क्या ओवैसी पर भरोसा करेगा उत्तर प्रदेश का मुसलमान, मजबूती से किसका होगा नुकसान

सबसे बड़े सूबे यूपी में चुनावी रणभेरी बजने में कुछ ही महीनों का वक्त बचा है लेकिन यहां की फ़िज़ा में अभी से सियासत का रंग घुल गया है.  

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Jul 16, 2021, 07:29 PM IST
  • ओवैसी लगातार यूपी में कर रहे हैं जनसंपर्क
  • जानिए उनका कितना रहेगा असर
 क्या ओवैसी पर भरोसा करेगा उत्तर प्रदेश का मुसलमान, मजबूती से किसका होगा नुकसान

नई दिल्लीः देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में चुनावी रणभेरी बजने में कुछ ही महीनों का वक्त बचा है लेकिन यहां की फ़िज़ा में अभी से सियासत का रंग घुल गया है. सभी दल अपने अपने समीकरण साधने में जुट गए हैं. कहते हैं बिना जाति और धर्म के सियासी तड़के के यूपी की राजनीति मुकम्मल नहीं होती , यूपी में खास तौर पर मुस्लिम वोटबैंक को साधने का खेल शुरू हो चुका है . एसपी और कांग्रेस के अलावा इसमें इस बार एक अहम खिलाड़ी की भी एंट्री हो चुकी है ओवैसी की AIMIM, लेकिन क्या ओवैसी यूपी की सियासत में बड़ा उलटफेर कर पाएंगे क्या यहां का मुसलमान ओवैसी का ख़ैर-मक़्दम करेगा.आइए इन्ही सवालों का जवाब तलाशते हैं.

सियासत की लैला यूपी में करेगी कोई खेला ?
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी खुद को सियासत की लैला बताते हैं. वो कहते हैं कि वो राजनीति की एक ऐसी लैला हैं जिसके हजार मजनू हैं और हर कोई चाहता है कि उन्हें मुद्दा बनाकर वोट हासिल किए जाए. ओवैसी इन दिनों यूपी में खुद को मुस्लिमों का सच्चा हमदर्द बताकर सियासी ताल ठोक रहे हैं. पिछले 9 महीने में पांचवी बार ओवैसी ने खुद को सियासत की लैला बताया. ओवैसी कहते हैं सभी पार्टियों ने मुसलमानों को सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया बदले में मुस्लिमों को कुछ भी हासिल नहीं हुआ.  ओवैसी का टारगेट सपा के मुस्लिम वोटबैंक है जिसके लिए वो लगातार अभी से घूम घूम कर माहौल बनाने में जुटे हैं.   

यूपी में 20 फीसदी आबादी वाला मुस्लिम सीएम क्यों नहीं ?
मुस्लिमों को साधने के लिए ओवैसी ने यूपी में एक बड़ी चाल चली है. AIMIM के नेता कहते हैं जब 5 से 6 फीसदी वाला सीएम, डिप्टी सीएम बन सकता है तो 20 फीसदी वाला सीएम या डिप्टी सीएम क्यों नही बन सकता है. जिसकी जितनी हिस्सेदारी उतनी उसकी भागीदारी होनी चाहिए. वो सभी दलों को चुनौती देते कहते हैं कि अगर वो वाकई में मुस्लिमों के सगे हैं तो ऐलान करें सीएम मुस्लिम होगा. ओवैसी की इस सियासी दांव को और धार दे दी भागीदार संकल्प मोर्चा के मुखिया सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने , वो कहते हैं कि असदुद्दीन ओवैसी अगर उत्तर प्रदेश के मतदाता बन जाये, तो वह यहां के सीएम हो सकते हैं.  उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है.

 बीजेपी को नहीं हरा सकती
AIMIM का कहना है कि जो भी पार्टी हमें साथ नहीं लेगी, वो बीजेपी को नहीं हरा सकती , AIMIM के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जो दल AIMIM को अपने गठबंधन में नहीं लेगा वह बीजेपी को रोक नहीं पाएगा बल्कि वह एक 'ठगबंधन' होगा , भागीदारी संकल्प मोर्चा का मकसद बीजेपी को हटाना है. सपा-बसपा का गठबंधन बीजेपी को नहीं हटा पाएगा, यह हमने 2019 चुनाव में देख लिया. कांग्रेस और सपा का गठबंधन भी बीजेपी को नहीं हरा पाएगा, ये हमने 2017 में देखा.

मुस्लिम वोट बंटने के डर से सपा बसपा ने ओवैसी से बनाई दूरी
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने ही ओवैसी से दूरी बना ली है वो नहीं चाहते कि जिस वोटबैंक पर उनका कब्जा रहा है उसमें कोई तीसरा पार्टनर भी आ जाए और उनकी हिस्सेदारी कम हो जाए. उन्हे एक डर ये भी है कि अगर ऐसा हुआ तो गैरमुस्लिम यानी हिंदू वोटबैंक का ध्रुवीकरण होगा जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. यही वजह है कि बीएसपी के साथ AIMIM के साथ गठबंधन की अटकलों को विराम देते हुए मायावती ने साफ कह दिया कि वो अकेले ही चुनाव लड़ेंगी. इस पर ओवैसी ने कहा जो दल उन्हें राजनीतिक अछूत समझते हैं उन्हें यूपी में जवाब मिल जाएगा. 

