नई दिल्ली: नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से मंझे हुए कलाकारों के बीच आकर खुद को हर कदम पर साबित करने का हुनर हर किसी में नहीं होता. लेकिन ऐसे ही एक चेहरे ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री में धमाल मचा दिया. ये नया चेहरा था वहीदा रहमान (Waheeda Rehman) का. जैसा नाम वैसा काम. दरअसल, वहीदा का अर्थ ही लाजवाब होता है. एक ऐसा मासूम सा चेहरा जिसे देखते ही मशहूर फिल्मकार गुरु दत्त भी फिदा हो गए.
तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था जन्म
हिन्दी सिनेमा की एवरग्रीन एक्ट्रेस कही जाने वाली वहीदा का जन्म 3 फरवरी, 1938 को एक तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह एक्टिंग की दुनिया में करियर बनाएंगी. हालांकि, उन्हें बचपन से ही भरतनाट्यम का बहुत शौक था.
इस कला ने उनका ताउम्र साथ दिया. नृत्य की वजह से उन्हें 1955 में तमिल फिल्म 'रोजुलू मराई (Rojulu Marayi)' में काम मिला. वहीदा ने गुरु दत्त की 'सीआईडी' से हिन्दी सिनेमा में कदम रखा था.
बनना चाहती थीं डॉक्टर
वहीदा ने डांस जरूर सीखा था, लेकिन उनकी दिलचस्पी एक्टिंग में बिल्कुल नहीं थी. वह तो हमेशा से ही डॉक्टर बनना चाहती थीं. लेकिन उनकी किस्मत में तो पहले ही कुछ और लिख दिया गया था. कहते हैं कि वहीदा ने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू कर दी थी, लेकिन फेफड़ों में इंफेक्शन के कारण वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाईं.
पिता समझने लगे थे पागल
वहीदा रहमान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब वह छोटी थीं तो वह अक्सर शीशे के सामने खड़े होकर अजीब-अजीब से चेहरे बनाया करती थीं. एक्ट्रेस ने कहा, 'एक बार जब मेरे पिता ने यह देखा तो उन्होंने मेरी मां से इसका चेकअप करवाने के लिए कहा कि कहीं मैं पागल तो नहीं हो गई हूं.
लेकिन जब उन्होंने एक दिन मुझसे इसकी वजह पूछी तो मैंने कहा कि मैं अपने चेहरे से लोगों को हंसाना और रुलाना चाहती हूं. लेकिन तब मुझे नहीं पता था कि मैं वाकई एक्ट्रेस बन जाऊंगी.'
गुरु ने डांस सिखाने के लिए किया था इंकार
वहीदा की भरतनाट्यम सीखने की जिद पर बात करें तो, इसे पूरा करने के लिए उनकी मां उन्हें उसी गुरु के पास लेकर गईं जिनसे डांस सीखने की जिद एक्ट्रेस हमेशा किया करती थीं. लेकिन उन्होंने वहीदा को सिर्फ इसलिए डांस सिखाने से मना कर दिया, क्योंकि वह मुस्लिम हैं. उनका मानना था कि वहीदा उनके संगीत के बोल नहीं समझ पाएंगी. इसके बाद भी एक्ट्रेस अपनी जिद पर अड़ी रहीं.
वहीदा ने की कड़ी मेहनत
करीब 6 महीने की कोशिशों के बाद आखिरकार वहीदा के गुरु ने उनसे उनकी कुंडली मंगवाई. लेकिन मुस्लिम होने के कारण उनके पास तो कुंडली थी ही नहीं. इसके बाद उन्होंने वहीदा की जन्मतिथि लेकर उनकी एक कुंडली तैयार की.
इसे देखने के बाद वहीदा के गुरु भी दंग रह गए थे. कुंडली के मुताबिक वहीदा ही उनकी सबसे अच्छी स्टूडेंट बनेगी और आखिरकार यह सही भी साबित हुआ.
पिता के निधन के बाद उठाई आर्थिक जिम्मेदारी
वहीदा ने कुछ मंचों पर प्रदर्शन देना भी शुरू कर दिया था. बेइंतेहा खूबसूरत और नृत्यकला में माहिर वहीदा पर जिसकी भी नजर पड़ती वह उन्हें देखता ही रह जाता था. ऐसे में उन्हें कई डांस के प्रस्ताव मिलने लगे. हालांकि, कम उम्र के कारण उनके माता-पिता उन्हें ज्यादा प्रस्ताव नहीं लेने देते थे. लेकिन उनके पिता के निधन के बाद परिवार आर्थिक संकट से गुजरने लगा तो, वह वहीदा ही थीं जिन्होंने सभी प्रस्ताव स्वीकारने शुरू कर दिए. इसी दौरान उन्होंने 1955 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा.
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