नई दिल्ली: असम में भाजपा के वरिष्ठ नेता हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Assam) के रूप में शपथ ले ली है. इससे पहले रविवार को उन्हें कई दौर की बैठकों के बाद विधायक दल का नेता चुना गया था. खुद पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल (Sarbanand Sonowal) ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा था. क्या आप जानते हैं कि एक वकील से मुख्यमंत्री तक का सरफ सरमा ने कैसे तय किया.
बिस्व ने जमीन से की सफर की शुरुआत
रविवार को गुवाहाटी में बीजेपी विधायक दल की बैठक में हिमंत बिस्व सरमा को विधायक दल का नेता चुना गया था. असम के 15वें मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का सफर जमीन से शुरू हुआ था.
राजनीतिक पंडितों की मानें तो असम (Assam) में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में मिली जीत की रणनीति में जो सबसे प्रमुख नाम था, वो हिमंत बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) का है. ऐसे में उन्हें प्रदेश की कमान सौंप दी गई है.
जोड़तोड़ की सियासत के मास्टर हैं सरमा
हिमंत बिस्व सरमा को जोड़तोड़ की सियासत का मास्टर कहा जाता है. 15 सालों तक कांग्रेस में उन्होंने जबरदस्त पैठ बना ली थी. यहां तक कि उस वक्त वो असम के सीएम तरुण गोगोई के बेहद खास थे, लेकिन जब 2015 में उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में आए तो कांग्रेस की मानिए कमर टूट गई.
कांग्रेस के कई विधायक और नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया. नतीजा ये हुआ कि सोनोवाल सरकार में सरमा को अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई. आज भी असम की सियासत में हिमंत बिस्व सरमा की तूती बोलती है, यही सबसे बड़ी वजह है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. सरमा के एक इशारे में सत्ता परिवर्तन हो सकता है, भाजपा के दिग्गज भी इस बात को अच्छे से समझते हैं.
हिमंत बिस्व सरमा का सियासी सफर
कांग्रेस (Congress) से आए 15 साल विधायक रहे, असम की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले हिमंत इस बार की जीत के भी रणनीतिकार माने जा रहे हैं.
हिमंत बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) का जन्म 01 फरवरी 1969 को असम के जोराहाट में हुआ था. राजनीति में आने से पहले वे कॉटन कॉलेज यूनियन सोसाइटी (CCUS) के महासचिव (GS) थे. इसके अलावा वर्ष 1996 से लेकर 2001 तक उन्होंने गुवाहाटी हाईकोर्ट में भी लॉ प्रैक्टिस की थी.
सरमा का खेल से पुराना और गहरा नाता
हिमंत बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) को खेलों से एक अलग ही नाता है. वर्ष 2017 में सरमा को भारत के बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था. इतना ही नहीं वो असम बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इसके अलावा जून 2016 में हिमंत को असम क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
आपको बता दें, वर्ष 2002 से 2016 तक हिमंत बिस्व सरमा एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. वो एसोसिएशन के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं.
राजनीति में सरमा का अच्छा खासा दबदबा
हिमंत बिस्व सरमा ने अपने सियासी सफर की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी. उन्होंने वर्ष 2001 से 2015 तक जालुकबारी विधानसभा क्षेत्र में अपना अच्छा खासा प्रभाव स्थापित रखते हुए कांग्रेस का दबदबा कायम रखा. 15 साल तक वे इस सीट से विधायक रह चुके हैं.
कई बार अपने बयानों और एक्शन को लेकर हिमंत बिस्व सरमा सुर्खियों में बने रहे. असम की राजनीति में सरमा का कद दिन पर दिन बढ़ता गया. हर किसी का मानना है कि सरमा की रणनीति अपने प्रतिद्वंदियों का चित कर देती है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामकर उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस को झटका दिया, बल्कि खुद सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए.
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निश्चित तौर पर समय पर समय का इस्तेमाल करना सरमा को काफी बेहतर आता है. इसी का नतीजा है कि वो कभी सीएम के खास हुआ करते थे और आज मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं.
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