वह तूफानी रात, जिसने 36 साल पहले ले ली थी बांग्लादेश में 10 हजार लोगों की जान

24-25 मई 1985 को यह हवाएं तेज चक्रवात में बदल गईं. चटगांव में अधिकतम हवा की गति 154 किमी/घंटा थी, सैंडीप में 140 किमी/घंटा, कॉक्स बाजार में 100 किमी/घंटा की गति से हवा चल रही थी. इस तेज झोंके ने तबाही का पहला नजारा दिखाया और तटीय इलाके में जो भी सामने आया इसके आगोश में समाता चला गया.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : May 25, 2021, 08:32 AM IST
  • 25 मई 1985 को तूफान का उछाल 3.0-4.6 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया था
  • इस भयंकर गंभीर चक्रवात में 11,069 लोग मारे गए, 135,033 मवेशी भी मरे
वह तूफानी रात, जिसने 36 साल पहले ले ली थी बांग्लादेश में 10 हजार लोगों की जान

नई दिल्लीः तकरीबन 10 साल पहले ही अस्तित्व में आया बांग्लादेश धीरे-धीरे ही आगे बढ़ रहा था. चटगांव, कॉक्स बाजार, नोआखली ये तीनों ही स्थान भारत से जुड़े होने के साथ ऐतिहासिक महत्व रखते थे,

लेकिन अब इन्हें नए देश के हिसाब से विकास की राह पर चलना था. यह साल 1985 था, जब बांग्लादेश में राष्ट्रपति Hussain Muhammad Ershad थे और अतर रहमान खान बांग्लादेश के पांचवें प्रधानमंत्री थे.

देश के राजनीतिक-सामाजिक पहलू में बहुत कुछ ठीक नहीं होते हुए भी सब ठीक ही था. 

मई 1985 की वह रात
बल्कि सब ठीक कहना ही चाहिए, क्योंकि साल के पांचवें महीने की 25वीं तारीख को जो हुआ, उसने बांग्लादेश के तीन बड़े पूंजी बनाने वाले शहरों-बस्तियों और या कह लीजिए कि बाग्लादेश के दम को ही तहस-नहस कर दिया. उस रात जो हुआ दो दिन तक चला और चटगांव, कॉक्स बाजार व नोआखली बिल्कुल उजड़ से गए.

कहते हैं न जिंदगी में तूफान आ गया और तबाही मचा गया. यह अक्षरश: सच हुआ. 1985 में मई 25-26 को आए तूफान ने घोर तबाही मचाई. 

23 मई से बदलने लगा था मौसम
तब के दौर के एक पुराने रेडियो स्टेशन पर तीन-चार दिन पहले आने वाले तूफानी संकट की जानकारी दे गई थी. सरकार अपनी ओर से बचाव-राहत और जान बचाने की मुहिम में अपने सरकारी रवैयों के अनुसार जुटी हुई थी. 23 मई से ही मौसम ने रुख बदलना शुरू किया था और बंगाल की खाड़ी के तटीय लोग तेज हवा के झोंके झेल रहे थे. 

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24-25 मई को चक्रवात बन गईं हवाएं
24-25 मई को यह हवाएं तेज चक्रवात में बदल गईं. चटगांव में अधिकतम हवा की गति 154 किमी/घंटा थी, सैंडीप में 140 किमी/घंटा, कॉक्स बाजार में 100 किमी/घंटा की गति से हवा चल रही थी. इस तेज झोंके ने तबाही का पहला नजारा दिखाया और तटीय इलाके में जो भी सामने आया इसके आगोश में समाता चला गया.

गरीबों की बस्तियां सबसे पहले थीं जिनका निशान ही मिट गया और इधर-उधर गिरते पेड़ों ने लोगों की जानें लीं. इस तूफान से तकरीबन 70 किलोमीटर लंबी सड़क पूरी तरह टूट गईं. हालत ऐसी हो गई कि लगता था सड़क यहां कभी थी ही नहीं. 

इतनी मौतें की गिनती कम पड़ जाए
25 मई को तूफान का उछाल 3.0-4.6 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया. इस भयंकर गंभीर चक्रवात में 11,069 लोग मारे गए, 135,033 मवेशी भी मौत के मुंह में समा गए और 94,379 घर और 74 किमी सड़क, और तटबंध पूरी तरह नष्ट हो गए. तब तूफानों के नाम रखने की परंपरा विकसित तौर पर सामने नहीं आई थी. 

Tropical Storm One (1B) ने किया विनाश
इस विनाश को ट्रॉपिकल स्टॉर्म वन (Tropical Storm One (1B)) नाम दिया गया. यह 22 मई 1985 को बंगाल की मध्य खाड़ी में विकसित हुआ, 25 तारीख को बांग्लादेश से टकराने से पहले 70 मील प्रति घंटे की रफ्तार से मजबूत हुआ. तूफान ने मूसलाधार बारिश और बाढ़ ला दी, जो बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारणा बनीं. 

तूफान के बाद फैल गया कालरा
इस तूफान के तुरंत बाद बांग्लादेश को एक और त्रासदी झेलनी थी. तूफान के उतरने के बाद बेघर और बर्बाद हुए लोगों के बीच कॉलरा बीमारी फैल गई, जिसने एक क्षेत्र में महामारी जैसा रुख अख्तियार कर लिया था.

साल भर तक बांग्लादेश में मौत का सिलसिला चलता ही रहा था. 

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अब भारत-बांग्लादेश में यास तूफान की आहट
इस तूफान की याद इसलिए क्योंकि 36 साल बाद इसी 25-26 तारीख को एक बार फिर बंगाल की खाड़ी से मौत का पैगाम उठ खड़ा हुआ है.

भारत और बांग्लादेश दोनों देशों की सरकारें अपने-अपने लोगों को यास नाम के इस चक्रवात से बचाने की कवायद में जुटी हुई हैं. तौकते की तबाही के ठीक एक हफ्ते बाद अब भारत का पूर्वी तट भी तूफान की जिद में हैं.

कोरोना त्रासदी के बीच ये प्राकृतिक आपदा कितनी घातक बन जाएगी, देखते हैं. 

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