Gyanvapi Case: 150 साल का संघर्ष... ज्ञानवापी के लिए लड़ने वाले 'व्यास' परिवार की क्या कहानी?

Gyanvapi Case History: ज्ञानवापी मुकदमे को लड़ने वाले शैलेंद्र पाठक का कहना है कि उंनका परिवार 1880 से इसके लिए लड़ाई लड़ रहा है. 1937 में हाई कोर्ट ने व्यास परिवार के पक्ष में फैसला भी सुनाया था. 

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Jan 31, 2024, 05:01 PM IST
  • सोमनाथ व्यास करते थे तहखाने में पूजा
  • अब उनके नाती शैलेंद्र पाठक करेंगे पूजा
Gyanvapi Case: 150 साल का संघर्ष... ज्ञानवापी के लिए लड़ने वाले 'व्यास' परिवार की क्या कहानी?

नई दिल्ली: Gyanvapi Case History: वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में पूजा करने की इजाजत दे दी है. इस तहखाने को 'व्यास जी का तहखाना' भी कहा जाता है. अब सवाल ये उठता है कि इस तहखाने में ही पूजा का अधिकार क्यों दिया गया है और ये 'व्यास जी' कौन हैं जिनके नाम पर तहखाने का नाम पड़ गया है. आइए, जानते हैं...

व्यास परिवार करता था पूजा
दरअसल, इस तहखाने में 1992 से पहले काशी का प्रसिद्ध व्यास परिवार पूजा-पाठ करता था. सोमनाथ व्यास यहां पुजारी के तौर पर पूजा किया करते थे. लेकिन 5 दिसंबर, 1992 में तत्कालीन यूपी सरकार ने इन्हें पूजा करने से रोक दिया और तहखाने में पूजा बंद कर दी गई. बाबरी मस्जिद को गिराए जाने से ठीक एक दिन पहले यहां पूजा-पाठ करने पर रोक लागाई गई थी.

1880 से लड़ रहे ज्ञानवापी की लड़ाई
व्यास परिवार का इतिहास सोमनाथ व्यास से नहीं बल्कि पंडित केदारनाथ व्यास से भी जाना जाता है. केदारनाथ व्यास दुर्लभ पांडुलिपियों और ग्रंथों के रचयिता रहे हैं. सोमनाथ व्यास के नाती शैलेंद्र पाठक बताते हैं कि हमारा परिवार 1551 से काशी विश्वनाथ से जुड़ा हुआ है. हमारे पूर्वजों ने 1880 से मस्जिद प्रशासन के खिलाफ लड़ाई लड़ना शुरू किया था. 

1937 में व्यास परिवार के हक में रहा फैसला
ज्ञानवापी का सबसे पहला विवाद 1936 में सामने आया. दीन मोहम्मद नाम के एक शख्स ने ज्ञानवापी मस्जिद और उसके आसपास की जमीन पर अपना हक जताया. लेकिन वाराणसी के एडिशनल सिविल जज ने इसे मस्जिद की जमीन मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट गया. 1937 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मस्जिद के ढांचे को छोड़कर बाकी जमीनों पर व्यास परिवार और बाबा विश्वनाथ मंदिर का हक है. कोर्ट ने ये भी कहा मस्जिद के अलावा आसपास की जमीन पर न तो नमाज पढ़ी जाएगी और न ही उर्स होगा. इसी दौरान वाराणसी के तत्कालीन कलेक्टर ने एक नक्शा बनाया, जिसमें मस्जिद के तहखाने पर व्यास परिवार का हक बताया.  

जब 1991 में व्यास परिवार ने दर्ज कराया मुकदमा
1992 तक ज्ञानवापी के परिसर में मुसलमान और हिंदू, दोनों जाते थे. मुसलमान नमाज पढ़ने जाते थे, जबकि हिंदू पूजा करने जाते थे. ऐसा दावा किया जाता है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले यहां इक्के-दुक्के मुसलमान नमाज अदा किया करते थे. लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद यहां हर रोज नमाज होने लगी और बड़ी संख्या में नमाजी आने लगे. 1991 में व्यास परिवार की ओर से एक मुकदमा दर्ज हुआ. इसमें ज्ञानवापी मस्जिद को आदि विशेश्वर मंदिर को सौंपने के लिए कहा गया. यह मुकदमा सोमनाथ व्यास ने दर्ज कराया था, जो अब तक चला आ रहा है. अब ज्ञानवापी मुकदमे को सोमनाथ व्यास के नाती शैलेंद्र पाठक लड़ रहे हैं. 

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