नई दिल्ली: दिल्ली में आयोजित हुई धर्म संसद में किसी भी तरह से किसी विशेष समुदाय के खिलाफ भड़ाकाऊ भाषा या शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है. दिल्ली पुलिस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर किये गए हलफनामे में ये बात कही गयी है. दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हिंदू युवा वाहिनी कार्यक्रम में सुदर्शन टीवी के सुरेश चव्हाणके का भाषण हेट स्पीच नहीं है. और न ही कार्यक्रम में कोई नफरत की भाषा व्यक्त नहीं की गई.
क्या है इस हलफनामे में
दिल्ली पुलिस की ओर से दक्षिण पूर्व दिल्ली की उपायुक्त कि ओर से हलफनामा दायर किया गया है. दायर किये गये हलफनामे में कहा गया कि दिल्ली के गोविंदपुरी में हिंदू युवा वाहिनी कार्यक्रम में सुरेश चव्हाणके के भाषण में इस्तेमाल किए गए शब्दों में से किसी का भी यह मतलब नहीं था कि "मुसलमान जमीन के हड़पने वाले". ना ही ऐसा कोई शब्द कहा गया जिसे किसी भी धर्म के खिलाफ उन्माद का माहौल पैदा किया जा सके.
पुलिस ने जांच में क्या पाया
हलफनामे में कहा गया है कि पुलिस ने घटना के खिलाफ शिकायतों की प्रारंभिक जांच की और दिए गए भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग की जांच की है. जांच के बाद पुलिस को उन वीडियो में ऐसे कोई शब्द नहीं मिले हैं, जिनका मतलब या भाषण में एक पूरे समुदाय की हत्या के लिए खुले आह्वान या मुसलमानों के नरसंहार के लिए खुले आह्वान के रूप में व्याख्या की जा सकती है.
क्या थी याचिका में मांग
दिल्ली पुलिस का ये जवाब हरिद्वार धर्म संसद और दिल्ली धर्म संसद में दिए गए विवादित भाषणों की जांच की मांग को लेकर दायर कुर्बान अली की याचिका के जवाब में दायर किया गया है. याचिका में कहा गया है कि 17 और 19 दिसंबर, 2021 के बीच दिल्ली में (हिंदू युवा वाहिनी द्वारा) और हरिद्वार (यति नरसिंहानंद द्वारा) में आयोजित दो अलग-अलग कार्यक्रमों में, नफरत फैलाने वाले भाषण दिए गए, जिसमें मुसलमानों के नरसंहार के लिए खुले आह्वान शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 12 जनवरी को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया था.
याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि "दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इस तथ्य के बावजूद कि नरसंहार के लिए खुले तौर पर आह्वान किया गया है. जिसके वीडियो इंटरनेट पर भी उपलब्ध है. हलफनामे में कहा गया है कि दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम और भाषण किसी के धर्म को उन बुराइयों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने के लिए सशक्त बनाने के बारे में थे जो उसके अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है.
हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने कहा है भाषण किसी विशेष धर्म के नरसंहार के आह्वान से दूर-दूर तक भी नहीं जुड़े थे. दिल्ली पुलिस बल इस मामले में याचिकाकर्ता के सीधे कोर्ट आने पर भी आपत्ति जतायी गई है. पुलिस ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कोई भी शिकायत के साथ दिल्ली पुलिस से संपर्क नहीं किया और इसके बजाय शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की है. दिल्ली पुलिस ने सांप्रदायिक नफरत फैलाने वालों के साथ हाथ मिलाने के दावों का भी खंडन किया क्योंकि जांच एक वीडियो टेप के सबूतों पर आधारित है और इसमें छेड़छाड़ की कोई गुंजाइश नहीं है. पुलिस ने अपने हलफनामे में तर्क दिया है कि लोगो में "दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता" होनी चाहिए. "असहिष्णुता लोकतंत्र के लिए उतना ही खतरा है जितना कि खुद व्यक्ति के लिए,"
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