कांग्रेस ने अपनी तरफ लोगों को वापस खींचने के लिए नारा दिया- 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा जी को लाएंगे।'
जानकार बताते हैं कि उस दौर के साहित्यकार श्रीकांत वर्मा जैसे बड़े नामों ने भी इंदिरा गांधी के लिए नारे गढ़े थे जिससे जनमानस को इंदिरा की तरफ मोड़ा जा सके...उनका लिखा एक नारा काफी प्रचलित भी हुआ- "जात पर न पात पर, इंदिराजी की बात पर, मुहर लगाना हाथ पर..." साथ ही 1971 में कांग्रेस नेता देव चंद बरूआ द्वारा लिखा गया नारा- "कांग्रेस इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया" जितना मशहूर हुआ उतनी ही इसकी आलोचना भी हुई...वहीं "इंडिया शाइंनिंग" (2004) का भारतीय जनता पार्टी का नारा जहां पूरी तरह फ्लॉप साबित हुआ वहीं जनता ने उस पर ध्यान तक नहीं दिया और सरकार नहीं बन पाई...
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वहीं बात अगर बिहार चुनाव के चर्चित नारों की करें तो बिहार में चुनाव है ये तभी पता चलता है जब नारों की गूंज फिजाओं में तैरने लगती है..."बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है" (2015) में दिया गया था, जिससे जेडीयू ने अपने पक्ष में माहौल बनाने की खूब कोशिश की.
2015 में ही पार्टी ने एक और नारा दिया- "झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे"....तो इससे पहले के दौर की बात करें तो लालू शाषनकाल में एक नारे ने लोगों में लालू के प्रभाव को भी बताया तो उन्हें ना पसंद करने वालों में खौफ भी भरा...ये नारा था- "भूरा बाल साफ करो" इस नारे से एक सीक्रेट संदेश एक पूरे वर्ग को देने की कोशिश थी... जानकार बताते हैं कि "भूरा बाल का मतलब था भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला" यानी सवर्ण जातियां...एक और नारे ने लालू को बिहार के मालिक के तौर पर स्थापित होने का संदेश दिया...- "जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू"....
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लालू का नाम चारा घोटाले में आया और फिऱ अगले चुनाव में विपक्षियों ने नारा बुलंद किया "गली-गली में शोर है, लालू चारा चोर है"...1991 में लालू यादव की सरकार ने ताड़ी से टैक्स हटा दिया था, विपक्षी पार्टियों ने कहा, इससे लोगों में नशे की लत बढ़ जाएगी और इसके विरोध में नारा दिया- "लालू वीपी रामविलास, एक रुपया में तीन गिलास"...तो वही ताड़ी के शौकीन टैक्स हटने से खुश थे...ऐसे में रामविलास पासवान जब चुनावी रैली करने जाते, तब उनके समर्थक शोर मचाते हुए कहते थे-"एक रुपया में तीन गिलास, जीतेगा भाई रामविलास"...
इस बार के 2020 चुनाव की बात करें तो कोरोना की वहज से भीड़ और शोर तो कम है ही...दूर-दराज के गांवों में जो भोंपू वाली गाड़ियां शोर में नारे बचाती हुई घूमा करती थीं अब वो दौर भी नहीं रहा...वर्चुअल रैलियों पर फोकस किया जा रहा है...फिर भी बिहार की सड़कों पर घूमते हुए आपका सामना पोस्टर पर लिखे कुछ नारों से जरूर होगा...
इस बार बीजेपी का नारा है - 'भाजपा है तैयार, आत्मनिर्भर बिहार'
जेडीयू के कई नारे अलग-अलग अंदाज में दिख रहे हैं- 'बिहार के विकास में छोटा सा भागीदार हूं, हां मैं नीतीश कुमार हूं'.... 'क्यूं करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार' ...और '15 साल बनाम 15 साल'
वहीं आरजेडी के लिए खुद लालू यादव ने नारा गढ़ा है- दो हजार बीस-हटाओ नीतीश (लालू ने ट्वीट किया था)
वहीं कुछ और नारे आरजेडी के पोस्टरों की शोभा बढ़ा रहे हैं- 'बदलो बिहार'... "हम बदलाव लाएंगे, नया बिहार बनाएंगे"..."कर लिया है विचार, हमें चाहिए तेजस्वी सरकार"
वाम दलों के भी कुछ नारे इक्के-दुक्के दिख रहे हैं- ‘खेत खलिहान गांव समाज – नहीं चाहिए कंपनी राज’... ‘अपराधमुक्त बिहार, भ्रष्टाचार मुक्त बिहार’..."सभी बेरोजगारों को काम, रोजी-रोटी का इंतजाम’.... ‘प्रवासी मजदूरों को मुनासिब काम...उद्योग- धंधों का त्वरित विस्तार’.
भाकपा माले ने नारा दिया है- ‘दलित-गरीबों की हुंकार, इस बार जाएंगे नीतीश कुमार’
हालाकि नारे किसी दल की जीत-हार तय नहीं करते, लेकिन चुनाव प्रचार में एक बड़े फैक्टर के तौर पर इस्तेमाल ज़रूर होते हैं....
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