नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर का बुधवार को उद्घाटन किया है. पीएम ने इस मंदिर को मानवता की साझी विरासत बताया है. उन्होंने इस सुनहरे अध्याय को लिखने में संयुक्त अरब अमीरात का धन्यवाद दिया है. यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद जायद अल नाहयान को धन्यवाद देते हुए पीएम ने कहा-'आपने खाड़ी देश में रहने वाले भारतीयों के साथ-साथ 140 करोड़ भारतीयों का भी दिल जीत लिया.'
पीएम मोदी ने अयोध्या मंदिर में की थी प्राण प्रतिष्ठा
अभी कुछ ही दिन बीते हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी की है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यूएई के BAPS मंदिर का भी अयोध्या कनेक्शन है. पहला कनेक्शन तो ये है कि मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है. इसी तरह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया गया है. इसके अलावा एक और कनेक्शन भी इस मंदिर का अयोध्या से है.
कैसे शुरू हुई BAPS संस्था
इस मंदिर का निर्माण करने वाली संस्था बोचासनवासी श्री अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था यानी BAPS स्वामीनारायण संप्रदाय का हिस्सा है. BAPS की स्थापना साल 1905 में शास्त्री महाराज ने की थी. शास्त्री महाराज स्वामी नारायण संप्रदाय के मानने वाले थे और उन्होंने इस संस्था की स्थापना इस उद्देश्य के साथ की थी पूरी दुनिया में स्वामी नारायण का संदेश फैलाया जाएगा.
अयोध्या के नजदीक जन्मे स्वामी नारायण
स्वामी नारायण जिनके नाम पर यह संप्रदाय है उनका जन्म उत्तर प्रदेश के छपिया में हुआ था जो अयोध्या के नजदीक है. स्वामी नारायण यानी सहजानंद स्वामी का जन्म अयोध्या में 3 अप्रैल 1781 को घनश्याम पांडे के रूप में हुआ था. छपिया वर्तमान अयोध्या से सटे गोंडा जिले में स्थित है. स्वामी नारायण ने नीलकंठ वर्णी नाम को अपनाया और महज 11 साल की उम्र में भारत भर में 7 साल की तीर्थ यात्रा शुरू की.
कैसे बना स्वामी नारायण संप्रदाय
कहा जाता है कि 1799 के आसपास गुजरात राज्य में बस गए. इसके बाद सन् 1800 में स्वामी नारायण ने गुरु स्वामी रामानंद द्वारा उद्धव संप्रदाय में शामिल किया गया और उन्हें साहजनंद स्वामी का नाम दिया गया. मृत्यु से पहले गुरु रामानंद ने उन्हें उद्धव संप्रदाय का नेतृत्व सौंप दिया था. सहजानंद स्वामी ने एक सभा आयोजित की और स्वामीनारायण मंत्र पढ़ाया. कहा जाता है कि इस जगह से वो स्वामी नारायण के नाम से जाने गए. और यहीं से स्वामी नारायण संप्रदाय की शुरुआत भी मानी गई. इसी के बाद उद्धव संप्रदाय को स्वामीनारायण संप्रदाय के रूप में जाना जाता रहा है.
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