नई दिल्लीः Astro Village in Benital: पहाड़ पसंद और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक खास खबर बीते कुछ दिनों से सामने आ रही है. उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है बेनीताल. खबरें हैं कि चमोली जिला प्रशासन इसे Astro Village यानी खगोल गांव के तौर पर विकसित करने की योजना बना रहा है.
यानी अगर आपको चांद-सितारों और अन्य ग्रह-नक्षत्रों को निहारना अच्छा लगता है तो अगली बार से आपकी Tour वाली Wish List में बेनीताल भी शामिल होगा. बस एक बार इसके इसी हिसाब से बन जाने की देरी है.
कहां है बेनीताल?
उत्तराखंड में चमोली जिला प्रशासन के कर्णप्रयाग प्रखंड में स्थित है बेनीताल. कर्णप्रयाग से बेनीताल की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है. कर्णप्रयाग से नेनीताल की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित सिमली-रतूड़ा मार्ग से आप बेनीताल पहुंचा जा सकता है. पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए बेनीताल को अब चारों तरफ से सड़क मार्ग से जोड़ने की योजनाओं पर काम किया जा रहा है.
नाइट विजन टॉवर भी बनेगा
बेनीताल को खगोल-गांव (Astro Village) के रूप में विकसित करने के लिए कई सारे प्रयास किए जा रहे हैं. अफसरों के अनुसार जिला मजिस्ट्रेट हिमांशु खुराना के नेतृत्व में एक टीम ने हाल ही में विकल्प तलाशने के लिए बेनीताल का दौरा किया था और इस बारे में जानकारी ली थी कि पर्यटकों के बीच रुचि पैदा करने के लिए इस क्षेत्र में और क्या-क्या किया जा सकता है.
योजना है कि समुद्र तल से 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बेनीताल को एक ऐसे टूरिस्ट पॉइंट में तब्दील किया जाएगा, जो आने वालों लोगों को ग्रह, तारे और खगोलीय घटनाओं को नजदीक से देखने का खूबसूरत मौका देगा. यहां नाइट-विजन गुंबद और बड़ी दूरबीने होंगी.
ये है योजना, 5 करोड़ का होगा निवेश
परियोजना के विवरण का खुलासा करते हुए, खुराना ने कहा कि पर्यटन विभाग आगंतुकों के लिए यात्रा की सुविधा के लिए रास्ते, कॉटेज, रेस्तरां, टेंट प्लेटफॉर्म और दो पार्किंग स्थल बना रहा है. डीएम ने कहा कि विभाग ने अनुमान लगाया है कि उक्त परियोजना में कुल 5 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, और गढ़वाल मंडल विकास निगम को बेनीताल को एक एस्ट्रो-ग्राम के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी है.
बेनीताल को ही क्यों चुना गया
बेनीताल को खगोल गांव क्यों बनाया जाएगा? इस सवाल का जवाब आपको थोड़ा इतिहास में पीछे जाकर मिलेगा. स्थानीय लोगों के मुताबिक इसका इतिहास अंग्रजों के बहुक शुरुआती समय से जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि ये शायद 1834 के आसपास का समय रहा होगा, भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड बैंटिक ने भारत में चाय की परंपरा शुरू की.
चाय का उत्पादन बिजनेस के तौर पर शुरू करने के लिए जरूरी था कि इसके उत्पादन के लायक जमीनें तलाशी जाएं. इस तलाश के लिए एक समिति बनाई गई. इसी समिति की खोज थी बेनीताल घाटी. हालांकि यह खोज सिर्फ इस संबंध में थी कि अंग्रेजों ने इस स्थान की केवल पहचान ही की. भारतीय परंपरा में तो बेनीताल हमेशा से जाना-पहचाना रहा है.
यहां से आकाश देखना, जैसे कोई जादू
जब अंग्रेज यहां पहुंचे तो अल्पाइन (छोटे पहाड़ों) से घिरी श्रेणियों के बीच दूर तक फैला ये घाटी वाला मैदान उन्हें मोह गया. रात में तो इसका नजारा और भी ज्यादा जादुई हो जाता है. उन्होंने देखा कि साफ आसमान में टिमटिम करते तारे इस घाटी की खूबसूरती और बढ़ा रहे हैं. अंग्रेजों ने अपनी खोज के दौरान बेनीताल को एक बड़े टी स्टेट रूप में पहचान दी.
यहां उगने वाली चाय सबसे ज्यादा उन्नत प्रकार की होती है. इसे बदरीश-टी के नाम से ब्रिटेन भेजा जाता था. बेनीताल अंग्रेजों के लिए पसंदीदा आरामगाह भी रहा है, लेकिन इसके बावजूद इसे पर्यटन के तौर पर विकसित करने की उनकी दिलचस्पी कभी नहीं रही. लिहाजा बेनीताल आज तक भीड़ से दूर एक शांत जगह है, जहां प्रकृति से करीबी को और अधिक महसूस किया जा सकता है.
बेनीताल का धार्मिक महत्व
धार्मिक इतिहास में बेनी ताल को और अधिक महत्व मिला हुआ है. बेनी शब्द उत्तराखंड की बोलचाल की भाषा में बैंणी शब्द से लिया गया है. इसका अर्थ होता है बहन. बेनी ताल का अर्थ हुआ बहन का ताल. धार्मिक किवदिंतियों में कहा जाता है कि उत्तराखंड में नौ देवियां, नौ बहनों के रूप में हैं. यहां इन्हीं देवियों के नाम पर अलग-अलग ताल हैं. मां नंदा, नागिनी या नैणी देवी, पार्वती देवियों के नाम पर ही ये ताल बने हैं. धार्मिक महत्व यह इन्हीं बहनों का ताल कहलाता है.
इसलिए लिया गया है फैसला
उत्तराखंड के सचिव (पर्यटन) दिलीप जावलकर ने मीडिया को बताया कि बेनीताल के अलावा, तीन अन्य स्थानों को भी एस्ट्रो-टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित किया जाएगा. इनमें नैनीताल के पास टकलूला और देवस्थल के गांव, अल्मोड़ा में बिनसर वन्यजीव अभयारण्य और मसूरी के पास जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट के पास कार्टोग्राफी संग्रहालय शामिल हैं.
जावलकर ने कहा कार्टोग्राफी संग्रहालय का चयन इसलिए किया गया था क्योंकि इसमें पहले से ही कुछ झोपड़ियां हैं जिनका उपयोग स्टार गेजिंग के लिए किया जाता था. नैनीताल में आस-पास के गांवों में साइट आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) और जिला प्रशासन द्वारा विकसित की जाएगी. बिनसर में, मौजूदा कॉटेज का उपयोग पर्यटक कर सकते हैं, इन्हें इसी तौर पर डेवलप किया जाएगा.
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.