फॉदर स्टेन स्वामी का निधन, भीमा कोरेगांव मामले में थे आरोपी

अदालत के 28 मई के आदेश के बाद से स्वामी का यहां होली फैमिली हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. निजी अस्पताल में उनके इलाज का खर्च उनके सहयोगी एवं मित्र उठा रहे थे.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 5, 2021, 03:55 PM IST
  • एनआईए ने हाईकोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर कर स्वामी की जमानत याचिका का विरोध किया था
  • एनआईए का आरोप था कि स्वामी माओवादी थे जिन्होंने देश में अशांति पैदा करने के लिए साजिश रची थी.
फॉदर स्टेन स्वामी का निधन, भीमा कोरेगांव मामले में थे आरोपी

मुंबईः एल्गार परिषद-माओवादियों से संबंध मामले के आरोपी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी नहीं रहे. इसके पहले उनकी नाजुक तबीयत की खबर आई थी. उनके वकील मिहिर देसाई ने सोमवार को  जानकारी दी थी कि स्वामी की हालत नाजुक है. वरिष्ठ अधिवक्ता ने मीडिया को बताया कि रविवार रात तक, 84 वर्षीय जेशुइट (रॉयल कैथलिक समाज का सदस्य) पादरी जीवनरक्षक प्रणाली पर थे.

अदालत के 28 मई के आदेश के बाद से स्वामी का यहां होली फैमिली हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. निजी अस्पताल में उनके इलाज का खर्च उनके सहयोगी एवं मित्र उठा रहे थे.

84 साल की उम्र में निधन
स्वामी का जिस अस्पताल में उपचार चल रहा था, उसके एक अधिकारी ने बंबई उच्च न्यायालय को सोमवार को इस बारे में बताया.
उपनगरीय बांद्रा में होली फैमिली अस्पताल के निदेशक डॉ इयान डिसूजा ने उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ को बताया कि 84 वर्षीय स्वामी की सोमवार अपराह्न डेढ़ बजे मृत्यु हो गई.


हाईकोर्ट द्वारा स्वामी की एक याचिका पर सुनवाई के बाद आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता को 29 मई को तलोजा जेल से निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इस याचिका में कहा गया था कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए और पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे हैं, इसलिए चिकित्सा उपचार की जरूरत है.

सोमवार दोपहर हुआ निधन
डिसूजा ने अदालत को बताया कि रविवार तड़के स्वामी को दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया. अधिकारी ने अदालत को बताया, ‘‘उनकी (स्वामी) हालत ठीक नहीं हो पायी और आज दोपहर उनका निधन हो गया.’’
उन्होंने बताया कि फेफड़े में संक्रमण, पार्किंसंस रोग और कोविड-19 की जटिलताओं के कारण स्वामी की मौत हो गयी.

स्वामी के वकील मिहिर देसाई ने बताया कि तलोजा जेल प्रशासन की ओर से लापरवाही हुई और उन्हें तुरंत चिकित्सा सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी.
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया था और तब से वह जेल में थे.

UAPA को पिछले हफ्ते दी थी चुनौती
पिछले हफ्ते, स्वामी ने अदालत में एक नई याचिका भी दायर कर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (UAPA) की धारा 43डी (पांच) को चुनौती दी थी जो इस कानून के तहत आरोपी बनाए गए व्यक्ति की जमानत पर सख्त शर्तें लगाती है.

सोमवार को, देसाई ने कहा कि वह जमानत याचिका या (UAPA) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली नई याचिका दोनों में किसी पर तत्काल सुनवाई के अनुरोध के साथ उच्च न्यायालय का रुख नहीं करेंगे. 
देसाई ने कहा, ‘‘ मुझे सुबह में उनकी (स्वामी) सेहत के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है. लेकिन कल देर रात तक वह जीवनरक्षक प्रणाली पर थे.” इसके बाद दोपहर को उनके निधन की खबर आई. 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एएचआरसी) ने जेल में बंद कैदी की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति का आरोप लगाने वाली एक शिकायत पर रविवार को महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था.

राज्य के मुख्य सचिव के माध्यम से भेजे गए नोटिस में, एनएचआरसी ने स्वामी के मूलभूत मौलिक अधिकारों के संरक्षण एवं जीवनरक्षक उपाय के तहत उनके लिए उचित चिकित्सा देखभाल और उपचार सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था.

मई में सुप्रीम कोर्ट को दी थी स्वास्थ्य की जानकारी दी
इस साल मई में, स्वामी ने उच्च न्यायालय की अवकाश पीठ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया था कि तलोजा जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा.

उन्होंने उच्च न्यायालय से उस वक्त अंतरिम जमानत देने का अनुरोध किया था और कहा था कि अगर चीजें वहां ऐसी ही चलती रहीं तो वह ‘‘बहुत जल्द मर जाएंगे.”

एल्गार परिषद-माओवादियों से संबंध मामले में अन्य आरोपी - कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े और वर्नोन गोन्जाल्विस की पत्नियों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि इस साल मार्च में तेलतुंबड़े द्वारा लिखे लेख के एक पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद से तलोजा जेल अधीक्षक मामले में सभी आरोपियों द्वारा लिखे गए या उनको लिखे गए पत्रों को रोके हुए हैं.

यह है एल्गार परिषद मामला
एल्गार-परिषद मामले में, स्वामी और उनके सह-आरोपियों पर एनआईए ने आरोप लगाया है कि ये सभी प्रतिबंधित माकपा (माओवादी) की तरफ से काम कर रहे अग्रणी संगठन के सदस्य थे.

पिछले महीने, एनआईए ने हाईकोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर कर स्वामी की जमानत याचिका का विरोध किया था. इसने कहा था कि उनकी बीमारी के कोई “ठोस सबूत” नहीं हैं. इसने आरोप लगाया था कि स्वामी माओवादी थे जिन्होंने देश में अशांति पैदा करने के लिए साजिश रची थी.
एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में हुए एक सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों से संबंधित है जिसके बारे में पुलिस का दावा है कि अगले दिन इन भाषणों के कारण कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी.

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