कारगिल विजय में आम नागरिकों ने निभाई थी बड़ी भूमिका, क्या है 'मेड इन पाकिस्तान' वाला किस्सा

कारगिल की जीत में आम नागरिकों की भी बड़ी भूमिका थी. आपको ऐसे दो नागरिकों से मिलवाते हैं जिन्होंने हथियार तो नहीं चलाए थे लेकिन उन्होंने जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में बहुत बड़ी मदद की थी.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 26, 2022, 01:40 PM IST
  • गड़रिया की जुबानी, कारगिल विजय की कहानी
  • जिन्होंने सेना की वर्दी पहने बिना की देश की मदद
कारगिल विजय में आम नागरिकों ने निभाई थी बड़ी भूमिका, क्या है 'मेड इन पाकिस्तान' वाला किस्सा

नई दिल्ली: कारगिल विजय की कहानी में पाकिस्तान की घुसपैठ, सेना के शौर्य, बोफोर्स और मिग-27 के पराक्रम के साथ-साथ एक अध्याय गड़रिया का है. वही गड़रिया जिसने भारतीय सेना को ये बताया था कि कारगिल में पाकिस्तान ने कब्जा जमा लिया है. 23 साल पहले कारगिल की द्रास घाटी में सेना की वीरता की कहानी हर नागरिक जानता है, लेकिन इसी द्रास घाटी में कुछ ऐसे लोग थे जो सैनिक तो नहीं थे लेकिन उन्होंने जो काम किया वो किसी बहादुर सैनिक से कम नहीं था.

सेना की वर्दी पहने बिना की देश की मदद

इन्हें कारगिल का गड़रिये नहीं, देश का एक ऐसा नायक कहिए जिन्होंने कारगिल विजय की बुनियाद तैयार की थी. वो भी सेना की वर्दी पहने बिना. 

यार मोहम्मद खान.. द्रास घाटी से 8 किलोमीटर दूर टाइगर हिल में बसी मशकु घाटी में इनका गांव हैं. यार मोहम्मद पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने पाकिस्तानी सेना की हरकत की सूचना भारतीय सेना को दिया था. सबूत के तौर पर यार मोहम्मद ने पाकिस्तान में बने दो सिगरेट के पैकेट भी दिखाए थे जो उन्हें मिले थे.

8 मई को यार मोहम्मद ने सूचना दी और 13 मई को भारतीय सेना ने हमले का जवाब दिया. यार मोहम्मद ने भारतीय सैनिकों को टाइगर हिल और बन्ना टॉप पर जाने के लिए रास्ता भी दिखाया. उनके साथ पहाड़ी की चढ़ाई भी की.

नसीम अहमद ने सेना के जवानों को खिलाया खाना

यार मोहम्मद की तरह नसीम अहमद भी द्रास घाटी में रहते हैं. यहां ये छोटा सा ढाबा चलाते हैं. कारगिल युद्ध के दौरान द्रास घाटी खाली हो गई थी, लेकिन नसीम अहमद बम और बारूद के बीच रहकर ढाबे में भारतीय जवानों को खाना खिलाते रहे.

यार मोहम्मद और नसीम अहमद के अलावा दर्जनों युवकों ने अपने-अपने तरीके से युद्ध में सेना की मदद की थी

यार मोहम्मद खान ने बताई पूरी कहानी

यार मोहम्मद खान ने बताया कि 'हमें 6 मई 1999 को पेट्रोलिंग करने के लिए किल नाला भेजा गया था, जब हम वहां गए तो पाकिस्तान की दो डिब्बी मिली. मैं अपने साथ चार लोकल लड़के लेकर गया था. वहां करीब दो बजे रास्ते में सिगरेट की दो डिब्बी मिली, जब हमने हाथ में लिया तो उस पर मेड इन पाकिस्तान लिखा था.'
 
यार मोहम्मद खान के मुताबिक उन्हें 6 मई 1999 को कारगिल के रास्ते में सिगरेट के दो पैकेट मिले. जिसपर लिखा था मेड इन पाकिस्तान.. कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ का ये पहला और सबसे अहम सबूत था. इसके बाद यार मोहम्मद खान ने क्या किया.

उन्होंने कहा कि 'मैंने वहां से सीओ साहब को फोन किया और उन्हें सारा मामला बता दिया. मैंने सुबह सीओ साहब को सिगरेट की डिब्बी दिखाई, तो उन्होंने कहा कि हमारे पास आदमी की कमी है, उसके बाद उन्होंने फायर शुरू कर दिया.'

कारगिल की चोटियों पर किया था दुश्मन ने कब्जा

15 से 17 हजार फीट ऊपर कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा जमा रखा था और हमारे जवान नीचे थे. भारतीय सेना अब मोर्चा संभाल चुकी थी. सेना ने तोलोलिंग, द्रास के बॉर्डर के पास के गांवों को खाली कराया और बोफोर्स तोप का मुंह पाकिस्तानी सैनिकों की तरफ कर दिया.

यार मोहम्मद खान 20 साल पुरानी बातें याद करते हुए कहते हैं कैसे शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा सहित सेना के सभी बहादुर एक के बाद एक प्वाइंट को जीतने में लग गए थे. चश्मदीद गड़रिया यार मोहम्मद खान ने बताया कि कैसे हमारे देश के जवान टाइगर हिल चढ़ गए.

कारगिल विजय की ऐतिहासिक यादों के बीच यार मोहम्मद खान ने कश्मीर की मौजूदा स्थिति और मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर भी अपनी राय रखी. उन्होंने ज़ी मीडिया से खास बातचीत में कहा कि कश्मीर के मसले में बहुत फर्क आया है. करगिल युद्ध की जब भी बात होगी, करगिल और द्रास के आसपास बसे गांव में रहने वालों की बात जरूर होगी. जिनकी मदद के बगैर इनती बड़ी जीत संभव नहीं थी.

आतंकवाद और घुसपैठ के खिलाफ जरा सी लापरवाही युद्ध की वजह बन सकती है. कारगिल युद्ध का उदाहरण आपके सामने है. 20 वर्ष पहले पाकिस्तानी घुसपैठ की वजह से कारगिल युद्ध हुआ था. आज हम आपको उस गड़रिये से मिलाने जा रहे हैं, जिसकी सावधानी और सूझ-बूझ की बदौलत भारत कारगिल युद्ध में विजयी हुआ.

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