विवेक अग्निहोत्री ने बताया बॉलीवुड का काला सच, बोले- 'सपनों की कब्र पर नाचते हैं लोग'

Vivek Agnihotri कहते हैं कि 'यह अपमान और शोषण ही है जो लोगों के सपने और इंसनियत के ऊपर से विश्वास को तोड़ देता है. लोग खाने के बिना तो जी लेते हैं पर सेल्फ रिस्पेक्ट और होप के बिना नहीं. कोई भी मिडिल क्लास यंगस्टर ऐसी सिचुएशन का हिस्सा होने के बारे में कभी नहीं सोचता है.'

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 21, 2022, 03:23 PM IST
  • विवेक अग्निहोत्री कहते हैं बॉलीवुड में मैं काफी साल बिताए
  • अब समझ चुका हूं कि बॉलीवुड कैसे काम करता है
विवेक अग्निहोत्री ने बताया बॉलीवुड का काला सच, बोले- 'सपनों की कब्र पर नाचते हैं लोग'

नई दिल्ली: 'द कश्मीर फाइल्स' से करोड़ों लोगों को भावुक करने वाले विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) ने ट्विटर बॉलीवुड की 'इनसाइड स्टोरी' सुनाई. फिल्म निर्माता अपने लंबे नोट में बॉलीवुड़ की गुमनाम गलियोम का जिक्र किय है. सपनों के टूटने और बिखरने से लेकर सारी सच्चाई उड़ेल कर रख दी है. आइए विवेक अग्निहोत्री की नजर से बॉलीवुड को समझते हैं.

बॉलीवुड एक्सपीरिएंस

अपने लेख में डायरेक्टर लिखते हैं कि बॉलीवुड में मैं काफी साल बिता चुका हूं. अब समझ चुका हूं कि बॉलीवुड कैसे काम करता है. असली बॉलीवड अंधेरी गलियों में पाया जाता है. एक आम आदमी इसकी गलियों में जी नहीं सकता. इन अंधेरी गलियों में आपको मिलते हैं टूटे हुए सपने, कुचले हुए सपने, दफन किए हुए सपने. बॉलीवुड अगर कहानियों का म्यूजियम है तो यह टैलेंट्स की कब्र भी है. जो भी यहां आता है वो जानता है कि रिजेक्शन डील का ही एक हिस्सा है.

अपमान और शोषण

विवेक बेहद इमोशनल शब्दों में कहते हैं, "यह अपमान और शोषण ही है जो लोगों का सपने और इंसानियत के ऊपर से विश्वास को तोड़ देता है. लोग खाने के बिना तो जी लेते हैं पर सेल्फ रिस्पेक्ट और होप के बिना नहीं. कोई भी मिडिल क्लास यंगस्टर ऐसी सिचुएशन का हिस्सा होने के बारे में कभी नहीं सोचता है."

ड्रग्स और शराब की घुसपैठ

काली सच्चाई को सामने रखते हुए विवेक अग्निहोत्री लिखते हैं कि 'लोग अक्सर इन सब स्थितियों से लड़ने की बजाय घुटने टेक देते हैं. सिर्फ वो लोग लकी हैं जो अपने घर वापिस लौट पाते हैं. जो यहां रह जाते हैं, वो टूट कर बिखर जाते हैं. जो लोग थोड़ी सफलता पाते हैं वे ड्रग्स, शराब और हर तरह से अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लेते हैं.'

सपनों की कब्र

विवेक अग्निहोत्री ने इस लेख का अंत काफी दुखद किया है, "इस लंबी रेस में आप धीरे-धीरे एक गहरे गड्ढे में गिरते जाते हो. तुम शो ऑफ करते हो कोई नहीं देखता. तुम चीखते हो कोई नहीं सुनता, तुम रोते हो किसे परवाह पड़ी है. चारों और तुम पाते हो तो बस तुम पर हंस रहे लोगों को. तुम अपने सपनों को दफन कर देते हो. खामोश. तभी तुम अपनी सपनों की कब्र पर लोगों को नाचते हुए देखते हो. तुम्हारी असफलता उनके लिए सेलिब्रेशन बन जाती है. तुम चलने वाले डेड मैन बनकर रह जाते हो. विडंबना है कि तुम्हारे सिवाय तुम्हें मरा हुआ कोई और नहीं देख सकता. एक दिन तुम सच में मर जाओगे फिर ये दुनिया तुम्हें देखेगी."

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