पाक से 1 लाख करोड़ रुपये का कर्ज वसूलना केंद्र सरकार की जिम्मेदारीः दिल्ली हाई कोर्ट

भारत-पाक विभाजन के समय भारत की ओर से पाकिस्तान को दिए गए कर्ज की अदायगी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और जस्टिस नवीन चावला की खण्डपीठ ने इसे केंद्र सरकार का नीतिगत मामला बताते हुए कहा कि पाकिस्तान से कर्ज वसूल करना सरकार का काम है.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Mar 22, 2022, 05:44 PM IST
  • नीतिगत मामला बताते हुए हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका
  • केंद्र सरकार की ओर से किया गया था याचिका का विरोध
पाक से 1 लाख करोड़ रुपये का कर्ज वसूलना केंद्र सरकार की जिम्मेदारीः दिल्ली हाई कोर्ट

नई दिल्लीः भारत-पाक विभाजन के समय भारत की ओर से पाकिस्तान को दिए गए कर्ज की अदायगी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और जस्टिस नवीन चावला की खण्डपीठ ने इसे केंद्र सरकार का नीतिगत मामला बताते हुए कहा कि पाकिस्तान से कर्ज वसूल करना सरकार का काम है और हम इस मामले में कोई निर्देश नहीं दे सकते हैं. 

हाई कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में कदम उठा सकती है, लेकिन वे किसी तरह का निर्देश नहीं दे सकते हैं.

हाई कोर्ट में दायर की गई थी याचिका
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता ओम सहगल की ओर से दायर याचिका को खारिज करने के आदेश दिए हैं. याचिका में अदालत से कहा गया कि विभाजन के समय भारत सरकार ने पाकिस्तान को कर्ज दिया था, लेकिन पाकिस्तान बार-बार भारत सरकार के पैसे का इस्तेमाल कश्मीर और भारत में अन्य जगहों पर हमला करने के लिए करता रहा है और उसके द्वारा शुरू किए गए युद्धों में देश के अनगिनत सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं.

ब्याज के साथ कर्ज की रकम 1 लाख करोड़ होने का दावा
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका के समर्थन में कई दस्तावेज पेश कर दावा किया गया कि पाकिस्तान ने आजादी से पहले और बाद में भारत से 300 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था और अब यह राशि ब्याज के साथ करीब 1 लाख करोड़ रुपये हो गई है.

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दावा किया कि भारत के एक लाख करोड़ रुपये के कर्ज के दस्तावेज करीब 100 पन्नों में हैं. और वित्त मंत्रालय से विभाजन से पहले की फाइलें गायब हो चुकी हैं.  

केंद्र की ओर से याचिका का किया गया विरोध
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से एएसजी चेतन शर्मा ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि ये मामला सरकार की नीतियों से जुड़ा हुआ है, जिसमें अदालत को दखल नहीं देना चाहिए. इसके साथ ही एएसजी ने कहा कि याचिका में याचिकाकर्ता की भावना भले ही उचित हो, लेकनि यह नीतियों का मामला है और इसे सरकार पर छोड़ देना चाहिए.

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