नई दिल्ली: Women’s Equality Day 2022: ऐसा माना जाता है कि फिल्में समाज का आईना होती है. फिल्म केवल मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि उन घटनाओं और विषयों को भी दिखाती है जो हमारे समाज में चल रही होती हैं. फिल्में अक्सर लोगों को समाज की कई हकीकतों से रूबरू करवाती हैं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मसाला फिल्में अधिक बनती हैं.
लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई डायरेक्टर और फिल्म मेकर्स हैं जो समय-समय पर सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाते हैं. इन फिल्मों के द्वारा फिल्म मेकर्स समाज की कुप्रथा और समाज की दकियानूसी सोच पर कटाक्ष करते हैं.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने महिलाओं से संबंधी कई मुद्दों पर फिल्में बनाई है. फिल्मों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और असमानता को दिखाया गया है. महिला समानता दिवस पर आपको उन फिल्मों के बारे में बताएंगे जिन्होंने पितृसत्तात्मक समाज पर कटाक्ष किया है.
थप्पड़ (Thappad)
महिलाओं की समानता के लिए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने कई फिल्में बनाई है लेकिन थप्पड़ फिल्म बेहद खास और प्रभावी रही है. इस फिल्म में महिला के सम्मान और पहचान को दर्शाया गया है. शादी के बाद पति द्वारा मारा गया थप्पड़ बहुत ही आम बात होती है लेकिन इस फिल्म में इस थप्पड़ को बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है. तापसी पन्नू का डायलॉग सिर्फ एक थप्पड़, पर नहीं मार सकता ना, न केवल तापसी के लिए वेक-अप कॉल है बल्कि यह उन सब महिलाओं के है जिन्होंने खुद को समर्पित कर अपनी पहचान को पति की पहचान बना ली है. यह थप्पड़ महिलाओं को उनकी जरूरतों और सम्मान को याद दिलाता है.
इंग्लिश-विंग्लिश (English Vinglish)
'जब मर्द खाना बनाए तो कला है औरत खाना बनाए तो फर्ज है', यह डायलॉग नहीं बल्कि हमारे समाज की सोच है. हमारे समाज में महिलाओं के घर संभालने और खाना बनाने तक ही सीमित है. श्रीदेवी की फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश समाज की दकियानूसी सोच पर एक जोरदार तमाचा है. यह फिल्म हमारी सोसाइटी को एक खास मैसेज देती है. महिला किसी भी उम्र में अपनी मेहनत और लगन से किसी भी काम को सीख सकती है. यह फिल्म हमारी सोसाइटी को एक खास मैसेज देती है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे केवल एक भाषा (इंग्लिश) न बोल पाने की वजह से महिला को अपने पति और बेटी द्वारा तिरस्कार किया जाता है. ऐसे में शशि इंग्लिश सीखने की ठान लेती है.
पिंक (Pink)
अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की फिल्म पिंक महिलाओं के अधिकारों पर बनी एक बेहतरीन फिल्म है. इस फिल्म ने समाज में महिलाओं के चरित्र और उनके सेक्सुअल डियाजर पर बात की है. फिल्म ने पितृसत्तात्मक समाज पर कटाक्ष किया है. इस फिल्म ने देशभर को बताया है कि जब महिला ना बोल तो इसका अर्थ ना होता है 'No Means No'. कोट ड्रामा फिल्म में महिलाओं के चरित्र और कपड़ों को लेकर समाज की दकियानूसी सोच पर कई सवाल उठाए है. फिल्म ने महिलाओं के उनकी पसंद कपड़े और पुरुष के साथ संबंध बनाने के अधिकार को निजी बताकर इस विषय को देशभर में चर्चा का विषय बनाया था.
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