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न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम वाली हालत ना हो जाए ओवैसी की
आपको याद होगा बंगाल चुनाव में ओवैसी बड़े बड़े दावे कर रहे थे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ गठबंधन कर चुनावी ताल ठोकने की तैयारी में थे लेकिन पीरजादा ने उन्हे किनारे कर लेफ्ट और कांग्रेस से हाथ मिला लिया बेचारे ओवैसी अकेले रह गए. ना गठबंधन हुआ ना ही बंगाल में उनका खाता खुला.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पहले चरण की  वोटिंग से ठीक पहले असदुद्दीन ओवैसी को बड़ा झटका लगा जब उनकी पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रमुख ज़मीरुल हसन ने पार्टी छोड़ दी. यूपी में भी ओवैसी को एक झटका लगा जब वाराणसी की AIMIM की पूरी जिला कार्यकारिणी कांग्रेस में शामिल हो गई. 

यूपी में जिस भागीदार संकल्प मोर्चा के साथ ओवैसी जुड़े हैं वहां भी सीट को लेकर तस्वीर साफ नहीं है ओवैसी के 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात को राजभर ने यह कर खारिज कर दिया कि अभी इसका फैसला नहीं हुआ है इस बीच भागीदर संकल्प मोर्चा के बिखरने की खबरें भी आने लगी हैं ओ पी राजभर ने ओवैसी के साथ शुरू होनेवाली अपनी चुनावी यात्रा से खुद को अलग कर लिया. कार्यक्रम से अचानक राजभर की दूरी सवाल खड़े कर रही है वैसे भी राजभर कई मौकों पर अखिलेश यादव की तारीफ कर चुके हैं वो आखिरी वक्त में सपा की तरफ भी जा सकते हैं चर्चा ये भी है कि राजभर बीजेपी के कई नेताओ के भी संपर्क में हैं  इसलिए कहा जा रहा है कि कहीं बंगाल की तरह यहां भी ओवैसी अकेले ना रह जाएं उनकी हालत वैसी ना हो जाए कि न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम .

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न खेलब न खेले देब खेलिए बिगाड़ देब
कांग्रेस समेत विपक्षी दल ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताते हैं उनका आरोप है कि ओवैसी वोटकटवा हैं इसी साल  जनवरी में बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने भले ही तंज कसते हुए कहा था कि एआईएमआईएम की मौजूदगी से भाजपा को बिहार में फायदा हुआ और उत्तर प्रदेश में भी इसका राजनीतिक लाभ होगा.लेकिन इस बयान के बाद विपक्ष ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताकर हमलावर हो गया इसके लिए विपक्ष बिहार का उदाहरण देता है जहां ओवैसी ने 5 सीटे जीतकर न सिर्फ सबको चौकाया बल्कि 15 से ज्यादा सीटों पर आरजेडी का वोट काटकर नुकसान पहुंचाया. जिस वजह से आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी सरकार नहीं बना पाई और बीजेपी जेडीयू ने बाजी मार ली . बंगाल मे ओवैसी भले ही फ्लॉप रहे हों लेकिन जाति और धर्म के आधार पर बिहार और यूपी का सियासी मिज़ाज लगभग एक जैसा ही है इसलिए हिंदी पट्टी के सबसे बड़े सूबे में ओवैसी को हल्के में आंकना जल्दबाजी होगी . ओवैसी भले ना जीत पाएं लेकिन कई सियासी दलों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं

ओवैसी का पॉलिटिकल स्ट्राइक रेट
ओवैसी की पार्टी का वजूद पहले आंध्र प्रदेश तक ही सीमित था लेकिन धीरे धीरे उसने अपना दायरा बढाना शुरु किया .  AIMIM ने तेलंगाना में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 7 सीटों र  पर कब्जा जमाया. 2019 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में AIMIM के हिस्से में 2 सीटें आयीं. लोकसभा चुनाव की बात करें तो साल 2019 के चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 2 सीटें जीती . 

ओवैसी ने तमाम राजनीतिक पंडितों को उस वक्त चौंका दिया जब 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीत ली . इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM की जमानत जब्त हो गई थी . ऐसा नहीं है कि यूपी में ओवैसी की पार्टी पहली बार सियासी मैदान में उतर रही है इससे पहले 2017 में भी AIMIM ने अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन एक भी सीट नहीं निकाल पाए उल्टे जमानत जब्त हो गई . AIMIM के नेता कहते हैं उनकी पार्टी कांशीराम के फॉर्मूले पर चल रही है  "कांशी राम कहते थे कि पहला चुनाव हारने के लिए लड़ो, दूसरा हराने के लिए लड़ो और तीसरा जीतने के लिए."

सियातसत में हमेशा जीतना मायने नहीं रखती, हारना और हरवाना भी मायने रखता है बंगाल मे भले ही ओवैसी फेल हो गए हों लेकिन क्या यूपी में भी बिहार की तरह सभी को चौंकाएंगे कहना मुश्किल है सियासत की ये लैला उत्तर प्रदेश में कौन सा खेला करेगी ये देखना दिलचस्प होगा  .

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