नई दिल्ली: भारत पहले से ही विश्व का चौथा सबसे बड़ा सैन्य देश है. कहते हैं कि जो देश शक्तिशाली है, वहीं शांति की बात करता है. इसका एक कारण यह भी है कि दुनिया में उस देश की पैठ होती है और वैश्विक इज्जत भी बढ़ती है. भारत अपने रक्षा विभाग को और मजबूत करने में लगा हुआ है. पिछले कुछ दिनों से लगातार मिसाइल परीक्षण हो रहे हैं तो कभी कोई नई रक्षा तकनीक किसी विकसित देश से खरीदी जा रही है. गृह मंत्रालय ने जानकारी दी कि पिछले दो महीनों में भारत ने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड से 33,000 करोड़ के रक्षा उपक्रम खरीदने पर करार किया है.
कुछ प्रोजेक्ट अभी भी हैं पाइपलाइन में
2014 में एनडीए सरकार के आने के बाद से रक्षा मंत्रालय ने भारतीय उद्योगों से तकरीबन 1,96,000 करोड़ के कुल 180 प्रोजेक्ट पर समझौता किया है. इसका मतलब है कि नई सरकार में सैन्य शक्ति को लगातार बढ़ाया जा रहा है. इसके अलावा सभी एयरफिल्ड इंफ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण का मसौदा भी पाइपलाइन में है. भारतीय कंपनियां ही इसे तैयार करने वाली हैं. जो भारत सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा भी देती है.
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भारत इलेक्ट्रिॉनिक्स लिमिटेड(BEL) ने रक्षा विभाग को सौंपी कई नई तकनीकें
रक्षा मंत्रालय ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड से तकरीबन 7,900 करोड़ के इंटिग्रेटेड एडवांसड कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की तकनीक को तैयार करा रही है. इसके अलावा 2014 के शुरुआती दौर में ही इसी कंपनी से भारतीय रक्षा विभाग ने तकरीबन 6300 करोड़ के बजट से तैयार की गई आकाश मिसाइल को खरीदा या यूं कहें कि बनवाया. यह मिसाइल जमीन से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की अत्याधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल है. भारत सरकार स्वदेशी निर्मित रक्षा तकनीकों पर खास काम कर रही है.
टी-90 टैंकों का बड़ा जखीरा अब भारतीय सेना के अधीन
इसी के तहत भारतीय रक्षा विभाग ने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड से 19,100 करोड़ की लागत से बने 464 टी-90 (T-90) टैंक तैयार कराए और उन्हें भारतीय सेना में जगह दी. इन टैंकों को कंपनी ने रूस की मदद से तैयार कराया. हाल के दिनों में भारत ने अपने रक्षा उत्पादों को बढ़ाना शुरू किया है. और न सिर्फ बढ़ाना ही बल्कि पुरानी पड़ी तकनीकों के आधुनिकीकरण में भी खूब खर्च करती दिख रही है. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन की मिली जुली चुनौती का ही यह असर है कि रक्षा तकनीकों को फिट बनाया जा रहा है.
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