सपा और सुभासपा का गठजोड़ कितना मजबूत, बीजेपी को कितना नफा-नुकसान

माया और राहुल के साथ हाथ मिलाकर भी खाली हाथ रहने वाले अखिलेश यादव को इस गठबंधन से कुछ मिलेगा या वह हाथ मलते रह जाएंगे?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 20, 2021, 07:14 PM IST
  • ओपी राजभर की छवि पलटूराम की बनती जा रही है
  • पिछड़ी जातियों में ब्रांड मोदी, हिंदुत्व के एजेंडे का काफी प्रभाव है
सपा और सुभासपा का गठजोड़ कितना मजबूत, बीजेपी को कितना नफा-नुकसान

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले खेला जारी है. सभी पार्टियां रोज एक नया दांव चल रही हैं. इसी कड़ी में सुहेलदेव समाजपार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया है. लेकिन सवाल यह है कि जमीन पर यह गठबंधन कितना प्रभावी होने वाला है और इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? माया और राहुल के साथ हाथ मिलाकर भी खाली हाथ रहने वाले अखिलेश यादव को इस गठबंधन से कुछ मिलेगा या वह हाथ मलते रह जाएंगे? यह गठबंधन भाजपा पर क्या असर डालेगा?

ओपी राजभर यूपी के पलटूराम

ओपी राजभर की छवि पलटूराम की बनती जा रही है. राजभर ने ओवैसी के साथ मिलकर भागीदार मोर्चा बनाया और रैली करने लगे. जल्द ही खबर आई कि उनकी भाजपा से बात फाइनल हो गई है और गठबंधन तय है. इस सबके बाद बुधवार को सपा के साथ गठबंधन का ऐलान हो गया. ऐसे में सवाल उठता है कि राजभर चुनाव तक या चुनाव के बाद कितने दिन तक सपा के खेमे में टिक पाएंगे. यानी अखिलेश अगर ओपी राजभर पर ज्यादा भरोसा करेंगे तो उनके हाथ निराशा ही लगेगी. वैसे भी ओपी राजभर ने कई बार कहा भी है कि जो पार्टी उनकी शर्तें मानेगी, उसके साथ जाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. 

बहुत बड़ा नहीं है राजभर का प्रभाव

पिछले विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर की पार्टी ने मात्र चार सीटें जीती थीं. वह भी भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद. वहीं ऐसा भी नहीं है कि ओपी राजभर अपनी जाति के एकमात्र कद्दावर नेता हों और प्रदेश के ज्यादातर राजभर वोट पर उनका प्रभाव हो.

पर पूर्वांचल में फंस सकता है भाजपा का पेच

उत्तर प्रदेश में राजभर समाज की आबादी करीब चार फीसद है और प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में सौ से अधिक सीटों पर इस समाज का ठीक-ठाक वोट है. पूर्वांचल के 24 से अधिक जिलों की सीटों पर राजभर समाज का वोट बैंक निर्णायक हैसियत में है. ये जिले हैं वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़, देवरिया, बलिया, मऊ, चंदौली, गाजीपुर. इन जिलों की सीटों पर 18-20 फीसद वोट राजभर का ही माना जाता है. ऐसे में सपा और राजभर का यह गठबंधन पूर्वांचल की इन सीटों पर कुछ हजार वोट से भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है. 

दूसरी छोटी जातियों के लिए राजनीतिक संदेश

सुभासपा प्रमुख दावा करते रहे हैं कि राजभर ही नहीं निषाद, बंजारा, बिंद, मौर्य, कश्यप, कुशवाहा जैसी पिछड़ी जातियां भी उनके साथ हैं. उनका प्रभाव उत्तर प्रदेश की 153 सीटों पर है. पर उनकी इस बात में कितना दम है, इसका आकलन चुनाव से पहले अभी सटीक तरीके से नहीं किया जा सकता है. पर यह नया गठबंधन पिछड़ी जातियों के लिए एक राजनीतिक संदेश तो जरूर है.

भाजपा की जवाबी रणनीति

2017 के चुनाव में भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर को आठ सीटें दीं. इसमें सुभासपा चार जीतने में कामयाब रही. ओम प्रकाश मंत्री बने. लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पिछड़े को सौंपने समेत कई मांग को लेकर योगी सरकार से नाराज हो गए. इस पर उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया. इस कड़वे अनुभव के बाद भी भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी ओम प्रकाश राजभर को अपने पाले में लाना चाहती थी. लेकिन राजभर के सपा के साथ जाने के बाद भी भाजपा की राजभर वोट के लिए चुनावी रणनीति कमजोर नहीं हुई है. यूपी की पिछड़ी जातियों में ब्रांड मोदी और हिंदुत्व के एजेंडे का काफी प्रभाव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी पिछड़ी जाति से आते हैं.

भाजपा के पास कई राजभर चेहरे

भाजपा अपने मंत्री अनिल राजभर के अलावा राज्यसभा सदस्य सकल दीप राजभर और पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर के जरिए राजभर वोट पाने की कोशिश में है. लेकिन उसकी नजर इस समाज के अन्य प्रभावशाली नेताओं पर भी है. राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक बसपा सरकार में मंत्री रहने वाले विधायक राम अचल राजभर पर भी भाजपा की नजर है. राम अचल आजकल बसपा से बाहर हैं. हालांकि राम अचल राजभर कह रहे हैं कि वह भाजपा में नहीं जाएंगे. वहीं बहराइच में सुहेलदेव का स्मारक बनवाकर भाजपा इस समुदाय को साधने में लगी है. 

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