नई दिल्ली: कश्मीर प्रोपेगैंडे के लिये पाकिस्तान के वजीरे-आजम इमरान इस्लाम की उम्मत का हवाला देकर मुस्लिम वर्ल्ड को एकजुट करने की हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं. करतारपुर कॉरिडोर के जरिये पाकिस्तान के खालिस्तानी मंसूबों को परवान चढ़ाने की साजिश हो रही है. तो दूसरी तरफ अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बहाने सरहद पार से हिन्दुस्तान के मुसलमानों को बहकाने की पुरजोर कोशिश भी जारी है.
पाकिस्तान में 25 साल में 150 'बाबरी कांड'
नापाक मंसूबों को गंगा जमुनी तहजीब वाले देश हिन्दुस्तान में अंजाम देने के लिए पाकिस्तान बार-बार अपने दोहरे चरित्र को जगजाहिर कर देता है. पाकिस्तान की इस खोखली हमदर्दी का सनसनीखेज खुलासा बेहद जरूरी है. ये जानकर हर कोई चौंक जाएगा कि पाकिस्तान पिछले 25 सालों में 150 बाबरी कांड कर चुका है.
तारीख 23 मई 2018 की रात ग्यारह बजे से 3 बजे के बीच का वक्त था और जगह पूर्वी पाकिस्तान का सियालकोट था. जहां, कट्टरपंथियों की उन्मादी भीड़ 135 साल पुराने हस्समुद्दीन मस्जिद को ढहाने में जुटी थी और इस नापाक काम में पाकिस्तान की सरकारी मशीनरी भी उनका साथ दे रही थी. सवाल ये है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है. इसका जवाब जानकर हर कोई दंग रह जाएगा. दरअसल ये मस्जिद अहमदिया मुसलमानों की है, जिसे कट्टरपंथी मुसलमान नहीं मानते हैं. ये जमीन पिछले 135 सालों से अहमदिया मुसलमानों की है, पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री जफरुल्ला खान तक यहां नमाज पढ़ चुके हैं. लेकिन अहमदिया जमात से दुनिया भर के कई मशहूर नामों की यादों में दर्ज रही ऐतिहासिक मस्जिद को गैरकानूनी बताकर गिरा दिया गया. इन मुसलमानों को पाकिस्तान के कट्टरपंथी नफरत से कादियानी बुलाते हैं. 1947 में बंटवारे के वक्त उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के कहने पर जिस पाकिस्तान को चुना था. कट्टरपंथी सोच बढ़ने के साथ ही उस पाकिस्तान ने उन्हें मुसलमान मानने से ही इनकार कर दिया.
जब मस्जिद में बरसा दी गई गोलियां
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से महज सौ किलोमीटर दूर पंजाब प्रांत का मंडी बहाउद्दीननगर का बाहरी इलाका मोंग है. जहां, 7 अक्टूबर, 2005 को रमजान की दूसरी तारीख के मौके पर मस्जिद में डेढ़ सौ अहमदिया मुसलमान जुमे की नमाज के लिये जुटे थे. तभी मोटरसाइकल पर आए दो कट्टरपंथियों ने मस्जिद में घुसकर गोलियां बरसा दी. हमले की वजह अहमदिया मुसलमानों से नफरत थी. और इस हमले में मौके पर ही आठ अहमदिया मुसलमान मारे गए. और करीब दो दर्जन घायल हो गए.
सन् 1994 से अबतक यानी अक्टूबर 2019 तक, यानी पच्चीस सालों में पाकिस्तान में उनकी करीब डेढ़ सौ मस्जिदों को मटियामेट कर दिया गया. और इस गुनाह में शामिल कट्टरपंथियों पर कार्रवाई तो दूर, उनके खिलाफ किसी ने कुछ नहीं बोला. उनके खिलाफ केस तक दर्ज नहीं किया गया.
अयोध्या पर पाकिस्तान को क्यों लगी मिर्ची?
अयोध्या केस में भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद पाकिस्तानी हुकूमत और उसके कट्टरपंथी, मुस्लिम उम्मत के नाम पर हिन्दुस्तान के मुसलमानों को उकसाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. तो पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान उन्हें आईना दिखाने खड़े हो गए हैं.
PAK में मस्जिद पर चला बुलडोजर
करतारपुर कॉरिडोर के नाम पर पाकिस्तान में हर तबके को धार्मिक आजादी का डंका पीटने वाले वजीरे-आजम इमरान का सफेद झूठ पूरी दुनिया के सामने आ चुका है. पिछले ही महीने यानी 26 अक्टूबर को जब पाकिस्तान ट्विटर पर करतारपुर की ब्रैंडिंग कर अपने पापों को धोने की कोशिश कर रहा था. उसी दौरान पाकिस्तान के बहावलपुर जिले में हासिलपुर गांव में अहमदिया मुसलमानों की इस मस्जिद को दिनदहाड़े जबरन ढहा दिया गया. मस्जिद को बचाने के लिये खड़े हुए अहमदिया मुसलमानों पर डंडे बरसाकर खदेड़ दिया गया. बाकायदा बुलडोजर चलाकर इस मस्जिद को जमींदोज कर दिया गया.
आपको बता दें कि अहमदिया मुसलमान पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हैसियत में हैं. ग्यारह करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में इनकी संख्या 25 लाख के करीब है. धार्मिक अधिकार के साथ-साथ उनसे सामान्य नागरिक अधिकार भी पाकिस्तान में छीन लिया गया है. उनकी हत्या करने वालों के खिलाफ पुलिस केस तक दर्ज नहीं होता है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रबवा इलाके में कभी अहमदिया मुसलमानों का हेडक्वार्टर हुआ करता था, जिसे कट्टरपंथियों के खूनी हमलों के बाद इंग्लैंड शिफ्ट कर दिया गया है. हैरानी की बात तो ये है कि जिस पाकिस्तान को अहमदिया मुसलमानों की बेवजह हत्याओं को लेकर पाकिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र में सख्त हिदायत दी जा चुकी है. जिसे दुनिया आतंकिस्तान के नाम से जान रही है. वो अब हिन्दुस्तान को धार्मिक सद्भाव और भाईचारे का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
अहमदिया मुसलमानों की 'प्रोग्रेसिव सोच' है वजह
मुख्य धारा के मुसलमान पैगम्बर मोहम्मद साहब को आख़िरी रसूल और पैगम्बर मानते हैं. जबकि अहमदिया समुदाय के लोगों का मानना है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब तो अल्लाह के रसूल हैं ही, लेकिन वो आख़िरी रसूल नहीं हैं. इसी मान्यता को लेकर पाकिस्तान में उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया. और कट्टरपंथियों का असर बढ़ने के साथ 1974 में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने अहमदिया मुसलमानों को गैर मुसलमान करार दे दिया. तब से पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों की जिंदगी जहन्नुम हो गई है. उनसे जानवरों सा सलूक होता है. उन्हें सीधा निशाना बनाया जाता है.
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1994 से अबतक पाकिस्तान में 150 से ज्यादा बाबरी कांड हो चुका है और वजीर-ए-आजम इमरान इस तल्ख हकीकत पर परदा डालकर अयोध्या फैसले का हिसाब हिन्दुस्तान के मुसलमानों को समझा रहे हैं. हिन्दुस्तान साम्प्रदायिक सौहार्द और सद्भाव के लिए जाना जाता है. भारत देश का माहौल इमरान और सभी मजहबी कट्टरपंथियों के मुंह पर करारा तमाचा है. इस देश में प्यार की भाषा चलती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो देश का माहौल है, वो इसका सबसे बड़ा सबूत है.