दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है: आज ही अलविदा कहा था दुनिया को गुरुदत्त ने

गुरुदत्त भारत के ऑर्सन वेल्स कहलाते थे, उनकी ज़िंदगी की 'प्यास' उनकी फिल्मों में नज़र आती थी..आज 10 अक्टूबर को आज से छप्पन साल पहले दुनिया को अलविदा कह दिया था गुरु दत्त ने 

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Oct 10, 2020, 02:33 PM IST
    • 10 अक्टूबर थी वो मनहूस तारीख
    • दो नायिकाएं -गीता और वहीदा
    • वहीदा नहीं मिली गुरुदत्त को
    • 9 अक्टूबर को थी आखिरी शाम
दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है: आज ही अलविदा कहा था दुनिया को गुरुदत्त ने

नई दिल्ली.  संवेनशील व्यक्तित्व व प्रतिभाशाली कृतित्व के सशक्त हस्ताक्षर थे गुरुदत्त. सब जानते हैं कि वे एक सधे हुए अभिनेता, सहज निर्देशक और सफल फिल्मकार थे लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि वे एक बहुत अच्छे कोरियोग्राफर भी थे. हिंदी सिनेमा के रजत पटल पर अपनी अविस्मरणीय उपस्थिति दर्ज कराने वाले गुरुदत्त ने अपनी ज़िंदगी को परदे पर उतार दिया था. 1944 में फिल्म 'चांद' में एक छोटी से भूमिका निभाकर अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाले गुरुदत्त पंजाब से नहीं बल्कि महाराष्ट्र से थे और उनका वास्तविक नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. 

10 अक्टूबर थी वो तारीख 

साल 1964 की वो तारीख थी 10 अक्टूबर जिसके बाद गुरुदत्त को किसी ने नहीं देखा. वे मुंबई के अपने घर में अपने बिस्तर में रहस्यमय स्थिति में मृत पाए गए. ये भी कहा जाता है कि काफी समय से वे अपनी शराब की लत जूझ रहे थे और अंत में उन्होंने आत्महत्या कर ली. लेकिन उनकी मृत्यु के पीछे उनके अपने पारिवारिक कारण भी थे जिनसे भी दुनिया अनजान नहीं ती. फिर भी उनकी मृत्यु कैसे हुई, इस बात का खुलासा कभी नहीं हो पाया और आज भी उनकी यूटोपियन चाहतों की तरह ही उनकी अंतिम यात्रा की वजह पर भी पर्दा पड़ा हुआ है. 

जीवन की दो नायिकाएं -गीता और वहीदा 

गुरुदत्त की फिल्मों के लिए आवाज़ देने वाली गीता रॉय ने 1953 में उनके साथ जीवन की डोर बांध ली. निर्देशक और गायिका वाली इस जोड़ी के तीन बच्चे हुए. इन्हीं दिनों गुरुदत्त ने अपनी फिल्म 'प्यासा' लांच की और इस फिल्म की अभिनेत्री वहीदा रहमान उनकी ज़िंदगी की प्यास बन कर उनके सामने आई. दोनों में नजदीकियां बढ़ीं तो गुरुदत्त और गीता दत्त में दूरियां बढ़ीं. एक शाम गुरुदत्त के नाम एक चिट्ठी आई जिसमें लिखा था कि- ''मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती..अगर तुम मुझे चाहते हो तो आज शाम को साढ़े छह बजे मुझसे मिलने नारीमन प्वॉइंट पर आओ..-तुम्हारी वहीदा।''

वहीदा नहीं मिली गुरुदत्त को

इस चिट्ठी को गुरुदत्त ने अपने दोस्त अबरार को दिखाया और दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि ये चिट्ठी वहीदा ने नहीं लिखी है. चिट्ठी का राज जानने के लिए गुरुदत्त अबरार को लेकर अपनी फिएट कार से  नारीमन प्वॉइंट पहुँचे जहां उन्होंने अपनी कार सीसीआई के पास एक गली में खड़ी कर दी. अबरार को वहां एक कार नज़र आई जिमें गीता दत्त अपनी मित्र स्मृति बिस्वास के साथ पिछली सीट पर बैठ कर बाहर किसी को ढूंढती सी दिखाई दीं. गुरुदत्त पास की बिल्डिंग में छुप कर उनको देख रहे थे. इस बात को लेकर उस शाम गुरुदत्त और गीता दत्त में जम कर झगड़ा भी हुआ और फिर दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई.

9 अक्टूबर को क्या हुआ 

गुरुदत्त के दुनिया छोड़ने से एक दिन पहले 9 अक्तूबर को उनके दोस्त अबरार अलवी उनसे मिलने उनके घर आये तो उन्होंने देखा गुरुदत्त शराब पी रहे थे. कुछ देर पहले ही गीता दत्त से फोन पर उनकी लड़ाई हो चुकी थी. गुरुदत्त अपनी ढाई साल की बिटिया नीना से मिलना चाह रहे थे जबकि गीता दत्त उसको उनके पास नहीं भेजना चाहती थीं. नशे की स्थिति में गुरुदत्त ने उनको ये आखिरी धमकी भी दे डाली थी कि अगर बेटी को नहीं भेजा तो मेरा मरा मुँह देखोगी. लेकिन इस धमकी को गीता ने अनसुना कर दिया. रात कोई एक बजे अबरार और गुरुदत्त ने डिनर किया जिसके बाद अबरार ने उन्हें आखिरी बार गुड नाईट किया और अपने घर आ गए. अगले दिन दोपहर में उनको बुरी खबर मिली जिस पर उन्होंने यकीन नहीं किया. लेकिन बात सच थी, गुरुदत्त ने ढेरों नींद की गोलियां खा ली थीं और उनका शांत सोया हुआ चेहरा मानों आखिरी बार गुनगुनाता सा नज़र आया - ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है !

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